- जातियों की नाराजगी भी दोनों पार्टियों के लिए बढ़ा सकती हैं मुश्किलें
भोपाल। मप्र विधानसभा चुनाव 2023 की तैयारियों के लिए राजनीतिक दलों में गहमागहमी का माहौल है। प्रदेश के इतिहास में अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं, यहां कभी कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है तो कभी भाजपा ने। साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव की तस्वीर पिछले सभी चुनावों से एकदम अलग थी। यानी किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। कांग्रेस ने 114 सीट पर जीत हासिल की। वहीं, भाजपा 5 सीटें पीछे रहकर 109 पर अटक गई थी। राज्य में कांग्रेस ने सरकार बनाई, लेकिन करीब डेढ़ साल में ही यह सरकार गिर गई और भाजपा फिर से सत्ता में काबिज हो गई। पिछले चुनावों का गणित भले ही कुछ रहा हो, लेकिन साल 2023 के विधानसभा चुनाव की तस्वीर उलट नजर आ रही है। इस बार छोटी और क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा-कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकती हैं।
मप्र में जहां आम आदमी पार्टी ने बड़े स्तर पर दस्तक दे दी है, वहीं बहुजन समाज पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, समाजवादी पार्टी भी भाजपा और कांग्रेस का खेल बिगाडऩे के लिए तैयार बैठे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगले चुनाव में प्रदेश की सरकार बनाने में छोटे-छोटे राजनीतिक दलों की बड़ी भूमिका होगी। प्रदेश में पिछले कई दिनों से ओबीसी आरक्षण का मुद्दा गर्म है। आरक्षण संबंधी कई मुद्दे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। ऐसे में ओबीसी वर्ग के मतदाता रुष्ट नजर आ रहे हैं। अगर इन छोटे राजनीतिक दलों को ओबीसी का भी सहयोग मिल जाता है तो देश की राजनीति में नया रंग देखने को मिल सकता है।
इनमें हो सकता है गठबंधन
- तीन मुद्दे दे रहे चेतावनी: अगर पिछले चार-पांच महीने के राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर डालें तो प्रदेश की राजधानी में तीन बड़े राजनीतिक आयोजन हुए हैं। पहला 8 से 11 जनवरी 2023 तक करणी सेना ने विशाल धरना प्रदर्शन किया। पहले दिन ही 2 लाख से अधिक सवर्ण इस आंदोलन में शामिल हुए थे। दूसरा 12 फरवरी को राजधानी भोपाल में भीम आर्मी ने शक्ति प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन का नेतृत्व आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर रावण ने किया था। इस प्रदर्शन में भी करीब एक लाख से अधिक प्रदर्शनकारी शामिल हुए थे। पार्टी ने इसे दलितों का आंदोलन बताया था। तीसरा आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, संस्थापक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ 14 मार्च को भोपाल में सभा करने पहुंचे थे। भले ही भेज लाखों की भीड़ नहीं जुटा पाए, लेकिन इस दौरे के बाद मप्र की भंग पड़ी इकाई जीवित हो गई थी। सिंगरौली से आम आदमी पार्टी से चुनाव जीतकर महापौर बनी मध्य प्रदेश आम आदमी पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया। वहीं ग्वालियर में बड़ी सभा कर केजरीवाल ने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
- आदिवासी दलित और पिछड़ा वर्ग का गठजोड़ : मप्र में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं। सामान्य वर्ग के लिए 148, अनुसूचित जनजाति के लिए 47 और अनुसूचित जाति के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं। वहीं, अगर मतदाताओं की बात करें तो प्रदेश में करीब 48 प्रतिशत मतदाता ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं। राज्य में अनुसूचित जनजाति आबादी 17 प्रतिशत है और अनुसूचित जाति आबादी का प्रतिशत 21 प्रतिशत है। अगर इस गणित का आंकलन किया जाए तो छोटे दलों के आपस में मिलने से भाजपा, कांग्रेस के खेल बिगडऩे की आशंका और बलवती हो जाती है। प्रदेश में दलित आदिवासी और ओबीसी गठजोड़ बना कर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। अगर यह गठबंधन हुआ तो बुंदेलखंड की 25, ग्वालियर,चंबल 16 और विंध्य की 12, और महाकौशल की करीब 35 सीटों पर नए राजनीतिक समीकरण नजर आएंगे। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के परिणाम देखें तो पता चलता है कि कांग्रेस ने 114 सीटें जीतकर 40.09 प्रतिशत वोट प्रतिशत हासिल किया था। भाजपा 109 सीटों पर जीती थी, उसका वोट प्रतिशत 41 प्रतिशत था। वहीं निर्दलीयों की बात की जाए तो वे 4 सीटों पर जीत कर आये थे, पार्टी का वोट 5.8 प्रतिशत था। बहुजन समाज पार्टी ने 2 सीटें जीतकर 5 प्रतिशत मत हासिल किए थे। समाजवादी पार्टी 1 सीट पर जीती और उसका वोट प्रतिशत 1.3 था। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी 1 भी सीट नहीं जीत पाई, उसका प्रतिशत 1.8 था। वहीं नोटा को 1.4 प्रतिशत मत हासिल हुए थे। कुल मिलाकर देखा जाए तो इन छोटे दलों ने 7 सीटों के साथ 13.9 प्रतिशत वोट प्रतिशत हासिल किया था। 2018 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति की 47 रिजर्व सीटों में से भाजपा 16 पर काबिज़ हुई, जबकि कांग्रेस और जय आदिवासी संगठन ने साथ मिलकर 30 सीटें कब्जाई थी। अगर अनुसूचित जाति की सीटों की बात की जाए तो 35 रिजर्व सीटों में से भाजपा ने 18 और कांग्रेस 17 पर विजयी हुई। अगर 2013 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो 35 एससी सीटों में से भाजपा 28 सीटों पर जीती थी।
- 14 जिलों में बसपा-सपा का प्रभाव : मप्र में एससी और एसटी सीटों का प्रभाव तो है ही, लेकिन उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे 14 जिलों में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का जनाधार दिखता है। 2003 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ विधायक मध्यप्रदेश विधानसभा पहुंचे थे। राज्य के रीवा, दमोह, पन्ना, बालाघाट, सीधी, सतना, छतरपुर, टीकमगढ़, रायसेन, अशोकनगर, निवाड़ी में समाजवादी पार्टी का अच्छा खासा दबदबा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों ने भिंड, ग्वालियर पूर्व, रामपुर बघेलान में 50,000 से अधिक वोट हासिल किए थे। वहीं, देवताल, पौहारी सबलगढ़, जोरा में बसपा प्रत्याशियों ने 40000 से अधिक वोट पाए थे। लहार चंदेरी गुन्नौर सिमरिया सतना अमरपाटन और पथरिया में 30,000 से अधिक वोट बसपा प्रत्याशी में हासिल किए थे। ऐसे में अगर छोटे दल मिलकर गठबंधन करेंगे, तो भाजपा और कांग्रेस दोनों के सामने सिर फुटव्वल की स्तिथि पैदा हो सकती है।