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    सूरमा के बतोले

  • August 08, 2022

    खूबसूरत है सिर्फ बाहर से
    ये इमारत भी आदमी सी है।

    वो लोग जो भोपाल रियासत की तारीख नहीं जानते उनके लिए झक सफेद रंग की ये वसी इमारत लोकायुक्त दफ्तर की इमारत भर है। बाकी भोपाल के पुराने या कदीमी बाशिंदों के लिए पुराने शहर के स्टेट बैंक चोराहे पे बनी ये भेतरीन इमारत किसी तार्रुफ की मोहताज नहीं हेगी। मियां जो लोग नईं जानते उनके इल्म में इजाफा करता चलूं के ये अपने सूबे का पेला विधान भवन या लेजिस्लेटिव कॉउंसिल की बिल्डिंग है। शहर की तारीख को जानने वालों के मुताबिक नवाब सुलतान जहां ने 1919 में इसे तामीर करवाया था। तभी से इसे लेजिस्लेटिव काउंसिल के नाम से जाना गया। नवाबी दौर में नवाब सुल्तान जहां बेगम लेजिस्लेटिव कॉउंसिल के मेम्बरों का इंतखाब (चुनाव) खुद करती थीं। हालांकि नवाब की इस प्रोसेस को उस वक्त राजतंत्र के मुखालिफ नेता जम्हूरियत का मजाक बताते थे।


    नवाब हमीदुल्ला खां के जमाने में इस इमारत में स्टेट लाईब्रेरी बना ली गई थी। कुछ वक्त बाद उस लाइब्रेरी को हटा कर यहां भोपाल स्टेट का म्यूजियम बना दिया गया। जून 1949 में भोपाल रियासत के भारत मे मर्ज हो जाने के बाद जब सन 1952 में भोपाल स्टेट की 20 मेम्बरों वाली पहली विधान सभा वजूद में आई तब 2 जून 1952 में इसी इमारत में विधान सभा का पेला सेशन मुनक्कीद हुआ था। जब नवंबर 1956 में मध्य प्रदेश बना तब यहां राज्य पुनर्घटन विधेयक पास हुआ था और उसी दिन मध्य प्रदेश अपने नए स्वरूप में सामने आया था। उस वक्त सूबे के पेले सीएम पंडित रवि शंकर शुक्ल थे। जबकि नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद तामोट और विधानसभा अध्यक्ष पंडित कुंजीलाल दुबे थे। विधानसभा में कांग्रेस के 26 और दूसरी पार्टियों के 4 विधायक थे। इसके बाद इस इमारत को सामान्य प्रशासन विभाग को सौंप दिया गया। तब यहां सीएम सचिवालय और मुख्य सचिव का दफ्तर लगने लगा और विधान सभा मिंटो हाल में चली गई। ये वो दौर था जब वल्लभ भवन नहीं बना था। तब सचिवालय आज के कलेक्टोरेट और कमिश्नर कार्यालयो में लगता था। इसी लिए आज भी उन इमारतों को ओल्ड सेक्रेट्रिएट कहा जाता है। आज इस इमारत में लोकायुक्त का दफ्तर लगता है।

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