हल्द्वानी। भारत (India) और पाकिस्तान (Pakistan) के बीच सियाचिन (siachen) को लेकर हुई झड़प में शामिल रहे 19 कुमाऊं रेजीमेंट (19 Kumaon Regiment) के लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला (Lansanayak Chandrashekhar Herbola) का पार्थिव शरीर 38 साल बाद सियाचिन में मिला है। इसकी सूचना सेना की ओर से उनके परिजनों को दी गई है। बताया जा रहा है कि सोमवार को उनका पार्थिव शरीर हल्द्वानी लाया जाएगा। इसके बाद सैनिक सम्मान के साथ शहीद का अंतिम संस्कार किया जाएगा।
मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के हाथीगुर बिंता निवासी चंद्रशेखर हर्बोला 19 कुमाऊं रेजीमेंट में लांसनायक थे। वह 1975 में सेना में भर्ती हुए थे। 1984 में भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन के लिए युद्ध लड़ा गया था। भारत ने इस मिशन का नाम ऑपरेशन मेघदूत रखा था।
भारत की ओर से मई 1984 में सियाचिन में पेट्रोलिंग के लिए 20 सैनिकों की टुकड़ी भेजी गई थी। इसमें लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे। सभी सैनिक सियाचिन में ग्लेशियर टूटने की वजह से इसकी चपेट में आ गए जिसके बाद किसी भी सैनिक के बचने की उम्मीद नहीं रही।
भारत सरकार और सेना की ओर से सैनिकों को ढूंढने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया गया। इसमें 15 सैनिकों के पार्थिव शरीर मिल गए थे लेकिन पांच सैनिकों का पता नहीं चल सका था। रविवार को रानीखेत स्थित सैनिक ग्रुप केंद्र की ओर से शहीद चंद्रशेखर हर्बोला के परिजनों को सूचना भेजी गई कि उनका पार्थिव शरीर सियाचिन में मिला है। उनके साथ एक और सैनिक का पार्थिव शरीर मिलने का सूचना मिली है।
चंद्रशेखर की पत्नी वीरांगना शांति देवी इस समय हल्द्वानी में धान मिल के पास सरस्वती विहार कॉलोनी में रहती हैं। एसडीएम मनीष कुमार और तहसीलदार संजय कुमार रविवार को उनके घर पहुंचे। उन्होंने परिजनों को प्रशासन की ओर से हर संभव मदद का आश्वासन दिया।
शहीद चंद्रशेखर का जब पार्थिव शरीर मिला तो उनकी पहचान के लिए उनके हाथ में बंधे ब्रेसलेट का सहारा लिया गया। इसमें उनका बैच नंबर और अन्य जरूरी जानकारी दर्ज थीं। बैच नंबर से सैनिक के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है। इसके बाद उनके परिजनों को सूचना दी गई। परिजनों ने बताया कि अभी तक उन्हें जो जानकारी मिली है उसके अनुसार शहीद की पार्थिव देह अब भी सुरक्षित अवस्था में है। बर्फ में दबे रहने की वजह से शहीद की पार्थिव देह को नुकसान नहीं हुआ है।
सियाचिन दुनिया के दुर्गम सैन्य स्थलों में से एक है। यह बहुत ऊंचाई पर स्थित है, जहां जीवित रहना एक सामान्य मनुष्य के बस की बात नहीं है। भारत के सैनिक आज भी वहां पर अपनी ड्यूटी निभाते हैं। 1984 में देश के सैनिकों ने इस जगह को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लिया था। इस अभियान में कई सैनिकों ने अपनी शहादत दी थी।
ये 20 सैनिक हुए थे हादसे का शिकार
1- पीएस पुंडीर, जिला-इलाहाबाद
2- मोती सिंह, जिला- पिथौरागढ़
3- गोविंद बल्लभ, जिला-अल्मोड़ा
4- भगवत सिंह, जिला-अल्मोड़ा
5- दयाकिशन, जिला-नैनीताल
6- राम सिंह, जिला-नैनीताल
7- चंद्र शेखर हर्बोला, जिला-अल्मोड़ा
8- चंद्रशेखर, जिला-पिथौरागढ़
9- जगत सिंह, जिला-पिथौरागढ़
10- गंगा सिंह, जिला-अल्मोड़ा
11- महेंद्र पाल सिंह, जिला-पिथौरागढ़
12- जगत सिंह, जिला-पिथौरागढ़
13- हयात सिंह, जिला-पिथौरागढ़
14- भूपाल सिंह, जिला-पिथौरागढ़
15- नरेंद्र सिंह, जिला-पिथौरागढ़
16- राजेंद्र सिंह, जिला-अल्मोड़ा
17- भीम सिंह, जिला-पिथौरागढ़
18- मोहन सिंह भंडारी, जिला-अल्मोड़ा
19- पुष्कर सिंह, जिला-पिथौरागढ़
20- जगदीश चंद्र, जिला-पिथौरागढ़
38 साल बाद सियाचिन में शहीद सैनिक का पार्थिव शरीर मिलने की सूचना मिल रही है। उनके परिवारजन से मिलकर शोक संवेदना व्यक्त की गई है। साथ ही शहीद के राजकीय सम्मान में प्रशासन की ओर से होने वाली सभी भूमिकाओं का निर्वहन किया जाएगा। प्रशासन सेना और शहीद के परिवार के लगातार संपर्क में है।
– मनीष कुमार सिंह, एसडीएम, हल्द्वानी
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