साल 2015 में सैम ने अपनी सर्जरी करवाई. इसके ज़रिए उन्होंने अपनी लंबाई पांच फीट चार इंच से पांच फीट सात इंच बढ़ाई
टांगों को लंबा करवाने की ये प्रक्रिया कई तरह के रिस्क भी साथ लेकर आती है और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ लोगों को इस कारण लंबे वक़्त तक समस्या बनी रहती है.
मिडल स्कूल में पढ़ाई के दौरान सैम बैकर अपनी क्लास में सबसे लंबे बच्चे थे लेकिन हाई स्कूल के अंत तक उनके साथी उनसे काफ़ी लंबे हो चुके थे.
सैम बताते हैं, “जब मैं कॉलेज गया तो मुझे महसूस हुआ कि मैं लंबाई में बहुत लड़कों से छोटा हूँ और यहाँ तक कि लड़कियों से भी छोटा हूं.”
वो कहते हैं, “ये बात आपकी ज़िंदगी को प्रभावित करती है. सच कहूँ तो महिलाएँ अपने से लंबाई में छोटे लड़कों को डेट नहीं करतीं. सबसे मुश्किल तब था जब मुझे लगता था कि मुझे कभी जीवनसाथी नहीं मिल पाएगी.”
न्यूयॉर्क में रहने वाले 30 साल के सैम को तब भी उम्मीद थी कि शायद उनकी लंबाई बढ़ जाएगी लेकिन कहीं ना कहीं वो ये बात जानते थे कि उनकी लंबाई जितनी बढ़ सकती थी, बढ़ चुकी है.
वो कहते हैं, “मुझे हमेशा लगता था कि लंबे होने और सफल होने के बीच कोई रिश्ता है. इसलिए मुझे इसका हल खोजना था.”
क्या मैं कभी चल पाऊँगा?
सैम ने अपने विकल्प तलाशने शुरू किए लेकिन ऊँची एड़ी के जूते या स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज़ जैसे अस्थायी हल को लेकर वो ख़ुश नहीं थे.
जब उन्हें टांगों की लंबाई बढ़ाने की सर्जरी के बारे में पता चला तो उन्हें इसमें दिलचस्पी हुई. अपनी माँ से बात करने के बाद और सारे रिस्क के बारे में सोचने के बाद उन्होंने फ़ैसला किया कि उनकी समस्याओं का हल ऑपरेशन में ही है.
साल 2015 में उन्होंने सर्जरी करवाई और उनकी लम्बाई पाँच फुट चार इंच से बढ़ कर पाँच फुट सात इंच हो गई.
उन्होंने बताया, “डॉक्टर ने पहली बातचीत में ही मुझे स्पष्ट कर दिया था कि ये सर्जरी कितनी मुश्किल होने वाली है. मैं इस चिंता में था कि तीन इंच बढ़ने के बाद मैं क्या कर पाऊँगा. क्या मैं चल पाऊँगा? क्या मैं दौड़ पाऊँगा?”
“ऑपरेशन के बाद मेरी फ़िज़िकल थेरेपी हुई. हफ़्ते में तीन-चार दिन कुछ घंटों के लिए थेरपी होती थी. ये लगभग छह महीने तक चली. ये आपके स्वभाव को नम्र कर देने वाला अनुभव था.”
”ये पागलपन भी था कि अपनी दोनों टाँगे तोड़ कर फिर से चलना सीखो. देखने में तो ये एक कॉसमेटिक सर्जरी है लेकिन इसने मेरे मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत कुछ किया.”
टांगें लंबी करवाने की सर्जरी एक दर्जन से ज़्यादा देशों में होती है और कई मरीज़ इसके ज़रिए पाँच इंच तक अपनी लंबाई बढ़वा पाते हैं. ये कहना तो मुश्किल है कि हर साल कितने लोग ये सर्जरी करवाते हैं लेकिन क्लिनिकों का कहना है कि इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है.
