नई दिल्ली। श्रीलंका (Sri Lanka) की मौजूदा स्थिति के लिए उसकी गलत नीतियों से उपजी बदहाल आर्थिक स्थिति जिम्मेदार है। भारत (India) से संतुलन बनाकर चीन पर ज्यादा भरोसा (Reliance) करना उसे भारी पड़ गया। श्रीलंका ने आईएमएफ की तुलना में चीन से कर्ज ज्यादा लिया। इससे वह कर्ज के जाल में उलझ गया। श्रीलंका का कर्ज उसकी जीडीपी का करीब 125% तक हो गया। उसकी मुद्रा का अवमूल्यन भी 75 फीसदी तक हुआ। समाधान के बजाय जनता को दबाने का प्रयास हुआ। यहा कहना है जेएनयू में दक्षिण एशिया(South Asia) अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर संजय कुमार भारद्वाज का।
पड़ोसी देशों के लिए भी सबक है श्रीलंका की स्थिति
उन्होंने कहा, ”पहली गाज महिंदा राजपक्षे पर गिरी। लेकिन जनता ने गोटबाया राजपक्षे को भी जिम्मेदार मानते हुए विद्रोह जारी रखा। विक्रमसिंघे को लेकर संतुलन की कोशिश कामयाब नहीं हुई। श्रीलंका की ताजा स्थिति अन्य पड़ोसी देशों के लिए सबक है। उन्हें भारत को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए। भारत ने श्रीलंका को करीब 3.5 बिलियन की सहायता दी है। अब और मदद करनी होगी। श्रीलंका में होने वाले पलायन का असर भी भारत पर पड़ेगा।”
दस साल में आधी से भी कम रह गई आर्थिक वृद्धि दर
श्रीलंका में आथिक संकट कोई एक-दो साल में नहीं आया है। वर्ष 2009 में श्रीलंका जब 26 वर्षों से जारी गृहयुद्ध से उभरा तो युद्ध के बाद की उसकी जीडीपी वृद्धि वर्ष 2012 तक प्रति वर्ष 8-9% के उपयुक्त उच्च स्तर पर बनी रही थी। लेकिन वैश्विक कमोडिटी मूल्यों में गिरावट, निर्यात की मंदी और आयात में वृद्धि के साथ वर्ष 2013 के बाद उसकी औसत जीडीपी वृद्ध दर काफी घट गई। 2022 में यह करीब 2.4 फीसदी रह गई।
वित्तीय संकट ने समाप्त किया विदेशी मुद्रा भंडार
गृहयुद्ध के दौरान श्रीलंका का बजट घाटा बहुत अधिक था। वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने उसके विदेशी मुद्रा भंडार को समाप्त कर दिया था, जिसके कारण देश को वर्ष 2009 में आईएमएफ से 2.6 बिलियन डॉलर का ऋण लेने के लिये विवश होना पड़ा था। वर्ष 2016 में श्रीलंका एक बार फिर 1.5 बिलियन डॉलर के ऋण के लिये आईएमएफ के पास पहुंचा, लेकिन शर्तों ने श्रीलंका के आर्थिक हालत को बदतर कर दिया।
हाल के झटके: कोलंबो के विभिन्न गिरिजाघरों में अप्रैल 2019 में हुई ईस्टर बम विस्फोटों की घटना में 253 लोग तो हताहत हुए ही, इसके परिणामस्वरूप देश में पर्यटकों की संख्या में तेजी से गिरावट आई। इससे उसके विदेशी मुद्रा भंडार पर भारी असर पड़ा। वर्ष 2019 में सत्ता में आई गोटबाया राजपक्षे की सरकार ने अपने चुनावी अभियानों में निम्न कर दरों और किसानों के लिए व्यापक रियायतों का वादा किया था। इन अविवेकपूर्ण वादों की त्वरित पूर्ति ने समस्या को और बढ़ा दिया। वर्ष 2020 में उभरे कोविड-19 महामारी ने स्थिति को बद से बदतर कर दिया, जहां चाय, रबर, मसालों और कपड़ों के निर्यात को नुकसान पहुंचा।
सरकार के व्यय में वृद्धि के कारण वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा 10% से अधिक हो गया और ‘ऋण-जीडीपी अनुपात’ वर्ष 2019 में 94% के स्तर से बढ़कर वर्ष 2021 में 119% हो गया। वर्ष 2021 में सरकार ने सभी उर्वरक आयातों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया और श्रीलंका को रातों-रात 100% जैविक खेती वाला देश बनाने की घोषणा कर दी गई। रातों-रात जैविक खादों की ओर आगे बढ़ जाने के इस प्रयोग ने खाद्य उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
नतीजतन, श्रीलंका के राष्ट्रपति ने बढ़ती खाद्य कीमतों, मुद्रा का लगातार मूल्यह्रास और तेजी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार पर नियंत्रण के लिए देश में एक आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी। बता दें कि मई में जो महंगाई 39.1% थी, वो जून में बढ़कर 54.6% हो गई है। सिर्फ खाद्य महंगाई को देखें तो मई में जो 57.4% थी, वो जून में बढ़कर 80.1% हो गई है।
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