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    तो इसीलिए इस बार श्राद्ध के तुरंत बाद शुरू नहीं होगी नवरात्रि 20 से 25 दिन की होगी देरी

  • September 06, 2020


    इंदौर। हर साल श्राद्ध पक्ष खत्म होते ही अगले दिन से नवरात्रि शुरू हो जाती है। श्राद्ध के अगले दिन ही नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि होती है, पर इस बार ऐसा नहीं होगा। हर बार तो श्राद्ध खत्म होते ही अगले दिन ही कलश स्थापना की जाती है, लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो रहा है। इस बार श्राद्ध समाप्त होते ही अधिकमास लग जाएगा। यही कारण है कि नवरात्रि 20 से 25 दिनों के अंतराल के बाद प्रारंभ होगी।
    श्राद्ध खत्म होते ही लगेगा अधिकमास
    आप यह जान लें कि इस बार श्राद्ध समाप्त होते ही अधिकमास लग जाएगा। अधिकमास से नवरात्रि 20-25 दिन आगे खिसक जाएगी।
    क्यों हो रहा है ऐसा
    दरअसल लीप वर्ष होने के कारण ऐसा हो रहा है। इसलिए इस बार चातुर्मास जो हमेशा चार महीने का होता है, इस बार पांच महीने का होगा। ज्योतिष की मानें तो 160 साल बाद लीप ईयर और अधिक मास दोनों ही एक साल में हो रहे हैं।
    चातुर्मास में रुक गए मांगलिक कार्य
    चातुर्मास लगने से विवाह, मुंडन, कर्ण छेदन जैसे मांगलिक कार्य नहीं हो रहे। इस काल में पूजन-पाठ, व्रत-उपवास और साधना का विशेष महत्व है। इस दौरान देव सो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद ही देव जागते हैं।
    इस दिन से शुरू होगा अधिकमास
    इस साल 17 सितंबर 2020 को श्राद्ध खत्म होंगे। इसके अगले दिन अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 17 अक्टूबर से नवरात्रि व्रत रखे जाएंगे। इसके बाद 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी, जिसके साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे। इसके बाद ही शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि शुरू होंगे।
    चातुर्मास में योगनिद्रा में लीन होते हैं भगवान विष्णु
    विष्णु भगवान के निद्रा में जाने से इस काल को देवशयन काल माना गया है। चातुर्मास में नकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं। इस मास में दुर्घटना, आत्महत्या आदि जैसी घटनाओं की अधिकता होती है। दुर्घटनाओं से बचने के लिए मनीषियों ने चातुर्मास में एक ही स्थान पर गुरु, यानी ईश्वर की पूजा करने को महत्व दिया है। इससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
    ऐसी मान्यता है कि
    भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में योगनिद्रा पर निवास करते हैं। इस दौरान ब्रह्मांड की सकारात्मक शक्तियों को बल पहुंचाने के लिए व्रत, पूजन और अनुष्ठान का भारतीय संस्कृत में अत्यधिक महत्व है। सनातन धर्म में सबसे ज्यादा त्योहार और उल्लास का समय भी यही है। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु की पूजा होती है।

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