नई दिल्ली । ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष में 10 जून को 16 दिन में दूसरा ग्रहण (eclipse) होगा। ज्योतिषियों का कहना है यह ग्रहण 148 साल बाद वक्री शनि के साथ कंकणाकृति का होगा। भारत (India) में दिखाई नहीं देने से इसका भारत व राशियों पर असर नहीं होगा। यह ग्रहण उत्तरी अमेरिका (North America) के उत्तर पूर्वी भाग, उत्तरी एशिया, उत्तरी अटलांटिक महासागर में दिखाई देगा।
दो ग्रहण, अमावस्या व पूर्णिमा पर
कुछ क्षेत्रों में पूर्णिमा से पूर्णिमा तक एक माह व कुछ क्षेत्रों अमावस्या से अमावस्या तक एक माह मानते हैं। इस बार ज्येष्ठ की पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण एवं आषाढ़ की अमावस्या पर सूर्य ग्रहण एवं आषाढ़ की पूर्णिमा पर पुनरू चंद्र ग्रहण है। दोनों मतों से देखें तो एक महीने में दो ग्रहण आ रहे हैं।
मान्यता है कि यदि एक ही महीने में सूर्य-चंद्र दोनों का ग्रहण हो तो सेनाओं में हलचल मचने या शस्त्र प्रहार से राजाओं का नाश होता है। लेकिन इससे घबराने की आवश्यकता इसलिए नहीं है कि दोनों ग्रहण हमारे देश में दिखाई नहीं देंगे, इसलिए यह वैसा असर नही कर पाएंगे जैसा संहिता कहती है।
शास्त्रों में ग्रहण की मान्यता
पंडित जोशी ने को बताया कि यदि वृषभ में सूर्य या चंद्र ग्रहण होता है तो गौ का पालने करने वाले, चतुष्पदो और पूजनीय मनुष्यों को पीड़ित करता है। यह सूर्य ग्रहण वृषभ राशि में होगा एवं नक्षत्र मृगशिरा होगा। मृगशिरा नक्षत्र के स्वामी मंगल हैं। मकर राशि में स्थित वक्री शनि की पूर्ण दृष्टि मीन कर्क राशि में स्थित मंगल पर पड़ रही है। मंगल की गुरु पर दृष्टि एवं सूर्य-चंद्र, राहु एवं बुध की युति है। यह ग्रहों की स्थिति बड़े भूकंपन का कारण बनती है।
इसके साथ ही अन्य प्राकृतिक आपदा आने की संभावना भी हो सकती है। इस साल शनि भी मकर राशि में वक्री है एवं नीच का मंगल कर्क राशि में है। शनि के मकर राशि में वक्री रहते इससे पहले दो ग्रहण सन 1962 में 59 साल पहले 17 जुलाई 1962 को मांद्य चंद्र ग्रहण व 31 जुलाई 1962 को सूर्य ग्रहण हुए थे। पं. जोशी के अनुसार 10 जून के आसपास कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा आने की पूर्ण आशंका है। इसमें भूकंप एवं सुनामी सबसे मुख्य है।
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