ये संख्या अलग-अलग है. अमेरिका, जर्मनी और दक्षिण कोरिया के बड़े क्लिनिक्स में हर साल 100-200 ऐसे ऑपरेशन होते हैं. स्पेन, भारत, तुर्की और इटली में हर साल 20-40 ऐसे ऑपरेशन होते हैं. ब्रिटेन में ये संख्या क़रीब 15 है. जितने भी क्लिनिक्स में बीबीसी ने बात की, उन सभी में हर साल ये सर्जरी करवाने वालों की संख्या बढ़ी है.
ब्रिटेन में ये सर्जरी कम ही प्राइवेट क्लिनिकों में ही होती है और इसे केयर क्वॉलिटी कमीशन देखता है. यहाँ इस सर्जरी की क़ीमत 50 हज़ार पाउंड है. वहीं, अमेरिका में इसकी क़ीमत 75 हज़ार डॉलर से 2,80,000 डॉलर तक रहती है.
ये सर्जरी लंबी चलने वाली, महंगी और दर्दनाक है. इस सर्जरी की खोज करने वाले सोवियत डॉक्टर गेव्रिल इलिज़ारोव थे जो द्वितीय विश्व युद्ध से लौट रहे घायल सैनिकों का इलाज किया करते थे. बीते 70 साल में ये सर्जरी बेहतर हुई है लेकिन इसके कई मूल सिद्धांत अब भी पहले जैसे ही हैं.
टांग की हड्डियों में छेद करके उन्हें दो हिस्सों में तोड़ा जाता है. फिर सर्जरी से एक धातु की रॉड को हड्डी के अंदर लगाया जाता है और कई पेचों की मदद से उसे टिकाया जाता है. इस रॉड को हर दिन एक एक मिलीमीटर लंबा किया जाता है और तब तक किया जाता है जब तक मरीज़ की मनचाही लंबाई ना हो जाए और हड्डियाँ पूरी तरह न जुड़ जाएँ.
इसके बाद मरीज़ को कई महीनों तक चलने की रोज़ कोशिश करनी होती है. इस सर्जरी में कई जटिलताएं भी सामने आ सकती हैं जैसे किसी नस को नुक़सान पहुँच सकता है, खून के थक्के बन सकते हैं और हो सकता है कि हड्डियाँ फिर से जुड़ें ही ना.
मैंने अपनी लंबाई तीन इंच बढ़ाई
इस बात को बार्नी बहुत अच्छे से समझते हैं. साल 2015 में उन्होंने इटली में ये सर्जरी करवाई थी जिसके बाद उनकी लम्बाई तीन इंच बढ़ गई थी. दरअसल, उन्हें एक समस्या हुई थी जिसमें उनकी टांगों को सीधा करने की ज़रूरत थी. तो उन्होंने इसके इलाज के साथ-साथ टांगों को लंबा करवाने का भी फ़ैसला किया.
उन्हें आश्वस्त किया गया कि दोनों सर्जरी साथ में हो सकती हैं और रिकवरी का वक़्त भी प्रभावित नहीं होगा. लेकिन सर्जरी के बाद से अब तक वह समस्या झेल रहे हैं.
उनका कहना है, “अगर मैं 16 साल का होता तो शायद इतनी समस्या ना होती. लेकिन ऑपरेशन के वक़्त मैं 46 साल का था.”
“मेरी टांगों को खींचा गया लेकिन मेरी हड्डियाँ फिर पहले जैसी नहीं हो पायी. उनमें तीन इंच का गैप है- दो हड्डियाँ और उनके बीच में एक धातु की प्लेट है.”
बार्नी उस प्रक्रिया के दौरा के शारीरिक दर्द के बारे में भी बताते हैं. वो कहते हैं “ऐसा लग रहा था जैसे टांगों की नसें खींची जा रही थी. ऐसा वक़्त भी था जब आप दर्द से ध्यान हटा ही नहीं सकते. ये बहुत कष्टदायी था.”
