हिंदी सिनेमा का एक बड़ा नाम व मशहूर गीतकार, शायर और कवि मजरूह सुल्तानपुरी (Poet Majrooh Sultanpuri) बेशक हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके लिखे गीत आज भी दर्शकों के बीच काफी पसंद किये जाते हैं। मजरूह सुल्तानपुरी (Poet Majrooh Sultanpuri) का जन्म 1 अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ था। इसीलिए उन्होंने अपने नाम में सरनेम के तौर पर सुल्तानपुरी जोड़ लिया था।
मजरूह सुल्तानपुरी को लिखने और मुशायरे सुनाने का बड़ा शौक था और इसलिए वह अक्सर मुशायरा कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे। इसी दौरान साल 1945 में मुंबई में आयोजित एक मुशायरे के दौरान फिल्म प्रड्यूसर एके करदार की नजर उन पर पड़ी । मजरूह के मिसरे सुनकर करदार उनके गुरु जिगर मुरादाबादी के पास पहुंच गए और फिल्मों के लिए गीत लिखने की सिफारिश करने को कहा। लेकिन मजरूह ने फिल्मों के लिए गीत लिखने से मना कर दिया, उस वक्त अदबी तबके में इस तरह के काम को हल्का माना जाता था। फिर बहुत समझाने पर मजरूह माने और कारदार की फिल्म ‘शाहजहां’ के लिए लिखा, ‘जब उसने गेसू बिखराए, बादल आए झूम के’।
साल 1949 एक ऐसा समय आया कि मजरूह सुल्तानपुरी को सरकार विरोधी माना जाने लगा। सरकार ने उन पर ऐसे आरोप लगाकर दो साल के लिए जेल में डाल दिया।जब मजरूह सुल्तानपुरी 2 साल जेल में रहे तो उनके परिवार की माली हालत काफी खराब हो गई थी। ऐसे बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार राज कपूर उनकी मदद के लिए आगे आए। लेकिन मजरूह सुल्तानपुरी ने उनसे मदद लेने से इंकार कर दिया तब राज कपूर ने इसका भी तोड़ निकाल लिया और मजरूह से कहा वह उनके लिए एक गीत लिखें। इसके बाद उन्होंने फेमस गाना ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’ लिखा और इस गीत के लिए राज कपूर ने उन्हें 1 हजार रुपये का मेहनताना दिया। बाद में राज कपूर ने इस गाने का इस्तेमाल अपनी फिल्म ‘धरम करम’ में किया था।
लगभग चार दशक तक हिंदी सिनेमा में काम करने के दौरान मजरूह सुल्तानपुरी ने ‘तेरे मेरे मिलन की ये रैना’, ‘हमें तुमसे प्यार कितना’, ‘गुम है किसी के प्यार में’, ‘एक लड़की भीगी भागी सी’, ‘ओ मेरे दिल के चैन’, ‘चुरा लिया है तुमने जो दिल को’, ‘इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा’, ‘बाहों में चले आओ, हमसे सनम क्या पर्दा’ जैसे एक से एक शानदार और सुपरहिट गाने लिखे थे। साल 1964 में आई फिल्म ‘दोस्ती’ के यादगार गाने ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था। साल 1993 में मजरूह को प्रतिष्ठित दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वह बॉलीवुड के पहले ऐसे गीतकार थे जिन्हें इस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
हिंदी सिनेमा को एक नया आयाम देने वाले मजरूह सुल्तानपुरी ने अपने समय में लगभग हर बड़े संगीतकार के साथ काम किया। मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे गीत आज भी दर्शकों के बीच बड़े शौक से सुने जाते हैं। हिंदी सिनेमा में एक से बढ़कर एक नग़मे और मुशायरे देने वाले मजरूह सुल्तानपुरी का 81 साल की उम्र इंतकाल हो गया था। वह लंबे समय से फेफड़ों की बीमारी से परेशान थे।
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