आने वाले दिन भूमाफियाओं पर फिर भारी…बचे-खुचे आ सकते हैं लपेटे में…
मुख्यमंत्री की कुर्सी आने वाले उपचुनाव के परिणामों के पाए पर टिकी है… हालांकि मैच के पहले ही कांग्रेस के विकेटों को चटकाकर अपनी स्थिति मजबूत करने में लगे हैं, लेकिन राजनीतिक कसरत के साथ ही जनता की अपेक्षाओं से भी लडऩा जरूरी है… लिहाजा कोरोना पर नाकामी और नियंत्रण की बहस से बाहर निकलकर कुछ ऐसा करना चाहते हैं, ताकि जनमानस में उनकी आक्रामक और ईमानदार छवि बन सके… और इसके लिए बेईमानों की धरपकड़ का पुराना फार्मूला उसी तरह नई बोतल में लाया जाएगा, जिसका नशा वो शहर को पहले भी करा चुके हैं… कमलनाथजी ने भी उसी फार्मूले की बची शराब छलकाते हुए जहां जीतू सोनी के साम्राज्य को तहस-नहस किया, वहीं इंदौर के पुराने माफियाओं पर डबल अटैक करते हुए चम्पू-चिराग, हैप्पी-बॉबी जैसे लोगों से भी पुरानी वसूली की… अब शिवराजजी के पास वैसे तो कोई माफिया फाइल बची नहीं है, लेकिन आने वाले दिनों में इंदौर में अब तक शह और मात का खेलकर बच रहे कुछ गुर्गे शिकार होने वाले हैं, जिन्होंने पूर्व की शिवराज सरकार से लेकर कमलनाथ सरकार तक को छकाकर अपना रुतबा बढ़ाया… इन शातिरों की फाइलें खुल चुकी हैं… बस माफियाओं के सींखचों में जाने की देर है…
भंवर में फंसे शेखावत… इंदौर की राजनीतिक नौका से पार लगाएंगे नैया…
बदनावर से बेदखल होने के बाद इंदौर में अपनी जमीन तलाशते राजनीति के पुरातत्व गुरु भंवरसिंह शेखावत जनता के दिमाग से अपने परिचय की भूलभुलैया मिटाने के लिए कभी कैलाश विजयवर्गीय, सुमित्रा महाजन पर हमला बोलते हैं तो कभी जनता के जख्मों को कुरेदकर उन पर बगावत की फूंक मारते नजर आते हैं… पूरे लॉकडाउन में घर बैठे शेखावतजी को अनलॉक रास नहीं आ रहा है, इसलिए जुबानी जमा खर्च करते भंवर दादा नए-नए नुस्खे परोसते हुए कभी पूरा शहर खोलने और दो दिन बंद रखने जैसी प्रदेशभर की शराब शहर में ढोलने की कोशिश जरूर कर रहे हैं…यदि इसके बाद शहर में कोरोना फैला तो क्या करेंगे… इस सवाल का जवाब देने पर चुप्पी साध लेते हैं… वैसे भी कोरोना के भंवर में फंसे शहर में शेखावतजी ने लॉकडाउन के दौरान किसी की भी चवन्नी की भी मदद नहीं की…न उन्होंने भोजन बंटवाया न अस्पतालों में नजर आए और न बायपास पर चेहरा दिखाया, न जूझते प्रशासन और संघर्ष करते लोगों को सहयोग या सांत्वना दी… तीन महीने तक घर में दुबके शेखावतजी अभी इसलिए मुखर हो रहे हैं, क्योंकि उनके बदनावर का बजाजखाना लुट चुका है और इंदौर में बची-खुची साख की चिंदी से उन्हें सूट सिलवाना है…
ऑनलाइन सुनवाई से ऑफलाइन हुए न्यायमूर्ति
अपने बाबुओं के कोरोना संक्रमित निकलने के बाद हाईकोर्ट के जज भी बेहद सदमे में हैं, जो इन बाबुओं के सम्पर्क में आए… दरअसल मुकदमों की सुनवाई भले ही ऑनलाइन हो रही हो, पर उन मुकदमों की फाइल लाने-ले जाने और प्रकरणों की जानकारी देने तथा फैसलों को टाइप करने का काम वो ही बाबू कर रहे हैं, जो कोरोना का शिकार हो रहे हैं…जब हाईकोर्ट के कई कर्मचारी एक साथ कोरोना के शिकार हुए तो जजों ने अपने लिए न्याय करते हुए कोर्ट को ही बंद कर दिया…अब अदालतें खोलीं भी जाएंगी तो बाबुओं से दूरी बनाने की पूरी सजगता दिखाई जाएगी…
श्रोत्रिय के विवेक ने समझा लोगों का दर्द
निगम द्वारा जहां संपत्तिकर बढ़ाया जा रहा है… अधिभार भी नहीं हटाया जा रहा है… बिजली के बिलों में भी राहत नहीं मिल पा रही है…बैंकें भी ब्याज माफ करने में हाथ ऊंचे दिखा रही हैं… वहीं प्राधिकरण ने ब्याज माफी और किस्तों की अवधि बढ़ाकर राहत का जो फैसला लिया है उसमें प्राधिकरण के सीईओ विवेक श्रोत्रिय का विवेक काम आया, जिन्होंने कोरोना काल में क्वारेंटाइन सेंटर से लेकर शहर में फंसे हजार लोगों को घर भिजवाने में अहम भूमिका निभाई थी…
आधा बंद, आधा खुला… सभी का मुंह फूला…
प्रशासन कोरोना पर नियंत्रण के चक्कर में तरह-तरह के प्रयोग करने में जुटा रहता है…कभी बाजार बंद कराए जाते हैं तो कभी अगल-बगल बंद-चालू कराया जाता है… कहीं मंडियों में ताले लगाए जाते हैं तो अब लेफ्ट-राइट के नुस्खे आजमाए जा रहे हैं…इस प्रयोगशाला का नतीजा चाहे जो हो, लेकिन व्यापार-कारोबार ठप-सा पड़ा है…तीन दिन बंद…तीन दिन चालू रखने वाले कारोबारी बिजली का बिल पूरा भर रहे हैं… संपत्ति कर से लेकर किसी भी कर में राहत नहीं पा रहे हैं… कर्ज का ब्याज चुका रहे हैं…लेकिन इससे बड़ी मुसीबत यह है कि आधे दिन के काम में पूरे महीने का वेतन चुकाना एक बड़ी मुसीबत बना हुआ है…काम करने वालों की तनख्वाह काट नहीं सकते हैं और पूरा वेतन दे नहीं सकते हैं, लिहाजा काम करने वाले कर्मचारियों को घटाया जा रहा है…लोग बेरोजगार हो रहे हैं…कोरोना हारे न हारे कारोबार हार चुका है…दुकानें बंद हैं, लेकिन दुकानदार रोज आते हैं…पटियों पर बैठकर ग्राहकों को निहारते हैं… उन्हेें दूसरे दिन आने के लिए समझाते हैं…
और अंत में…
तुलसी सिलावट के जीतने से रमेश मेेंदोला मंत्री बनें या न बनें, लेकिन उनके समर्थकों का मानना है कि यदि तुलसी चुनाव हारते हैं तो इंदौर के एक मंत्री की सीट खाली हो जाएगी और उसके बाद दादा का दावा और मजबूत हो जाएगा…
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