– सियाराम पांडेय ‘शांत’
भारतीय वायुसेना की ताकत में और इजाफा होने में बस थोड़ा अंतराल शेष है। फ्रांस के मेरिनेक एयरबेस से उड़े 5 अति शक्तिशाली राफेल फाइटर विमान 29 जुलाई को भारत पहुंच जाएंगे।सात हजार किमी की अपनी यात्रा में यह राफेल विमान संयुक्त अरब अमीरात में रुके। मिराज 2000 जब भारत आया था तो कई जगह रुका था लेकिन राफेल एक स्टॉप के बाद सीधे अम्बाला एयरबेस पर उतरेगा।
समझा जा सकता है कि इन युद्धक राफेल विमानों के शामिल होने के बाद विश्व की चौथी सबसे बड़ी भारतीय वायुसेना की आकाश में ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। भारतीय वायुसेना की यह ताकत बहुत पहले बढ़ जाती लेकिन कांग्रेस के अनावश्यक राजनीतिक दबाव के चलते इस डील के पूरा करने में विलंब हुआ। कांग्रेस नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए। श्रेय और प्रेय की राजनीति में वह इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय भी ले गई। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा कि राफेल विमान की खरीद पर संदेह करने का कोई कारण समझ में नहीं आता। वर्ष 2019 में विजयदशमी के दिन जब दसाल्ट की ओर से भारत को एक राफेल विमान मिला और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने नारियल फोड़कर, ओम बनाकर उसका पूजन किया तब भी उनकी आलोचना हुई थी। खैर देर आयद-दुरुस्त आयद। अब जब पांच राफेल विमान भारत पहुंचने वाले हैं तो जाहिर है, कांग्रेस फिर इन विमानों की कीमतों में बढ़ोतरी का राग अलापकर सरकार को घेरने की कोशिश करे लेकिन यह भी उतना ही सच है कि भारत और चीन के बीच चल रही तनातनी के बीच भारतीय वायुसेना को राफेल की सख्त जरूरत थी।
वैसे भी फ्रांस से यह पहला रक्षा सौदा नहीं है। इससे पहले भी भारत ने फ्रांस के साथ रक्षा सौदे किए हैं। राफेल बनाने वाली दसाल्ट कंपनी ने वर्ष 1948 में ‘हरिकेन’ फाइटर जेट बनाया था। भारत ने वर्ष 1953 में 71 फाइटर जेट का ऑर्डर दिया था। पहले 4 फाइटर जेट अक्टूबर 1953 में भारतीय वायुसेना को सौंप दिए गए थे। ये सभी विमान राफेल की तरह से हवाई मार्ग से भारत पहुंचे थे। इस विमान की शानदार क्षमता को देखते हुए भारत ने 33 और तूफानी फ्रांस से खरीदे थे।
भारतीय वायुसेना के तूफानी ने 1961 में दमन और दीव में पुर्तगाली सैनिकों पर जोरदार हमला किया था। इसके बाद भारत और चीन के बीच युद्ध के दौरान तूफानी ने जासूसी उड़ान भरी थी। वर्ष 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान भी इस फाइटर जेट ने अपना जौहर दिखाया था। मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट के नेता लालडेंगा के स्वतंत्र घोषित कर लेने पर 4 मार्च 1966 को तूफानी ने आइजल में विद्रोहियों के ठिकाने पर जमकर हमला बोला था। 5 घंटे तक चले हवाई हमले के बाद लालडेंगा ने घुटने टेक दिए थे। दासो कंपनी का मिस्तेरे फाइटर जेट फ्रांसीसी वायुसेना का पहला ट्रांससोनिक एयरक्राफ्ट था। भारत ने 104 मिस्तेरे फाइटर जेट फ्रांस से खरीदे थे। इस फाइटर जेट पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान जमकर तबाही मचाई थी। मिस्तेरे ने बहुत नीचे तक उड़ान भरते हुए पाकिस्तान के टैंक, सैन्य ठिकानों, सशस्त्र वाहनों, तोपों, ट्रेनों और सैनिकों पर जमकर बम बरसाए थे। वर्ष 1965 के युद्ध में भारतीय वायुसेना के जांबाज पायलट त्रिलोचन सिंह ने जोरदार हमले कर पाकिस्तान के कई टैंक तबाह कर दिए थे। इसकी वजह से उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया। मिस्तेरे ने पाकिस्तान के चार एफ-86एफ, तीन एफ-104 फाइटर जेट को बर्बाद कर दिया था।
चीन से भारत में युद्ध जैसे हालात हैं, ऐसे में राफेल विमानों का भारत पहुंचना किसी खुशखबरी से कम नहीं है। इन विमानों को पाकर भारत चीन को मुंहतोड़ जवाब दे पाने में सक्षम हो सकेगा। ये विमान भारत को अनुबंध के अनुरूप बहुत पहले मिल जाने चाहिए थे लेकिन वैश्विक कोरोना महामारी के चलते इनकी आपूर्ति बाधित हो गई थी। इसी बीच चीन ने पूर्वी लद्दाख में भारतीय भूभाग पर कब्जे की कोशिश कर भारत को युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया है। फ्रांस ने भारत के आग्रह और जरूरत को देखते हुए राफेल विमानों की आपूर्ति की। फ्रांस ने वफादार दोस्त की भूमिका निभाई है, इसके लिए उसकी जितनी भी सराहना की जाए, कम है। पांचों राफेल की तैनाती एयरफोर्स के अंबाला एयरबेस में होनी है। माना जा रहा है कि ऐसा होने से पाकिस्तान के खिलाफ तेजी से एक्शन लेना मुमकिन हो सकेगा। अम्बाला एयरबेस चीन की सीमा से भी 200 किमी की दूरी पर है। अंबाला में 17वीं स्क्वाड्रन गोल्डन एरोज राफेल की पहली स्क्वाड्रन होगी।
