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    भारत की आत्मा है अध्यात्म

  • April 17, 2023

    • अध्यात्म के बल पर संतों ने 1 हजार साल तक संघर्ष किया

    उज्जैन। हमारे भारत देश में से यदि अध्यात्म हटा लिया जाए तो देश की आत्मा मर जाएगी, क्योंकि देश की आत्मा ही अध्यात्म में है और इस अध्यात्म बल पर ही हमारे साधु संत और अन्य लोगों ने 1 हजार साल तक संघर्ष किया। उसी के बल पर आज भी सनातन धर्म जिंदा है। हेडगेवार व्याख्यानमाला के तीसरे दिन प्रमुख वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने यह बात कही। आपने कहा जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के हर काम में अध्यात्म छिपा है, यदि वह विद्यालय जाता है तो सरस्वती की पूजा करता है। व्यापार करता है तो लक्ष्मी जी की पूजा करता है और नया घर भी बनाता है तो उसकी प्राण प्रतिष्ठा के लिए भी पूजा करता है। अध्यात्म की आत्मा ईश्वर की अनुभूति है। परमात्मा सभी में विद्यमान हैं और ईश्वर की अनुभूति ही हमें विशेष व्यवहार के लिए प्रेरित करती है। अधिक विषयों ने भी यही लिखा, जब भी हमारे देश में धार्मिक व्यवस्था बिगड़ती है तो एक महापुरुष जन्म लेते हैं और सुधार कर देते हैं। वेदों के आधार पर हमारे देश में यज्ञों में हिंसा होने लगी, पशु बलि भी होने लगी, ऐसे में भगवान बुद्ध ने जन्म लिया और सामान्य लोग भाषा में प्रवचन दिया और देश के लोगों को नया मार्ग दिखाया।


    उनके समय में बौद्ध धर्म खूब फैला और फिर कुछ दिनों बाद शंकराचार्य ने 5 तीर्थों का चयन कर उनकी प्रतिस्थापना की और उन्होंने भी यही कहा कि सब के अंदर एक आत्मा है, भक्ति और अध्यात्म को आप अलग नहीं कर सकते। हमारे देश में जब इस्लाम का आक्रमण चल रहा था और 12वीं सदी थी तब रामानंद ने जन्म लिया और रामानंद उत्तर भारत के पहले ऐसे संत थे जिन्होंने वहाँ के लोगों को भक्ति का मार्ग दिखाया और जो हनुमान जी की आरती आज हिंदी में गाई जाती है उसे पहली बार रामानंद ने ही लिखा था। उनके बाद कवि सूरदास दयाभाई सहसा भाई जैसे अनेक संत हुए। उस समय एक ओर भारत इस्लाम के पंजों में आ गया था और हिंदुओं को पूजा के लिए जजिया कर देना पड़ रहा था। यह हिंदू समाज की उन्नति का काल था। डॉ. कृष्ण गोपाल ने वक्तव्य के दौरान बताया हिंदू धर्म में छुआछूत नाम की कोई चीज कभी हुई नहीं थी। यदि छुआछूत होती तो राम केवट से गले क्यों मिलते और ऋषि वशिष्ठ निषादराज से मिले, इसका वर्णन रामायण में स्पष्ट है। छुआछूत की प्रक्रिया भारत में इस्लाम के साथ आई हिंदू धर्म के लोग उन्हें स्पर्श नहीं करते थे, जो गौ मांस खाते थे, वहीं उस समय मुस्लिमों से सभी प्रकार के व्यवहार हिंदुओं ने बंद कर दिए थे। उनके घर भी नहीं जाते थे, यहीं से भारत में छुआछूत जैसी बीमारी आई पहले के इतिहास में कहीं भी छुआछूत का कोई वर्णन नहीं मिलता है। कई शूद्र भी संत बने और छतरी भी संत बने ब्राह्मण भी संत बने लेकिन उस समय कोई विरोध नहीं हुआ। अध्यात्म के बल पर संतों ने मुस्लिमों से लेकर अंग्रेजों तक से लड़ाई लड़ी। कल के सत्र की अध्यक्षता रामशरण जिंदल ने की और इस अवसर पर अतिथियों को स्मृति चिन्ह सचिव राजेश पाटीदार ने दिया। संस्था अध्यक्ष गिरीश भालेराव भी मौजूद थे।

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