भोपाल। शासन-प्रशासन के तमाम प्रयासों के बाद भी खेती लाभ का धंधा नहीं बन पा रही है। हर साल किसान उपज की दर बढ़ाने के लिए लाखों रुपए रासायनिक उर्वरकों पर खर्च कर रहा है। यही नहीं मिट्टी के पोषक तत्व बढ़ाने के लिए भी अलग से खाद का उपयोग किया जा रहा है। इसके अलावा बीज की किस्म बदलने का प्रयोग भी लगातार जारी है। इन सबके बावजूद किसान को एक तरफ जहां अपेक्षाकृत उपज की पैदावार नहीं मिल पा रही है तो वहीं किसानों को अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। यह स्थिति तब है जब गुना जिले में एक नही बल्कि तीन मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला हैं। इसके बावजूद वर्तमान में 50 प्रतिशत से कम किसान ही मिट्टी परीक्षण करा रहे हैं। यहीं नहीं जिन किसानों के पास मृदा स्वास्थ्य कार्ड मौजूद भी है, वे इसका उपयोग नहीं कर रहे हैं। इस तरह सरकार की महत्वपूर्ण योजना का लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। जानकारी के मुताबिक शासन ने मृदा परीक्षण के प्रति किसानों को जागरुक करने ग्रामीण स्तर पर किसान मित्र भी पदस्थ किए हैं। साथ ही विभाग के विकासखंड अधिकारियों को भी यह जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन इसके बावजूद किसान आज तक इतने जागरुक नहीं हो पाए हैं कि वह यह समझ पाएं कि मृदा परीक्षण कराना उनके लिए कितना जरूरी और उपयोगी है।
जिस पोषक तत्व की जरूरत नहीं वह उर्वरक डाल रहे
किसान व कृषि विभाग के अधिकारियों से चर्चा करने पर सामने आया है कि वर्तमान में ऐसे किसानों की संख्या बहुत अधिक है, जिन्हें मृदा परीक्षण के फायदे के बारे में जानकारी नहीं है। यही वजह है कि ऐसे किसान दूसरों की देखा देखी ऐसे उर्वरक का इस्तेमाल अपनी उपज बढ़ाने मेें कर रहे हैं जिसकी जरुरत न तो उस फसल को है और न ही उस खेत की मिट्टी को। इस तरह जानकारी के अभाव में किसान अपना फायदा करने के बजाए नुकसान ही कर रहा है। जिसका सबसे बड़ा परिणाम बीते तीन चार सालों में सोयाबीन की पैदावार में हुआ नुकसान है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved