काबुल। अफगानिस्तान(Afghanistan) की तालिबान सरकार (Taliban Government) में खूंखार आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क (Haqqani Network) का प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी (Sirajuddin Haqqani) को गृह मंत्री (Home Minister) बनाया गया है।
भारत को दुश्मन नंबर एक मानने वाला सिराजुद्दीन हक्कानी (Sirajuddin Haqqani) अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई (FBI) की हिटलिस्ट में शामिल हैं। अमेरिकी सरकार (US Government) ने तो बाकायदा इस आतंकी के ऊपर 5 मिलियन डॉलर (करीब 36 करोड़ रुपये) का इनाम भी रखा हुआ है। आईएसआई(ISI) के पिट्ठू सिराजुद्दीन हक्कानी (Sirajuddin Haqqani) ने कई बार अफगान सरकार, सेना, विदेशी राजनयिकों और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों के ऊपर आतंकी हमले भी करवाए हैं।
बाप की मौत के बाद बेटा चला रहा हक्कानी नेटवर्क
जलालुद्दीन हक्कानी की मौत के बाद बेटा सिराजुद्दीन हक्कानी, हक्कानी नेटवर्क की कमान संभाले हुए है। हक्कानी समूह पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर तालिबान की वित्तीय और सैन्य संपत्ति की देखरेख करता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हक्कानी ने ही अफगानिस्तान में आत्मघाती हमलों की शुरुआत की थी। हक्कानी नेटवर्क को अफगानिस्तान में कई हाई-प्रोफाइल हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। उसने तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या का प्रयास भी किया था। माना जाता है कि सिराजुद्दीन हक्कानी की उम्र 40 से 50 के बीच में है, जो अज्ञात ठिकाने से अपने नेटवर्क को संचालित करता है।
हक्कानी ने भारतीय दूतावास पर करवाया था आत्मघाती हमला
यह वही आतंकी है जिसने 7 जुलाई 2008 को काबुल में भारतीय दूतावास पर आत्मघाती कार बम हमला करवाया था। इस हमले में कई भारतीयों सहित 58 लोगों की मौत हुई थी। इस घटना को अंजाम देने के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की तरफ से आदेश जारी हुए थे। अब जब अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो गया है तो खूंखार आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क पर्दे के पीछे से निकलकर कैमरे के सामने आ गया है।
मौत की सजा पाए हक्कानी का भाई काबुल का सुरक्षा प्रमुख
हक्कानी नेटवर्क का नंबर दो आतंकी अनस हक्कानी को तालिबान ने काबुल का सुरक्षा प्रमुख बनाया है। 15 अगस्त के बाद अनस ने कई बार काबुल में पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अब्दुल्ला-अब्दुल्ला से मुलाकात भी की है। अनस वही आतंकी है, जिसे अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार ने निर्दोष लोगों की हत्या के जुर्म में फांसी की सजा सुनाई थी। लेकिन, तालिबान के साथ हुए समझौते के कारण उसे 2019 में दो अन्य कट्टर आतंकियों के साथ रिहा कर दिया गया था।
हक्कानी नेटवर्क कैसे बना? पाक के साथ संबंध जानें
इस संगठन को खूंखार आतंकी और अमेरिका के खास रहे जलालुद्दीन हक्कानी ने स्थापित किया था। 1980 के दशक में सोवियत सेना के खिलाफ उत्तरी वजीरिस्तान के इलाके में इस संगठन ने काफी सफलता भी पाई थी। कई अमेरिकी अधिकारियों ने दावा किया है कि जलालुद्दीन हक्कानी को सीआईए फंडिंग करती थी। इतना ही नहीं, उसे हथियार और ट्रेनिंग भी सीआईए के एजेंट ही दिया करते थे। जलालुद्दीन हक्कानी उसी समय से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के भी खास थे। दरअसल, सीआईए को आईएसआई ही बताती थी कि किस मुजाहिद्दीन को कितना पैसा और हथियार देना है। यही कारण है कि आज भी हक्कानी नेटवर्क पर पाकिस्तान का बहुत ज्यादा प्रभाव है और इसी कारण भारत की चिंताएं भी बढ़ी हुई हैं।
वजीरिस्तान को बनाया अपना गढ़
सोवियत सेना की वापसी के बाद भी हक्कानी नेटवर्क ने वजीरिस्तान और आसपास के इलाके में अपनी धमक बनाए रखी। अफगानिस्तान के पक्तिया प्रांत में जन्में जलालुद्दीन हक्कानी ने अपने संगठन की पाकिस्तान और अफगानिस्तान में काफी विस्तार किया। 1990 तक सीआईए और आईएसआई की मदद से हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान का सबसे मजबूत आतंकी संगठन बन गया। उस समय अफगानिस्तान में तालिबान का उदय हो रहा था। जलालुद्दीन हक्कानी भी जाना माना पश्तून मुजाहिद्दीन था। यही कारण है कि तालिबान ने हक्कानी के साथ दोस्ती कर ली और दोनों ने पूरे देश पर राज करना शुरू कर दिया। तालिबान और हक्कानी के नजदीक आते ही अमेरिका ने दूरी बना ली हालांकि, आईएसआई अब भी उससे चिपका रहा।
अमेरिका का हीरो कैसे बना विलेन?
अफगानिस्तान में सोवियत सेना के खिलाफ ट्रंप कार्ड साबित हुआ जलालुद्दीन हक्कानी 2001 में अमेरिका के लिए विलेन बन गया। दरअसल, 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने अलकायदा को निशाना बनाते हुए आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया। सीआईए को इनपुट मिला था कि ओसामा बिन लादेन अफगानिस्तान में तोरा-बोरा की पहाड़ियों में छिपा हुआ है और तालिबान उसका समर्थन कर रहा है। जलालुद्दीन हक्कानी उस समय तालिबान सरकार में अफगानी कबायली मामलों का मंत्री था। वह उस समय पाकिस्तान की आधिकारिक यात्रा पर इस्लामाबाद आया और यहीं से फरार हो गया। कुछ दिनों बाद वह वजीरिस्तान में दिखा और अमेरिका के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया। उसी समय से अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क को भी अपना दुश्मन मान लिया और जलालुद्दीन हक्कानी की तलाश शुरू कर दी।
पावर ब्रोकर था जलालुद्दीन हक्कानी
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जलालुद्दीन हक्कानी मूल रूप से एक पावर ब्रोकर था। उसने सबसे पहले अमेरिका के साथ डील की। बाद में पाकिस्तान के साथ और उसके बाद अलकायदा और तालिबान के साथ। वह सभी ताकतवर गुटों के साथ एक अलग संबंध बनाकर रखता था। यही कारण है कि उसने कभी भी तालिबान में अपने हक्कानी नेटवर्क का विलय नहीं किया, बल्कि उसके एक विंग की तरह ही काम किया। 3 सितंबर 2018 में जलालुद्दीन हक्कानी की मौत के बाद उसका बेटा सिराजुद्दीन हक्कानी अपने आतंकी संगठन की कमान संभाले हुए है।
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