निगम के बोगस बिल महाघोटाले में बड़ा खुलासा… ठेकेदारों ने ही कर डाले हस्ताक्षर, पुलिस द्वारा भेजे नमूनों की पहली रिपोर्ट मिली
इंदौर। नगर निगम (Municipal council) के बहुचर्चित फर्जी बिल महाघोटाले (fake bill scam) में जहां कोर्ट द्वारा अब अधिकांश आरोपियों को अग्रिम जमानत (Anticipatory bail) का लाभ नहीं दिया जा रहा है, तो ऑडिटरों (auditors) के भी जमानत आवेदन खारिज कर दिए। दूसरी तरफ एक और बड़ा खुलासा यह भी हुआ कि पुलिस ने हस्ताक्षरों के नमूनों का जो पहला सेट भिजवाया था उसकी रिपोर्ट में अफसरों के हस्ताक्षर (Signatures) फर्जी पाए गए हैं और अफसरों की जगह ठेकेदारों ने ही ये हस्ताक्षर कर दिए। अभी हालांकि पुलिस को अन्य नमूनों की जांच रिपोर्ट प्राप्त होना शेष है। वहीं जो रिपोर्ट प्राप्त हुई है उसकी भी पुष्टि कराई जाएगी। मगर प्रथम दृष्ट्या ये हस्ताक्षर फर्जी निकले हैं। यानी जो राजनीतिक आरोप अफसरों पर लगाए जा रहे थे वे भी फिलहाल तो बेमानी ही साबित हुए हैं।
150 करोड़ रुपए तक का निगम का यह फर्जी बिल महाघोटाला उजागर हुआ। हालांकि लीपापोती के प्रयास भी शुरू हो गए, क्योंकि जो मुख्य मास्टरमाइंड है उसे बचाने के राजनीतिक प्रयास भी किए जा रहे हैं, क्योंकि उनके इशारे पर ही कुछ समय पूर्व अभय राठौर को बिजली विभाग में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी आयुक्त पर दबाव डलवाकर दिलवाई गई थी। उसके साथ ही यह भी आरोप लगाए जाने लगे, जिसमें अभय राठौर की पत्नी द्वारा दिए गए शपथ-पत्र के हवाले से कहा गया कि इसमें निगम के वरिष्ठ अफसर भी शामिल हैं। एमजी रोड थाने पर निगम ने जो एफआईआर शुरुआती 20-22 फर्जी फाइलों को लेकर दर्ज करवाई थी उसमें अपर आयुक्त संदीप सोनी सहित सेवानिवृत्ति ले चुके सुनील गुप्ता के हस्ताक्षर बताए गए थे। मगर सूत्रों का कहना है कि पुलिस को अभी जो हस्ताक्षर नमूनों की पहली रिपोर्ट मिली उसमें गुप्ता सहित किसी भी बड़े अफसर के असल हस्ताक्षर नहीं मिले। यानी उनके फर्जी हस्ताक्षर इन फाइलों पर किए गए। मुख्य रूप से इसमें जो ठेकेदार राहुल वडेरा और जाकिर शामिल रहे हैं, जो फिलहाल जेल में बंद हैं उनके द्वारा ही ये फाइलें तैयार की गई और अफसरों के हस्ताक्षर भी उन्होंने ही कर डाले। वहीं आरोपी ऑडिटर जगतसिंह ओहरिया की अग्रिम जमानत याचिका कोर्ट ने खारिज कर दी। वहीं पूर्व में ऑडिटर अरुण का भी आवेदन इसी तरह निरस्त हो गया था।