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    सपा को 2024 में यादव-मुस्लिम वोट छिटकने का डर, रामपुर-आजमगढ़ की हार से बढ़ी चिंता

  • June 28, 2022

    लखनऊ। आजमगढ़ (Azamgarh) और रामपुर (Rampur) में मिली हार ने समाजवादी पार्टी के भविष्य (future of samajwadi party) को लेकर चिंताएं बढ़ा दी है। खासतौर पर यादव बेल्ट (Yadav Belt) में खिसकता जनाधार और मुस्लिम मतों का विभाजन (Muslim vote division) सपा के लिए वर्ष 2024 के सियासी समर में बड़ी मुसीबत बनते नज़र आ रहे हैं। कमोबेश उपचुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि मौजूदा हालात के मद्देनज़र सपा मुखिया अखिलेश यादव (SP chief Akhilesh Yadav) को पार्टी में टिकट के लिए कद्दावर नेताओं के दबाव से निपटने के साथ ही स्थानीय संगठन को तरजीह देने की जुगत बिठाना अहम होगा। वहीं अपने गढ़ में मुस्लिम-यादव वोट छिटकने से भी रोकना जरूरी होगा।


    खेमेबाजरी के चलते तय हुए थे दोनों टिकट
    सपा में अंदरखाने चर्चा है कि धर्मेंद्र यादव आजमगढ़ से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। वह अपनी बदायूं सीट पर ही काम करने के लिए अड़े थे लेकिन हाल ही में सपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य के दबाव में धर्मेंद्र यादव को बदायूं से लड़ाया गया। दरअसल, यह मिशन-2024 का ही मैनेजमेंट था। स्वामी प्रसाद चाहते हैं कि उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य को 2024 में बदायूं से ही लड़ाया जाए। आजमगढ़ में परिवार के सदस्य धर्मेंद्र यादव के लिए सियासी स्कोप बना रहे, नतीजतन, धर्मेंद्र को आजमगढ़ से उतारा गया।

    स्थानीय सपा संगठन में इसे लेकर खिन्नता रही कि यदि मौका देना था तो किसी स्थानीय नेता को भी चुनाव लड़ाया जा सकता था। अखिलेश को कुछ ऐसी ही स्थिति से रामपुर में भी जूझना पड़ा। लोकसभा चुनावों से पहले आजम खां की नाराज़गी का सबब भी समझने में समाजवादी पार्टी नाकाम रही थी, ऐसा भी नहीं है। आजम अपने और अपने चहेतों के लिए ही उपचुनाव में टिकट चाहते थे लिहाजा नाराज़गी को हथियार बनाया गया। कहना गलत न होगा कि सपा मुखिया इस दांव को भी सलीके से संभाल नहीं सके। इस तथ्य को भी नकार दिया गया कि वर्ष 2019 में सपा-बसपा साथ में थे और आजम खां की जीत हुई थी। बसपा की नामौजूदगी में क्या सियासी समीकरण होगा उसे भी समझने में सपा मुखिया ने चूक की।

    यादव बेल्ट में छिटते वोट बैंक को बचाना भी होगा
    सियासी जानकार कहते हैं कि समाजवादी पार्टी अपने गढ़ में ही अपने वोट बैंक को सहेजे रखने में नाकाम सिद्ध हो रही है। निरहुआ के पक्ष में हालांकि बहुत ज्यादा यादव वोट शिफ्ट हुआ यह दावा नहीं किया जा सकता लेकिन यादव समाज के युवा वर्ग को हिन्दुत्व व कानून-व्यवस्था के सहारे भाजपा ने पाले में करने की पुरजोर कोशिश की। भाजपा इसमें कितनी सफल हुई यह तो स्पष्ट नहीं है लेकिन 1-2 फीसदी वोटों में बदलाव से इनकार नहीं किया जा सकता। कुछ ऐसी ही रणनीति के तहत भाजपा जौनपुर शहर से यादव प्रत्याशी खड़ाकर पिछले दो चुनावों से सपा के गढ़ में सेंध लगाती चली आ रही है। जौनपुर से भाजपा सरकार के मंत्री गिरीश यादव को लड़ाकर भाजपा ने वहां न केवल यादव समाज को विकल्प दिया है बल्कि दो बार से अपनी जीत सुनिश्चित कर रही है। कुछ इसी तर्ज पर आजमगढ़ में भी दांव चला गया। निरहुआ उस स्थिति में जीते जबकि आजमगढ़ के कद्दावर नेता दुर्गाशंकर यादव, बलराम यादव और रमाकांत यादव चुनाव प्रबंधन में जुटे रहे। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कन्नौज में भी कुछ ऐसा ही सजातीय प्रत्याशी देकर सपा को धराशायी किया था।

    बसपा की मुस्लिम वोटों के विभाजन से निपटना होगा
    बसपा प्रमुख मायावती विधानसभा चुनाव हारने के बाद से लगातार मुस्लिम मतों को रिझाने की कोशिशों में है। वह लगातार कह रही हैं कि मुस्लिम समाज को भ्रमित किया गया और भाजपा से टक्कर लेने में केवल बसपा ही सक्षम है। वहीं सपा बसपा को उसके मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए घेरती रही है। ऐसे में जबकि आजमगढ़ में बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी गुड्डू जमाली को भारी संख्या में अल्पसंख्यकों के वोट मिले। बसपा ने सपा के वोटबैंक में सेंधमारी की। वर्ष 2019 के चुनाव सपा-बसपा ने मिलकर लड़े थे तब अखिलेश यादव को छह लाख से अधिक वोट मिले थे। ऐसे हालातों में जबकि बसपा मुस्लिम मतों की पुरजोर चाहत रखती है, समाजवादी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है कि कैसे वह बसपा के मुस्लिम वोट बैंक के विभाजन को रोक सके। कहना गलत न होगा कि अगर यह विभाजन नहीं रुका तो सपा को ठीक उसी तरह नुकसान होगा जैसा विधानसभा चुनावों में बसपा द्वारा सपा के मुस्लिम प्रत्याशियों के सामने मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा करने पर हुआ था और अब आजमगढ़ में भी कुछ वैसा ही नुकसान उठाना पड़ा। इसी तर्ज पर रामपुर में मुस्लिम प्रत्याशी आसिम राजा के चयन को लेकर स्थानीय सपा संगठन में नाराज़गी थी। वहीं बसपा ने प्रत्याशी खड़ा न कर दलित वोट भाजपा के पाले में ट्रांस्फर करने का रास्ता साफ किया। सपा के लिए ऐसे समीकरणों से भी भविष्य में जूझना चुनौती होगी।

    सपा को मिले वर्ष 2019 में मत-
    रामपुर-आजम खां–559177 (सपा-बसपा मिलकर लड़े)
    भाजपा–जया प्रदा–449180

    वर्ष 2022 रामपुर–सपा–आसिम राजा–325205,
    भाजपा-घनश्याम लोधी–367397

    आजमगढ़–वर्ष 2019 में मिले मत
    अखिलेश यादव–621578 (सपा-बसपा मिलकर लड़े)
    भाजपा–361704
    आजमगढ़–दिनेश यादव निरहुआ–भाजपा–312768
    सपा–धर्मेंद्र यादव–304089

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