जयपुर। विधानसभा सत्र की कार्रवाई सुबह 11 बजे शुरू होगी। इस दौरान अशोक गहलोत सरकार की ओर से विश्वास प्रस्ताव लाने की संभावना है। दूसरी तरफ, भाजपा भी कार्यवाही शुरू होते ही अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है। ऐसे में स्पीकर डॉक्टर सीपी जोशी की भूमिका अहम हो जाएगी। वही तय करेंगे कि किसका प्रस्ताव स्वीकार किया जाएगा। बीजेपी खुद अपने ही विधायकों की वफादारी परखेगी। बीजेपी पहले अविश्वास प्रस्ताव लाने से साफ इनकार कर रही थी, लेकिन गुरुवार को अचानक पार्टी विधायक दल की बैठक में अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला लिया गया। इसके पीछे की कहानी कुछ और बताई जा रही है। बीजेपी अविश्वास प्रस्ताव के जरिये ये पता लगाने की कोशिश भी करेगी कि कहीं कोई विधायक अंदरखाने कांग्रेस के संपर्क में तो नहीं है।
बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि सरकार कई मुद्दों पर जूझ रही है। उनके विश्वास प्रस्ताव लाने की उम्मीद है, लेकिन हम भी अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए तैयार हैं। नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि पार्टी ने पूरी तैयारी कर रखी है। उन्होंने कहा कि सरकार एक महीने से बाड़े में बंद है। प्रदेश में केंद्र सरकार की योजनाओं की अनदेखी की जा रही है। ये सरकार विरोधाभास की सरकार है।
प्रदेश में जब कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट गुट के बीच जंग छिड़ी हुई थी और दोनों का टकराव चरम पर था, तब बीजेपी नेतृत्व ने अपनी पार्टी के विधायकों को बाड़ेबंदी के लिए बुलाया था। इस पर कई विधायकों ने ना-नुकर की तो संदेह गहरा गया था कि बीजेपी के कुछ नेता सरकार गिराने के पक्ष में नहीं हैं। यहां तक कि बीजेपी की सहयोगी पार्टी आरएलपी के सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने तो यहां तक कह दिया था कि वसुंधरा राजे गहलोत सरकार को नहीं गिराना चाहती। उसके बाद बवाल मच गया था।
इस बीच, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने भी बयान दिया कि बीजेपी को चुनी हुई सरकार को गिराने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। इससे भी पार्टी में खलबली मच गई थी, जबकि दूसरी तरफ बीजेपी के नेता सरकार की उल्टी गिनती गिनते हुए दिल थामकर अनुकूल समय की प्रतीक्षा कर रहे थे। लेकिन, पायलट की कांग्रेस आलाकमान से मुलाकात के बाद बीजेपी नेताओं के अरमानों पर पानी फिर गया।
फुलेरा विधायक निर्मल कुमावत ने कहा कि उनसे कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने संपर्क साधने की कोशिश की थी। बार बार उनके पास फोन भी आये, लेकिन उन्होंने समय रहते खतरे को भांपा और पार्टी नेतृत्व को इसकी जानकारी दी। कुमावत उन विधायकों में शामिल थे जो गुजरात गये थे। संगरिया विधायक गुरुदीप शाहपीणी ने कहा कि प्रशासन उन पर लगातार दबाव बना रहा था, इसलिए वो भी गुजरात चले गये थे।
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