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    सोशल मीडिया और विश्वसनीयता का संकट

  • October 06, 2020

    – प्रभुनाथ शुक्ल

    आज की दुनिया में सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति को नया आयाम दिया है। आभासी दुनिया और इंटरनेट ने वैचारिक आजादी का नया संसार गढ़ा है। अब अपनी बात कहने के लिए अखबारों और टीवी के कार्यालयों और पत्रकारों की चिरौरी नहीं करनी पड़ती है। उसका समाधान खुद आदमी के हाथों में है। अब वर्चुअल प्लेटफॉर्म खुद खबर का जरिया और नजरिया बन गया है। टीवी और अखबार की दुनिया वर्चुअल मीडिया के पीछे दौड़ रहीं है। अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में कुछ भी लिखा- पढ़ा जा सकता है किसी को रोक-टोक नहीं है।

    अभिव्यक्ति का संवाद इतना गिर चुका है कि उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है। विचार के नाम पर ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सप, इंस्टाग्राम और न जाने कितनी अनगिनत सोशल साइटों पर कुछ लोगों की तरफ से गंदगी फैलाई जा रही है। अनैतिक बहस और विचारों के शाब्दिक युद्ध को देख एक अच्छा व्यक्ति कभी भी सोशल मीडिया पर कुछ कॉमेंट नहीं करना चाहेगा। वर्चुअल मंच पर विचारों का द्वंद देखना हो तो किसी चर्चित मसले पर ट्विटर और फेसबुक के कॉमेंट्स आप देख सकते हैं।

    वर्चुअल प्लेटफ़ॉर्म ने लोगों को बड़ा मंच उपलब्ध कराया है, लेकिन उसका उपयोग सिर्फ़ सामाजिक, राजनैतिक और जातिवादी घृणा फैलाने के लिए किया जा रहा है। इतने भ्रामक और आक्रोश फैलाने वाले पोस्ट डाले जाते हैं कि जिसे पढ़कर दिमाग फट जाता है। समाज में जिन्होंने अच्छी प्रतिष्ठा, पद और मान हासिल कर लिया है उनकी भी वॉल पर कभी-कभी कितनी गलत पोस्ट की जाती है। आजकल पूरी राजनीति वर्चुअल हो गई है। कोरोना संक्रमण काल में यह और तीखी हुई है। सत्ता हो या विपक्ष सभी ट्विटर वार में लगे हैं।

    सोशल मीडिया पुरी तरह सामाजिक वैमनस्यता फैलाने का काम कर रहा है। हालांकि वर्चुअल प्लेटफ़ॉर्म पर देश की नामी-गिरामी सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक, फिल्मकार, संगीतकार, अधिवक्ता, पत्रकार, चिंतक, वैज्ञानिक और समाज के हर तबके के लोग जुड़े हैं। लोग सकारात्मक टिप्पणी करते हैं। लोगों के अच्छे विचार भी पढ़ने को मिलते हैं। इस तरह का तबका काफी है। उनकी बातों का असर भी व्यापक होता है। लेकिन इंसान की जिंदगी बाजारवाद बन गई है, जिसकी वजह से बढ़ती स्पर्धा, सामंती सोच हमें नीचे धकेल रही है। अपना स्वार्थ साधने के लिए मुट्ठी भर लोग विद्वेष फैला रहे हैं।

    पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक बेटी के साथ हुई अमानवीय घटना ने पूरी इंसानियत को शर्मसार कर दिया। इसकी वजह से योगी सरकार घिर गई है। राजनैतिक विरोधी सरकार की आलोचना में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। पूरे देश में हाथरस एक अहम मुद्दा बन गया है। अब इस जघन्य अपराध को भी जातीय और सियासी चश्मे से देखा जा रहा है। विकास दुबे एनकाउंटर के बाद यह दूसरा बड़ा मुद्दा है जिसे विरोधी योगी सरकार पर जातिवाद को संरक्षण देने का आरोप लगा रहे हैं।

    विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद वर्चुअल मीडिया पर यह बहस अभी ब्राह्मण और ठाकुरवाद के बीच थी, लेकिन अब यह दलित और ठाकुरवाद के बीच हो गई है। जबकि इस तरह के आरोप निराधार हैं। लेकिन एक तथ्यहीन जातिवादी टिप्पणी को खूब घुमाया जा रहा है। ट्विटर पर तो यह बहस इतिहास खंगालने लगी है। यूजर्स व्यक्तिगत गाली-गलौज पर उतर आए हैं। जातिवाद की लामबंदी दिखती है। इस तरह की बहस देखकर आप ख़ुद शर्मसार हो जाएंगे कि हमारा समाज कहां जा रहा है। हम मंगल पर दुनिया बसाने की बात करते हैं लेकिन सोच कितनी गिर गई है इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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