इंदौर(Indore)। एक तरफ रियल इस्टेट कारोबार (real estate business) से ही शहर की चमक-धमक है, तो दूसरी तरफ रियल इस्टेट कारोबारियों को परेशान करने में कोई कसर शासन-प्रशासन द्वारा नहीं छोड़ी जाती। यहां तक कि भोपाल से जितने भी आदेश संशोधन के जारी होते हैं, उसमें कोई ना कोई तकनीकी त्रुटि ऐसी छोड़ दी जाती है, जिसके कारण बिल्डर-कालोनाइजर सिर पकडक़र बैठ जाते हैं। अभी शासन ने बिल्डर-डेवलपर की रेशो डील वाले रजिस्ट्रेशन में स्टाम्प ड्यूटी में छूट दी, तो दूसरी तरफ रेरा रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता कर दी, जबकि मजे की बात यह है कि रेरा में सिर्फ प्रोजेक्ट और ब्रोकर का ही रजिस्ट्रेशन होता है। बिल्डर या डेवलपर के रजिस्ट्रेशन का कोई प्रावधान ही नहीं है, तो ऐसे में छूट के नोटिफिकेशन में रेरा रजिस्टर्ड डेवलपर का उल्लेख करने का कोई मतलब ही नहीं है। इसके चलते दो महीने से रेशो डील से जुड़े सैकड़ों प्रोजेक्ट रजिस्ट्रेशन ना हो पाने के कारण अटके पड़े हैं।
इंदौर का मास्टर प्लान हो या भूमि विकास नियम अथवा टीडीआर या उससे जुड़े अन्य संशोधन, सभी के लिए रियल इस्टेट कारोबारियों को ना सिर्फ चप्पलें घिसना पड़ती है, बल्कि लम्बा इंतजार करना पड़ता है। अभी 79 गांवों की विकास अनुमतियां पिछले डेढ़ साल से ठप पड़ी हैं और धारा 16 के तहत जो आदेश जारी किए, उसमें भी कई त्रुटियां छोड़ दीं और बाद में संशोधन आदेश का स्पष्टीकरण भी आज तक भोपाल ने इंदौर दफ्तर को नहीं भिजवाया, तो अभी स्टाम्प ड्यूटी भी 1 अप्रैल से डेढ़ फीसदी कर दी, लेकिन इस छूट का लाभ किसी भी रेशो डील में मिल ही नहीं पा रहा है, क्योंकि संयुक्त विकास अनुबंध यानी जेडीए का जब रजिस्ट्रेशन पंजीयन विभाग के सम्पदा सॉफ्टवेयर के जरिए कराया जाता है तो उसमें रेरा का रजिस्ट्रेशन मांगा जा रहा है। उसके बिना ना तो स्टाम्प ड्यूटी में छूट का लाभ मिल पा रहा है और ना ही रेशो डील के रजिस्ट्रेशन हो रहे हैं।
इसके चलते दो माह से सैकड़ों प्रोजेक्ट अटके पड़े हैं, क्योंकि उनका रजिस्ट्रेशन ही नहीं हो पा रहा है। रियल इस्टेट कारोबारियों की संस्था क्रेडाई सहित अन्य तमाम मंचों से इस बात को भी उठाया जाता रहा है। मगर कहीं कोई सुनवाई भी नहीं, जबकि इंदौर में रियल इस्टेट कारोबार के चलते ही सारी चमक-धमक तो है ही, वहीं अन्य व्यवसाय भी उसी से फलते-फूलते हैं। मगर भोपाल में बैठे अफसर हर आदेश में ऐसी कोई ना कोई त्रुटि जान-बुझकर छोड़ देते हैं, ताकि बिल्डर-कालोनाइजर उनके चक्कर काटे। रेरा एक्ट में किसी भी प्रोजेक्ट का रजिस्ट्रेशन होता है, उसी तरह ब्रोकर के लिए भी प्रावधान है। मगर जब बिल्डर और डेवलपर का रजिस्ट्रेशन होता ही नहीं है तो रेशो डील के लिए उसकी अनिवार्यता क्यों की गई, यह समझ से ही परे है।
आज ही भोपाल मुख्यालय पत्र भेजूंगा डीआईजी पंजीयन मोरे का कहना
इस तरह की विसंगतियों के बारे में जब पंजीयन विभाग इंदौर में पदस्थ डीआईजी स्टाम्प ड्यूटी बालकृष्ण मोरे से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि स्टाम्प ड्यूटी में छूट का प्रावधान लागू हो गया है। मगर चूंकि रेरा रजिस्ट्रेशन की शर्त आरोपित की गई है, जिसके कारण उपपंजीयकों द्वारा रजिस्ट्रेशन मांगा जाता है। चूंकि यह जानकारी में आया कि रेरा एक्ट में बिल्डर या डवलपर के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान ही नहीं है, लिहाजा वे इस संबंध में भोपाल मुख्यालय को पत्र लिखेंगे, ताकि इस त्रुटि को दूर किया जा सके।
हर आदेश में छोड़ देते हैं ऐसी कोई ना कोई त्रुटि
विगत कई वर्षों से यह देखने में आया कि रियल इस्टेट से संबंधित जितने भी आदेश नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के अलावा संचालनालय नगर तथा ग्राम निवेश से जारी होते हैं, उनमें कोई ना कोई त्रुटि छोड़ दी जाती है, जिसके चलते बिल्डर-कालोनाइजर हैरान-परेशान तो होते ही हैं, वहीं सैंकड़ों वैध प्रोजेक्ट भी रूक जाते हैं।
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