इंदौर (Indore)। चार वर्ष की एक मासूम बच्ची के साथ क्रूरतापूर्ण बलात्कार करने वाले एक नाबालिग को निचली अदालत से मिली दस साल की सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर की गई अपील पर जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने इस कठोर टिप्पणी के साथ अपील खारिज कर दी कि नाबालिग है तो क्या हुआ, दुष्कर्मियों से उदार रवैया नहीं बरता जाना चाहिए। न्यायमूर्ति ने अपने आदेश में व्यक्त गंभीर टिप्पणी की कॉपी भारत सरकार के लॉ सेके्रट्री को भेजने के भी निर्देश दिए हैं।
वर्ष 2017 की इस घटना के आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने 8 मई 2019 को दस साल के कठोर कारावास और अर्थदंड की सजा सुनाई थी। उसकी ओर से इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में क्रिमिनल अपील दायर की गई। कोर्ट ने उसकी ओर से दायर अपील खारिज करते हुए निर्देश दिए कि उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी किया जाए और उसकी सजा का शेष भाग भुगतने के लिए गिरफ्तार किया जाए। कोर्ट ने अपने आदेश में उल्लेखित किया है कि बड़ी गहन पीड़ा के साथ कहना पड़ रहा है कि देश में नाबालिग अपराधियों को लेकर अति उदार रवैया है और ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि विधायिका ने निर्भया हादसे से सबक नहीं लिया है, जो कि पीडि़त के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। मौजूदा प्रकरण में अपीलार्थी ने नाबालिग होते हुए किस तरह का राक्षसी कृत्य किया है। इस आपराधिक मनोवृत्ति का ही उदाहरण है कि अपराधी बाल जेल से फऱार भी हो चुका है और यह अपराधी किसी और को अपनी वीभत्सता का शिकार बनाने के लिए छिपा हुआ है और उसे कोई रोकने वाला नहीं है।
सजायाफ्ता दुष्कर्मी जेल से फरार और सजा के खिलाफ अपील दायर कर दी
वारदात के समय आरोपी नाबालिग था, इसलिए उसे बाल संप्रेषण गृह भेजा गया था। इसी बीच 13 नवंबर 2019 को वह बाल संप्रेषण गृह से भाग गया, जो लगभग पांच साल होने के बावजूद आज तक गिरफ्तार नहीं किया जा सका है और फरारी में ही दुष्कर्मी ने अपील दायर कर दी। वारदात के समय वह नाबालिग था, लेकिन अब बालिग हो चुका है।
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