इसमें शक नहीं कि राफेल डीएच (टू-सीटर) और राफेल ईएच (सिंगल सीटर), दोनों ही जुड़वा इंजन, डेल्टा-विंग, सेमी स्टील्थ कैपेबिलिटीज के साथ चौथी जनरेशन के युद्धक विमान हैं। परमाणु हमले की विलक्षण क्षमता इसे और भी खास बनाते हैं। इस फाइटर जेट को रडार क्रॉस-सेक्शन और इन्फ्रा-रेड सिग्नेचर के साथ डिजाइन किया गया है। इसमें ग्लास कॉकपिट है। इसके साथ ही एक कम्प्यूटर सिस्टम भी है, जो पायलट को कमांड और कंट्रोल करने में मदद करता है। इसमें ताकतवर एम 88 इंजन लगा हुआ है। राफेल में एक एडवांस्ड एवियोनिक्स सूट भी है। इसमें लगा रडार, इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन सिस्टम और आत्मरक्षा उपकरणों की लागत पूरे विमान की कुल कीमत का 30 प्रतिशत है। इस जेट में आरबीई 2 ए ए एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे रडार लगा है, जो लो-ऑब्जर्वेशन टारगेट को पहचानने में मदद करता है। 100 किमी के दायरे में भी टारगेट को डिटेक्ट कर लेता है। अपनी खूबियों और दक्षताओं के चलते जहां राफेल के भारत पहुंचने की खबर भर से चीन और पाकिस्तान के हौंसले पस्त हुए हैं, वहीं भारतीय वायु सेना के अधिकारियों और जवानों का मनोबल भी बढ़ा-चढ़ा है।
चीन और भारत की परेशानी और चिंता का सबब यह भी है कि राफेल सिंथेटिक अपरचर रडार भी है, जो आसानी से जाम नहीं हो सकता। जबकि, इसमें लगा स्पेक्ट्रा लंबी दूरी के टारगेट को भी पहचान सकता है। इन सबके अलावा किसी भी खतरे की आशंका की स्थिति में इसमें लगा रडार वॉर्निंग रिसीवर, लेजर वॉर्निंग और मिसाइल एप्रोच वॉर्निंग अलर्ट हो जाता है और रडार को जाम करने से बचाता है। इसके अलावा राफेल का रडार सिस्टम 100 किमी के दायरे में भी टारगेट को Ll डिटेक्ट कर लेता है। राफेल में आधुनिक हथियार भी हैं। जैसे- इसमें 125 राउंड के साथ 30 एमएम की कैनन है। यह विमान एकबार में साढ़े 9 हजार किलो का सामान ले जा सकता है। राफेल फाइटर जेट को और ज्यादा पावरफुल बनाया जा रहा है। वायुसेना इसे हैमर मिसाइल से लैस करवा रही है। इसके लिए आकस्मिक ऑर्डर कर दिए गए हैं।
गौरतलब है कि 31 जनवरी 2012 को, भारतीय रक्षा मंत्रालय ने घोषणा की थी कि दसॉल्ट राफेल भारतीय वायुसेना को 126 एयरक्राफ्ट की आपूर्ति करेगा। इसके अलावा 63 अतिरिक्त विमानों की खरीद का विकल्प देगा। पूर्व की कांग्रेस सरकार में पहले 18 विमानों को दसॉल्ट राफेल द्वारा आपूर्ति की जानी थी और शेष 108 विमानों का निर्माण हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा किया जाना था। दसॉल्ट से प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के साथ दसॉल्ट राफेल को सबसे कम बोली लगाने वाले के आधार पर चुना गया था। परन्तु सौदों को लेकर कांग्रेस सरकार किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई।
मोदी सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा फ्रांस की यात्रा के दौरान इस डील को आगे बढ़ाते हुए दोनों देशों ने इस पर अपनी सहमति दे दी थी। खैर, अब जब राफेल विमानों की खेप पहुंचने लगी है और शेष खेप दिसंबर तक पहुंच जाएगी तो इससे अच्छा और सकारात्मक प्रयास दूसरा कुछ हो नहीं सकता। राफेल की आंधी में चीन और पाकिस्तान तो उड़ेंगे ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधियों के भी मुंह बंद होंगे। इसकी एक वजह यह भी है कि मोदी सरकार में भारतीय सेना जितनी मजबूत हुई है, उतनी अन्य किसी भी सरकार में नहीं हुई थी लेकिन राफेल के आगमन के समय पर सवाल तो बनते ही हैं। सेना को मजबूत करने के प्रयास तो पहले से होने चाहिए।उसकी जरूरतों का विचार तो पहले किया जाना चाहिए।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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