बार्नी
बार्नी की हड्डियों में गैप होने के बावजूद, शरीर का भार लेने में सक्षम रॉड की वजह से वे चल-फिर तो पाते हैं लेकिन ये भी सच है कि उनकी स्थिति गम्भीर है.
“ऐसा भी एक पल था जब मुझे लगा कि मैं फँस गया हूँ. मैं ख़ुशक़िस्मत था कि मेरा परिवार और बॉस बहुत अच्छे हैं. लेकिन ये समस्या जब बढ़ जाती है तो सहयोग की ज़रूरत पड़ती है. एक बार जब चीज़ें बिगड़ती हैं तो वो और बिगड़ती चली जाती हैं.”
ये सर्जरी प्राइवेट क्लिनिक पर ही उपलब्ध है. कितने लोगों को सर्जरी के बाद इन जटिलताओं का सामना करना पड़ता है, इसे लेकर कम ही जानकारी मौजूद है.
लेकिन ब्रिटिश ओर्थोपिडिक एसोसिएशन के प्रोफ़ेसर हमीश सिंपसन ने इस सर्जरी के संभावित ख़तरों के बारे में बताते हैं.
वो कहते हैं, “पिछले दशकों में ये तकनीक काफ़ी बेहतर हुई है जिसकी वजह से सर्जरी भी सुरक्षित हुई है. लेकिन हड्डी बढ़ाने के साथ-साथ माँसपेशियां, नसें, रक्तवाहिनियाँ और त्वचा भी बढ़ानी पड़ती हैं जिसकी वजह से ये एक जटिल प्रक्रिया है और जटिलता पैदा होने की दर भी ज़्यादा है.”
ब्रिटेन के ओर्थोपिडिक सर्जन डॉक्टर डेविड गुडियर ने कहा कि वे ऐसी सर्जरी करवाने की चाह रखने वाले जिन लोगों से मिले हैं, उनमें मानसिक समस्याएँ देखने में आयी हैं. उनका कहना है कि जैसे-जैसे ज़्यादा लोग इस सर्जरी के विकल्प को अपना रहे हैं, उन्हें डर है कि लोग अपनी सेहत से ज़्यादा पैसे को प्राथमिकता ना देने लगें.
उन्होंने कहा, “जब लोगों के सामने ये विकल्प होगा कि वे सर्जिकल विशेषज्ञता वाले के पास जाएँ या सस्ती सर्जरी वाले के पास तो मुझे नहीं लगता कि लोगों को स्पष्ट तौर पर बताया जाएगा कि उनके साथ क्या ग़लत हो सकता है.”
“क्या होगा अगर आप कहीं बाहर से सर्जरी करवा आएँ और ब्रिटेन वापस आकर आपको सर्जरी की जटिलता का सामना करना पड़े? तो आप नैशनल हेल्थ सर्विस के ज़रिए मेरे जैसे डॉक्टर के पास आएँगे और हमें ही फिर आगे का देखना होगा.”
जिस दिन हमारी मुलाक़ात हुई, उससे अगले दिन ही बार्नी की टांग की हड्डी से धातु की प्लेट निकाली जानी थी, यानी सर्जरी के पाँच साल बाद. दर्द, ख़र्च और कई सालों की कोशिश के बाद भी उन्हें कम ही पछतावा है.
“बहुत से लोग होते हैं जिनके लिए सर्जरी सफल साबित होती है, वे चुपचाप अपनी ज़िंदगी जी रहे होते हैं. मेरी रिकवरी में अभी वक़्त लगेगा लेकिन मुझे लगता है कि मेरे लिए ऑपरेशन सही था. इसकी वजह से मुझे अपनी ज़िंदगी दोबारा बनाने का मौक़ा मिला, ख़ुद को उस पूर्वाग्रह से आज़ादी मिली जो ठिगने लोग अनुभव करते हैं.”
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