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18 जनवरी को है स्कंद षष्ठी व्रत, जानें धार्मिक महत्‍व और कथा

January 17, 2021


शिव के दूसरे पुत्र कार्तिकेय को सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है। उनके जन्म की कथा भी विचित्र है। कार्तिकेय की पूजा मुख्यत: दक्षिण भारत में होती है। अरब में यजीदी जाति के लोग भी इन्हें पूजते हैं, ये उनके प्रमुख देवता हैं। उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश उत्तर कुरु के क्षे‍त्र विशेष में ही इन्होंने स्कंद नाम से शासन किया था। इनके नाम पर ही स्कंद पुराण है।

भक्त स्कंद षष्ठी पर भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं और पूजा अर्चना करते हैं।भगवान कार्तिकेय भगवान शिव्रत विधि:व और माता पार्वती के बड़े पुत्र हैं।

-स्कंद षष्ठी व्रत के दिन प्रातः जल्दी उठें और घर की साफ-सफाई कर लें.

-इसके बाद स्नान-ध्यान कर सर्वप्रथम व्रत का संकल्प लें.
-पूजा घर में मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें.

पूजा जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र से करें. अंत में आरती करें.

-वहीं शाम को कीर्तन-भजन और पूजा के बाद आरती करें. इसके पश्चात फलाहार करें.

धार्मिक कथा
जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी ‘सती’ कूदकर भस्म हो गईं, तब शिवजी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है। इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है। देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं। तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा।



इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शंकर ‘पार्वती’ के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है। कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।

धार्मिक महत्व:
स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है. इस पूजा से जीवन में हर तरह की कठिनाइंया दूर होती हैं और व्रत रखने वालों को सुख और वैभव की प्राप्ति होती है। संतान के कष्टों को कम करने और उसके सुख की कामना से ये व्रत किया जाता है. हालांकि यह त्योहार दक्षिण भारत में प्रमुख रूप से मनाया जाता है।

नोट – उपरोक्‍त दी गई जानकारी सिर्फ सामान्‍य जानकारी के लिए हैं इसे सिर्फ समान्‍य सूचना के अनुसार ही लिया जाना चाहिए ।

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