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शिक्षा व संस्कृति का प्रसार

December 02, 2021

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

भारत अपने ज्ञान विज्ञान के बल पर विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित रहा है। हमारे यहां शिक्षा का मूल उद्देश्य रोजगार या डिग्री प्राप्त करना नहीं था बल्कि यह धर्म अर्थ काम के मर्यादा अनुरूप पालन करने का मार्ग प्रशस्त करती थी। इससे नैतिक विचारों का जागरण होता था। इस मार्ग पर चलते हुए मोक्ष तक पहुंचने की कामना रहती थी। आज दुनिया में अनेक प्रकार की विकृति दिखाई देती है। नैतिकता का महत्व नहीं रहा। आतंक और नफरत का वातावरण है। प्रकृति का प्रकोप बढ़ रहा है। उपभोगवादी सभ्यता संस्कृति से भौतिक विकास तो हुआ लेकिन अनेक समस्याओं का जन्म भी हुआ। इनका समाधान पाश्चात्य जगत के पास नहीं है।

ऐसे में भारतीय चिंतन पर विचार होने लगा है। कोरोना कालखंड में इसे प्रत्यक्ष रूप में देखा गया। नई शिक्षा नीति में सांस्कृतिक मूल्यों को भी महत्व दिया गया। इसके पहले भी अनेक आध्यात्मिक संस्थान शिक्षा के माध्यम से भारतीय संस्कृति व राष्ट्रीय स्वाभिमान का जागरण करते रहे हैं। इनमें गोरक्ष पीठ भी सम्मलित रही है। गोरक्ष पीठ के योगी श्री महंत व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसका उल्लेख किया। कहा कि धर्म केवल उपासना मात्र नहीं है। धर्म हमें सदाचार,नैतिक मूल्य और अपने स्वयं के कर्तव्यों के प्रति निरंतर प्रेरित करता है। भारतीय परंपरा किसी को कोई विशेष पूजा पद्धति का अनुसरण करने के लिए बाध्य नहीं करती है। महंत महेंद्रनाथ जी ने गोरखपुर में गोरक्षपीठ की परंपरा को देखा। वहां कार्य करने का अनुभव प्राप्त किया। गोरखपुर में गोरक्षपीठ में दिग्विजयनाथ महाराज जी,अवैद्यनाथ महाराज जी के मार्गदर्शन में प्रेरणा ली। धर्मस्थल की सामाजिक कार्यों सहभागिता को देखा। इस प्रकार धार्मिक संस्थान को लोककल्याण माध्यम बनाया जा सकता है।

गोरख पीठ ने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के माध्यम से शिक्षा के लिए एक व्यापक अलख जगाने का कार्य किया। आज महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के पचास से ज्यादा संस्थान कार्यरत हैं। पांच हजार से ज्यादा शिक्षक शिक्षण कार्य कर रहे हैं। पचास हजार से अधिक बच्चे इन संस्थानों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद द्वारा पॉलिटेक्निक व पहले डिग्री कॉलेज की स्थापना के माध्यम से शिक्षा को बढ़ाने का कार्य किया गया। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद द्वारा गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए जमीन दान की गई। गोरखपुर में गोरक्षपीठ द्वारा वनवासी छात्रों के लिए छात्रावास की स्थापना की गई। जिसमें थारू जनजाति के छात्रों व नागालैण्ड,मिजोरम, मेघालय क्षेत्रों से जनजाति के छात्रों को शिक्षा प्रदान की जाती है। उसी तर्ज पर थारू जनजाति छात्रावास की स्थापना हुई। बलरामपुर के बच्चों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के लिए देवीपाटन मंदिर में देवीपाटन विद्यालय की स्थापना की गई। देवीपाटन तुलसीपुर में थारू जनजाति छात्रावास की स्थापना की गई।

