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बेटी के इलाज के लिए बच्चे को बेचा, ईयू बोला- आर्थिक रूप से ढहने के कगार पर अफगानिस्तान

October 04, 2021

काबुल। अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबानी आतंकियों (Taliban militants) के कब्जे के बाद से आम नागरिकों का जीवन नर्क हो चुका है। बगलान प्रांत (Baglan Province) में एक विस्थापित महिला लैलुमा(laluma) ने 13 साल की बेटी के इलाज के लिए डेढ़ साल के नवजात शिशु को ही बेच(Sold the child for the treatment of the daughter) दिया। इसके बदले उसे 30 हजार अफगानी (यहां की मुद्रा) मिले।
टेंट में गुजर-बसर करने वाली लैलुमा(laluma) ने बताया कि बेटी के इलाज के लिए कोई और तरीका नहीं बचा था। उसका पति पिछले साल से लापता है। कई अन्य परिवार भी अभाव में दिन गुजार रहे हैं। टेंट में रहने से बच्चे सर्दी से बीमार पड़ रहे हैं। तालिबानी सरकार (Talibani Government) इस्लामी एजेंडा लागू करने में मशगूल है, इन लोगों की मदद के लिए उसने कोई योजना नहीं बनाई है। कई परिवार भूखे रहकर बच्चों को किसी तरह बचाने में जुटे हैं।



मानव अंग बेचने के लिए 12 साल की लड़की की हत्या
एक अन्य मामले में काबुल में 70 साल के व्यक्ति पर 12 साल की लड़की की हत्या का आरोप लगा। वह लड़की के अंग बेच कर पैसा कमाना चाहता था। तालिबान ने उसे गिरफ्तार किया, लेकिन सुबूत के अभाव में रिहा कर दिया। लड़की व्यक्ति के परिवार के लिए बाजार से सौदा लाती थी। हत्या के बाद उसके अंगों को अपराधी ने एक बॉक्स में बंद कर दिया था।

महिलाओं को काम करने की छूट देकर ही संकट से उबर सकता है अफगानिस्तान
अफगानिस्तान को विकट हालात से उबरने के लिए महिलाओं को काम करने की छूट देने की जरूरत है। यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसफ बोरेल ने रविवार को ब्लॉग में लिखा कि यह देश सामाजिक व आर्थिक तौर पर ढहने की कगार पर है। जरूरी है कि तालिबान कम से कम अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की महिलाओं को अपना काम करने दें। बोरेल ने कहा कि अब भी 1996-2001 जैसे ही हालात हैं। मानवाधिकारों का उल्लंघन और लड़कियों को पढ़ने से रोकना साबित करता है कि तालिबान का दृष्टिकोण अब भी वैसा ही है। बोरेल ने कतर के अधिकारियों से पिछले हफ्ते बात की थी।

स्कूलों में शिक्षकों की कमी
काबुल में लड़कों के स्कूल की महिला शिक्षिकाओं को भविष्य अंधकार में नजर आ रहा है। तालिबान ने उन्हें काम करने से रोक दिया है। 33 साल से रसायन पढ़ा रही अजीजा ने बताया कि वे घर पर रहने को मजबूर हैं। दूसरी ओर असदुल्लाह कोहिस्तानी जैसे स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझने लगे हैं। पुरुष शिक्षक सभी कक्षाओं के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

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