नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण से मुकाबले के लिए भारत लगातार टीकाकरण की क्षमता को बढ़ाने में लगा हुा है। 7 अगस्त को जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन के आपात इस्तेमाल को मिली मंजूरी के साथ देश में फिलहाल पांच वैक्सीन उपलब्ध हैं। जल्द ही यह आंकड़ा बढ़कर छह होने वाला है। सूत्रों से मिल रही जानकारियों के मुताबिक इसी हफ्ते जायडस कैडिला कंपनी की वैक्सीन को भी इस्तेमाल की मंजूरी मिलने की उम्मीद है।
अहमदाबाद स्थित फार्मास्युटिकल प्रमुख कंपनी जायडस कैंडिला ने अपनी वैक्सीन ज़ायकोब-डी के आपातकालीन उपयोग के लिए ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से मंजूरी की मांग की थी, हालांकि डीसीजीआई ने कंपनी को और डाटा उपलब्ध कराने को कहा था। अब उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण (ईयूए) से इसे मंजूरी मिल सकती है। अगर इस टीके को स्वकृति मिलती है तो यह देश की तीसरी स्वदेशी वैक्सीन होगी।
इसके पहले देश में स्वदेशी कोविशील्ड और कोवैक्सीन को प्रयोग में लाया जा रहा है। तमाम मीडिया रिपोर्टस में ज़ायकोब-डी वैक्सीन को कई मामले में खास माना जा रहा है। रिपोर्टस के मुताबिक यह बच्चों के इस्तेमाल के लिए भी उपयुक्त मानी जा रही है, देश में फिलहाल बच्चों की वैक्सीन के लिए परीक्षण जारी है। आइए इस लेख में ज़ायकोब-डी वैक्सीन से जुड़ी सभी आवश्यक बातों को जानने की कोशिश करते हैं।
क्यों खास मानी जा रही है यह वैक्सीन?
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक भारत सरकार से जायडस कैडिला की वैक्सीन को इस हफ्ते मंजूरी मिल सकती है। देश में टीकाकरण की रफ्तार को और तेज करने की दिशा में यह वैक्सीन काफी महत्वपूर्ण हो सकती है। ज़ायकोब-डी, भारतीय दवा निर्माता जायडस कैडिला द्वारा तैयार की गई वैक्सीन है।
Zydus Cadila’s COVID19 vaccine is expected to get approval this week: Sources
— ANI (@ANI) August 9, 2021
डीसीजीआई से मंजूरी मिलने के बाद यह देश की तीसरी स्वदेशी वैक्सीन हो सकती है। कई मामलों में इसे सबसे खास माना जा रहा है। इस वैक्सीन की सबसे खास बात यह है कि यह दुनिया की पहली डीएनए प्लाजमिड वैक्सीन होगी। इतना ही नहीं देश में लग रही कोरोना की बाकी तीन वैक्सीनों से अलग ज़ायकोब-डी के तीन डोज देने की जरूरत होगी।
दुनिया की पहली डीएनए आधारित कोविड वैक्सीन
जायकोब-डी को इसकी डीएनए आधारित तकनीक सबसे खास बनाती है। वैज्ञानिकों को वैक्सीन के नैदानिक परीक्षणों में प्रभावशाली परिणाम देखने को मिले हैं। कंपनी ने अब तक देश के 50 से अधिक केंद्रों में वैक्सीन का सबसे बड़ा क्लिनिकल परीक्षण किया है।
जायकोब-डी एक प्लास्मिड डीएनए वैक्सीन है जो प्लास्मिड नामक डीएनए अणु के गैर-प्रतिकृति वर्जन का उपयोग करके तैयार की गई है।
यह शरीर में सार्स-सीओवी-2 वायरस के मेंब्रेन पर मौजूद स्पाइक प्रोटीन का एक हानिरहित वर्जन तैयार करने में मदद करेगी, जिससे भविष्य में संक्रमण के खिलाफ आसानी से सुरक्षि प्राप्त की जा सकेगी। कंपनी का कहना है कि वैक्सीन को मंजूरी मिलते ही इसके तेजी से उत्पादन को बढ़ा दिया जाएगा। हर साल इस वैक्सीन के 10-12 करोड़ डोज के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य के आधार पर देश में टीके की मांग को आसानी से पूरा किया जा सकेगा।
टीकाकरण के लिए निडिल की नहीं होगी जरूरत
ज़ायकोब-डी की एक और सबसे खास बात यह है कि इसे इंजेक्ट करने के लिए अन्य वैक्सीनों की तरह निडिल की जरूरत नहीं होगी। निडिल की बजाय जेट इंजेक्टर के माध्यम से इसके टीके दिए जाएंगे। जेट इंजेक्टर एक विशेष प्रकार का उपकरण है जिसमें गैस या स्प्रिंग से बने दवाब के माध्यम से त्वचा में इसके टीके दिए जाते हैं। इस माध्यम से लगने वाले टीकों में दर्द का अनुभव नहीं होगा। निर्माताओं की दावा है कि यह वैक्सीन कई मामलों में बेहद असरदार हो सकती है। कोरोना के कई घातक वैरिएंट्स से मुकाबले के लिए अध्ययन में इस वैक्सीन को काफी प्रभावी पाया गया है।
किशोरों के लिए भी उपयुक्त है यह वैक्सीन
ज़ायकोब-डी को आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण से मंजूरी मिलने के साथ ही देश की एक और बड़ी समस्या का हल निकल जाएगा। कैडिला हेल्थकेयर के प्रबंध निदेशक शरविल पटेल कहते हैं, यह वैक्सीन न केवल वयस्कों बल्कि 12 से 18 वर्ष के किशोरों के लिए भी प्रभावी साबित हुई है।
भारत में फिलहाल बच्चों के लिए वैक्सीन की परीक्षण किया जा रहा है। कोरोना की संभावित तीसरी लहर का खतरा बच्चों में अधिक बताया जा रहा है, इसका मुख्य कारण उनका अब तक टीकाकरण न हो पाना है। यह वैक्सीन उस दिशा में भी सरकार की चिंता का निवारण कर सकती है।
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