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मंदिर का स्वरूप सेवा का माध्यम होना चाहिए। इसी भावना के साथ महंत महेंद्रनाथ जी ने देवीपाटन तुलसीपुर में लोक कल्याणकारी कार्यों को प्रारंभ किया किया। वह निरंतर लोक कल्याणकारी पथ पर आगे बढ़ते रहे। उन्होंने लोक कल्याण के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। लोक कल्याण, मानवता के कल्याण, शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, स्वास्थ्य की बेहतर सुविधा, गौ सेवा कार्यों को मंदिर से जोड़ते हुए आगे बढ़ाया गया। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर आस्था के प्रतीक के साथ-साथ भारत और नेपाल के सांस्कृतिक स्वरूपों को जोड़ने का एक महत्वपूर्ण आधार है। नवरात्र के अवसर पर रतननाथ देवता जी की सवारी देवीपाटन तुलसीपुर आती है। यह सवारी सामान्य सवारी ना होकर भारत और नेपाल के प्राचीन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती प्रदान करने का एक माध्यम है।

भारत की व्यवस्था में हमारे ऋषि-मुनियों और संतों ने पूरी व्यवस्था में जीवन को पुण्य एवं पाप के साथ जोड़ा। पाप-पुण्य की अवधारणा लोगों को सत्य व धर्म के रास्ते पर चलने को प्रेरित करती है। भारतीय चिंतन के अनुसार सभी जीव-जंतु में आत्मा होती है। इसलिए प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव का संदेश दिया गया। योगी आदित्यनाथ का संबोधन इस भारतीय दर्शन के अनुरूप था। उन्होंने कहा कि प्रकृति के जीवन चक्र में केवल मनुष्य ही सब कुछ नहीं है। मनुष्य इसका बहुत छोटा-सा हिस्सा है। हर जीव-जन्तु एक-दूसरे पर निर्भर रहता है। एक-दूसरे पर उसका जीवन टिका हुआ है। मनुष्य यदि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए शेष जीव-जन्तुओं के अस्तित्व के साथ खिलवाड़ करेगा, तो यह खिलवाड़ एक दिन उसी के लिए भीषण संकट का कारण बनेगा। इसलिए जीव-जन्तुओं के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का दायित्व होना चाहिए।

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यदि किसी मनुष्य के मूल व्यवहार को जानना है तो जीव-जन्तुओं के प्रति उसका जो व्यवहार है, वही उसका मूल स्वभाव होता है। अगर वह मूक पशु-पक्षियों के प्रति हिंसक है तो वह मानवता के प्रति भी हिंसक होगा। अगर वह मूक पशु-पक्षियों के प्रति संवेदना रखता है, तो वह मानवता के प्रति संवेदनापूर्ण व्यवहार करने की क्षमता रखता है। इससे प्रत्येक व्यक्ति के व्यवहार और उसकी प्रकृति के बारे में जाना जा सकता है। प्रकृति के जीवन चक्र को बचाने के लिए उनके मन में उसी प्रकार की भावनाएं भी पाई जाती है।

राज्य सरकार ईको टूरिज्म को बढ़ावा दे रही है। इस दृष्टि से अनेक क्षेत्र चिन्हित किये गये हैं। इन क्षेत्रों पर बेहतरीन तरीके से कार्य किया जा रहा है। इसे आगे बढ़ाने में पर्यटन विभाग के सहयोग से विभिन्न गतिविधियों को संचालित किया जा रहा है। प्रदेश में सत्तर वर्षाें में दो प्राणी उद्यान ही बन पाये थे। जबकि विगत पांच वर्षाें में एक प्राणी उद्यान गोरखपुर में स्थापित किया गया है। इस अवधि में वन विभाग के प्रयासों और समन्वय से सौ करोड़ वृक्षारोपण किया गया। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कोई भी वन्य जीव मनुष्य को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। बशर्ते अगर मनुष्य से उसको कोई खतरा न हो। लेकिन जब मनुष्य अपने स्वयं के विस्तार एवं अस्तित्व के साथ अपनी खुशहाली के लिए किसी भी जीव-जन्तु के क्षेत्र में हस्तक्षेप करता है, तो वह भी स्वाभाविक रूप से अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए दिखायी पड़ते हैं। हम सबको इस व्यवहार को समझने की आवश्यकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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