आज जकिरे खैर भोपाल की मशहूर हस्ती राजेंद्र कोठारी का। भाई मियां अस्सी बरस को टच कर रय हैंगें, बाकी चुस्ती फर्ती में पैंतीस चालीस वालों को टक्कर देते हैं। जब बी खां भोपाल, भोपालियत और भोपाल के कल्चरल पसेमंजर का जिक्र चलता है तो राजेंद्र कोठारी का नाम बरबस ही ज़बान पे आ जाता है। भायांन का ताल्लुक यूं तो इंदौर से हेगा बाकी सन 1964 में बिट्स पिलानी से बीई से फारिग होने के बाद आप जो भोपाल आए तो फिर भोपाल का दामाद बन केई दम लिया। भोपाल रियासत के बड़े मुआज्जीज़ लालवानी खानदान की बिटिया आशा से आपने शादी करी। आशा बीया उन सरदरमल लालवानी की दुख्तर हैं जिन्ने भोपाल में पेली कलर प्रिंटिंग प्रेस डाली थी। पुराने शहर की उस सड़क का नाम आज भी लालवानी प्रेस रोड है। साठ की दहाई में राजेंद्र कोठारी ने मंडीदीप की एच ई जी फैक्टरी में मुलाजमत के ली। यहां ये वाइस प्रेसिडेंट के ओहदे तलक पहुंचे। कोठारी साब को क्लासिकल मोसीकी और तमाम कल्चरल एक्टिविटी का इंतहाई शौक है। लिहाजा साठ से नब्बे की दहाई में भोपाल में इन्होंने लपक गायन और वादन के पिरोगराम मुनक्किद कराए। 1972 में भोपाल में इन्होंने 6 दिन का वसंत बहार फेस्टिवल मुनक्किद किया था। जो 3 दिन राधा टॉकीज और 3 दिन रविंद्र भवन में हुआ। राजेंद्र भाई ने भोपाल वालों को पंडित जसराज, उस्ताद विलायत खां, संतूर वादक शिवकुमार शर्मा, हरी प्रसाद चौरसिया, कुमुदनी लाखिया और यामिनी कृष्णमूर्ति सहित सैकड़ों बड़े आर्टिस्टों से रूबरु करवाया। 1967 में शिमला कोठी में शकीला बानो भोपाली की कव्वाली की महफिल कोठारी साब ने शिमला कोठी पे सजाई थी। इनके किरदार का दूसरा पहलू इनकी इंसानियत है। भोपाल, गैस काण्ड और दंगों के वखत इन्ने मिल्लत की जो मदद करी उसे कोई नी भूल सकता। भोपाल में शरद जोशी, नवल जायसवाल, राजकुमार केसवानी और राजेश जोशी इनके करीबी दोस्तों में रहे। बाद के सालों में। रामप्रकाश त्रिपाठी और विजय तिवारी इनके करीबी दोस्त हो गए। कल चार जून को शैलेंद्र शैली ने अपने राग भोपाली का अंक राजेंद्र कोठारी को समर्पित किया ही। इसका इजरा शाम साढ़े पांच बजे गुजराती समाज भवन में रखा गया है। मुबारक हो साब।
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