ईदगाह हिल्स के टॉप पे बना हुआ है जवाहर लाल नेहरू कैंसर अस्पताल एवम अनुसंधान केंद्र। पूरे मुल्क में ये वाहिद ऐसा कैंसर अस्पताल हेगा जिसकी तामीर एक ऐसे कैमिटेड सहाफी (पत्रकार) ने की थी जिसका नाम ईमानदारी और आमफहम की खिदमत के जज्बे के लिए बड़े अदब से लिया जाता है। जीहां आपका कयास सही है। इस अस्पताल को बनाने वाले पत्रकार मरहूम मदन मोहन जोशी ने अस्सी की दहाई के आखिर में एक ऐसा कैंसर अस्पताल बनाने का ख्वाब देखा था जो पूरे मुल्क में नजीर बने। उसूलन वो चाहते थे कि यहां गरीब कैंसर के मरीजों को बहुत ही सस्ते में बेहतर इलाज मिले। ये वो दौर था जब सूबे में प्राइवेट तो दूर की बात है कोई सरकारी कैंसर का अस्पताल भी नहीं था। जोशी साब ने 1989 में अपने असर रसूख और ताल्लुकात की बिना पे सरकार से लीज पे ये जमीन अलॉट कराई और इस अस्पताल की तामीर शुरू करवाई। सरकारी अनुदान और अपने संपर्कों की इमदाद से उन्ने अपने इस ख्वाब को पूरा किया। यहां कैंसर के इलाज की हर वो सहुलत मुहैया कराई गई जिसके लिए लोग बॉम्बे जाया करते थे। जब तलक जोशी साब हयात थे तब तलक जवाहर लाल पे उंगली उठाने की कोई जुर्रत नहीं कर सकता था।
यहां गैस पीडि़त कैंसर मरीजों का सरकारी मदद से इलाज भी शुरू हो गया था।सात बरस पेले जोशी जी गुजर गए। इसके बाद से इस कैंसर अस्पताल की सफेद झक इमारत पे करप्शन, दवाओं में कमीशन और परिवारवाद के इल्जाम लगने लगे हैं। गुजिश्ता दिनों यहां डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन मेजर जनरल रावत ने कथित रूप से दवा की खरीदी में कमीशन और कुछ दूसरे घपलों के इल्जाम लगाए। जाहिर है उनको ओहदे से हटा दिया गया। गर परिवारवाद की बात करें तो बताया जाता है की जोशी साब की अहलिया (पत्नी ) श्रीमती आशा जोशी इस अस्पताल की चेयरपर्सन हैं। इनकी इकलौती बिटिया दिव्या जोशी पाराशर सीईओ हैं। वहीं दिव्या मोहतरमा के फरजंद धनंजय पाराशर को यहां प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनाया गया ही। जोशी साब के भतीजे राकेश जोशी यहां एडिशनल डायरेक्टर हैं। आशा जोशी के भतीजे विकास सेठ के पास अस्पताल के केंटीन का काम है। इल्जाम है की परिवार की तनख्वाह सहित दूसरी सहुलतों के लिए हर साल डेढ़ पोने दो करोड़ खर्च हो रहे हैं। जोशी साब के दोस्त रहे वेटरन जर्नलिस्ट लज्जा शंकर हरदेनिया ने भी सोशल मीडिया पे अस्पताल के इंतजामिया पे कई इल्जाम लगाए हैं। उन्होंने लिखा है की ये अस्पताल मदन मोहन जोशी का स्मारक है और इसे उनके नाम का एहतराम करना चाहिए। इल्जामात की लिस्ट भोत लंबी बताई जाती है। मसलन दवा खरीदी में भयंकर कमीशन, सीईओ का खुद के लिए बंगला बनवाने की कोशिश वगेरह। बहरहाल हमारा केना ये हेगा साब के सूबे के जहीन पत्रकार रहे मरहूम मदन मोहन जोशी साब के ख्वाब पे किसी तरा का का कीचड़ न उछले इसकी जिम्मेदारी अस्पताल की चेयरपर्सन श्रीमती आशा जोशी पे कुछ ज्यादा आयद होती है। वो देख भी रही होंगी की इन दिनों कुछ अखबार और सोशल मीडिया पे अस्पताल के सिस्टम पे संजीदा सवाल उठाए जा रहे हैं। मरहूम जोशी साब ने सूबे में सहाफियों की लंबी फ़ौज खड़ी करी है। जाहिर है उनके जाने के बाद ये लोग आपके बच्चों जैसे हैं। लिहाजा हम उम्मीद करते हैं की आपके इंतजामिया पे जो भी इल्जामात हैं आप उनका सिलसिलेवार जवाब दें। हमने सुना है कि कोई आपको ब्लैकमेल कर रहा है। गर ऐसा है तो उसका नाम भी आप सामने लाएं। ताकि दूध का दूध पर पानी का पानी हो सके, और जोशी साब ने इस अस्पताल की जो साफ शफ्फाफ मूरत बनाई थी वो बरकरार रह सके। उम्मीद है श्रीमती आशा जोशी इस पूरे मसले को जाती तौर पे देखेंगी। यकीनन इससे मरहूम मदन मोहन जोशी साब की रूह को भी तस्कीन मिलेगी।
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