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दक्षिण कोरिया : अपदस्थ राष्ट्रपति येओल को मार्शल लॉ मसले पर हिरासत में लेने की तैयारी

December 30, 2024

नई दिल्ली। दक्षिण कोरियाई (South Korea) अधिकारियों ने अपदस्थ (Deposed)  राष्ट्रपति (President) यून सुक येओल (Eun Suk Yeol) पर शिकंजा और कसने की तैयारी शुरू कर दी है। अधिकारियों ने मार्शल लॉ (Martial Law) जांच के तहत महाभियोग लगाए गए राष्ट्रपति यून सुक येओल को हिरासत में लेने के लिए वारंट मांगने की तैयारी शुरू कर दी है।

इससे पहले दक्षिण कोरिया के अपदस्थ राष्ट्रपति के खिलाफ संवैधानिक अदालत ने भी कार्रवाई तेज कर दी है। मामले पर अदालत ने कई सुनवाइयां कर ली हैं। इस बीच कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने अल्पकालिक मार्शल लॉ डिक्री पर पूछताछ के लिए येओल पर दबाव बनाना भी शुरू कर दिया है।


180 दिन के अंदर इस बारे में फैसला लेना है
कोर्ट को 180 दिन के अंदर इस बारे में फैसला लेना है कि यून को औपचारिक रूप से पद से हटाया जाए या नहीं। आसान शब्दों में संवैधानिक न्यायालय के पास यह तय करने के लिए 180 दिनों का समय है कि यून को राष्ट्रपति पद से हटाया जाए या उनकी शक्तियां बहाल की जाएं। यदि उन्हें पद से हटा दिया जाता है, तो उनके उत्तराधिकारी को चुनने के लिए 60 दिनों के भीतर राष्ट्रीय चुनाव कराना होगा। ऐसे में जांच अधिकारी इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या यून द्वारा सत्ता हथियाने की गलत कोशिश विद्रोह के समान थी।

कार्यवाहक राष्ट्रपति हान के खिलाफ भी महाभियोग प्रस्ताव पारित
इस बीच दक्षिण कोरिया की संसद में कार्यवाहक राष्ट्रपति हान डक-सू के खिलाफ भी महाभियोग का प्रस्ताव पारित हुआ है। पूर्व राष्ट्रपति यून सूक योल की ओर से लगाए गए मार्शल लॉ समर्थन करने और योल के खिलाफ जांच को मंजूरी न देने पर विपक्षी दल ने संसद में यह प्रस्ताव पारित किया था। दक्षिण कोरिया की नेशनल असेंबली के स्पीकर वू वोन-शिक ने कहा था कि प्रधानमंत्री हान डक-सू के महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई है। 192 सांसदों में से 192 ने महाभियोग के पक्ष में मतदान किया।

क्या है मामला?
दक्षिण कोरिया में तीन दिसंबर की रात इमरजेंसी यानी मार्शल लॉ लगाने का एलान किया गया था। इसके विरोध में देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। विरोध के चलते आखिरकार महज कुछ घंटों के भीतर ही राष्ट्रपति को मार्शल लॉ समाप्त करना पड़ा था। इसे लेकर यून सुक येओल के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पारित किया गया था। इसके बाद उनको पद से हटा दिया गया था। उनके खिलाफ 204 वोट पड़े, जबकि उनके समर्थन में सिर्फ 85 वोट डाले गए। संसद में राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित होने के बाद उनकी शक्तियां तत्काल रूप से निलंबित हो गईं।

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