भोपाल के डॉक्टर एसकेडी जैन नहीं रहे। 64 बरस की उमर में शुगर के अनियंत्रित हो जाने से उनका इन्तेकाल हुआ। उन्हें एक प्राईवेट अस्पताल में दाखिल कराया गया था, जहां उन्होंने आखरी सांस ली। गांधी मेडिकल कालेज से एमबीबीएस के बाद इन्होंने यहीं से ईएनटी में डिप्लोमा किया।
ओर भोपाल में कई गैस राहत अस्पतालों में मरीजों की खिदमत करने वाले डॉक्टर एसकेडी जैन की छवि किसी फकीर, फक्कड़ और फरिश्ता सिफ़त डॉक्टर की थी। आज के दौर में जहां डॉक्टरी एक धंधा हो गई है वहीं ये बन्दा सिर्फ खिदमते खल्क करता रहा। वो अपनी शर्तों पे जि़न्दगी जीते थे। अपने हर काम को लेके उनके ज़हन में एक जुनून और सनक सवार रहती रही। उन्होंने कभी किसी से इलाज के पैसे नहीं लिए। ये डॉक्टर ज़रूर थे बाकी इनके भीतर जैसे कोई सन्यासी समाया हुआ था। लिहाज़ा जीवन भर इन्होंने बजाए लेने के सिर्फ देने में भरोसा किया। ये डीआइजी बंगला, खान शाकिर अली और पल्मनरी मेडिसिन सेंटर जहांगीराबाद के बाद दो साल पहले रिटायरमेंट तक कोलार डिस्पेंसरी में मरीजों का इलाज करते रहे। ओशो के परम भक्त डॉक्टर जैन गुजिश्ता दस बारह बरसों से किसी सन्यासी की तरह जि़ंदगी बिता रहे थे। सफेद पाजामा, सफेद शार्ट कुर्ता और सफेद गमछा सर पर ओढे रहने वाले डक्टर जैन को मरीज़ देखता तो उसे शक होता कि ये डॉक्टर हैं या कोई बाबा।
ये अपने को बाबा योगी ध्यान गुरु कहते। मरीज़ को पर्ची लिखने के बाद उसे ध्यान और योग करने की सलाह देते। एसकेडी जैन जो ठान लेते उसे पूरा कर ही दम लेते। कोई दस सालों से इन्होंने पर्यावरण की खातिर वाहन चलाना छोड़ दिया था। घर से अस्पताल तक पैदल ही जाते। जहां भी जाना होता वहां पैदल ही जाते। दिन भर में करीब 30 किमी पैदल चलना इनका रूटीन हो गया था। पैदल चलने के अपने प्रण के चलते ये अपनी बेटी डॉक्टर सृष्टि की शादी में भी शामिल नहीं हुए। करियर की शुरुआत में डॉक्टर जैन समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए थे और समाजवादी नेता रघु ठाकुर के साथ काफी काम किया। बाद में जब सरकारी नोकरी में आये तो गरीब मरीजों की दिलो जान से खिदमत करना इनके किरदार में शामिल हो गया। डाकसाब कई ज़रूरतमंदों को खुद की तरफ से दवाये दे दिया करते। लिखने पढऩे के इन्तहाई शौकीन डॉक्टर जैन ने योग और ध्याम पे कई किताबें भी लिखीं। इनकी दरियादिली की मिसाल की सभी दाद देते हैं। किस्सा ये है कि करीब 34 बरस पहले इनके एक खास दोस्त का मुम्बई में इंतेक़ाल हो गया था। दोस्त की शादी चार दिन पहले ही हुई थी। डॉक्टर एसकेडी जैन को दोस्त की विधवा के मुस्तकबिल की फिक्र हुई। उन्होंने बिना वक्त गंवाए दोस्त की बेवा मंजू से शादी का प्रस्ताव रख दिया। ये वो दौर था जब जैन समाज मे दहेज चरम पर था। उस वक्त एमबीबीएस डाक्टर को लोग लाखों रुपये दहेज में देने को तैयार थे। इनके वालिद भी चाहते थे कि वे बजाए दोस्त की विधवा से शादी करने के उनके बताए रिश्ते में शादी करें। लेकिन डाकसाब ने फेसला सुना दिया कि वे बिना दहेज की शादी करेंगे। उनके इस फेसले को समाज मे काफी सराहा गया। ये अपने पीछे पत्नी, दो बेटियां और पुत्र को छोड़ गए हैं। वे हमेशा एक बेलौस और खिदमतगार डाक्टर के तौर पर याद किये जाएंगे। उन्हें खिराजे अकीदत।