मुंबई। बॉलीवुड एक्ट्रेस श्रुति हासन (Shruti Haasan) से जब आस्था और ईश्वर में विश्वास से जुड़े सवाल किए गए तो उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें सिर्फ इसलिए मंदिर जाने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि उनके पिता एक नास्तिक (Atheist) थे।
श्रुति हासन ने बताया कि कैसे वह पहली बार अपने दादाजी के साथ मंदिर गई थीं और किस तरह उनका पहली बार चर्च जाना चोरी-चोरी हो पाया था। एक्ट्रेस ने बताया कि कई महीनों तक उनके घरवालों को इस बात की भनक तक नहीं लगी थी कि वह चर्च जाने लगी थीं। एक्ट्रेस ने बताया कि उनका आध्यात्मिक जुड़ाव इसलिए भी हो पाया क्योंकि उन्हें ऐसा नहीं करने की नसीहत दी जाती थी।
नास्तिक थे एक्ट्रेस श्रुति हासन के पिता
श्रुति हासन से जब पूछा गया कि उन्हें जिंदगी में क्या चीज हिम्मत देती है तो पिंकविला के साथ बातचीत में एक्ट्रेस ने कहा, “ईश्वर में मेरी आस्था मेरी हिम्मत है।” श्रुति हासन ने बताया कि मेरा घर करीब-करीब पूरी तरह नास्तिक है। मेरी मां आस्तिक हैं, लेकिन मेरी मां.. बिलकुल नहीं। तो जब मैं बड़ी हो रही थी तो हमारे यहां भगवान जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं था। यह सब चीजें मैंने खुद ही खोजीं और समझीं। मैं ईश्वर की शक्ति में बहुत यकीन करती हूं और इसी यकीन ने जिंदगी में मुझे बहुत सी चीजों तक पहुंचाया है।
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आकर्षित करती थी घंटों की आवाजें
श्रुति हासन ने बताया, “हमारी कॉलोनी में एक गली थी जहां मैं साइकिल चलाया करती थी। कुछ वजहों के चलते मुझे मेन गेट के पास साइकिल चलाने की इजाजत नहीं थी। हर सुबह मैं चर्च और मंदिर के घंटों की आवाजें सुनतीं। एक्ट्रेस यह सोचा करतीं कि अगर वह साइकिल चलाना शुरू करें तो किस तक पहले पहुंचेंगी।” श्रुति हासन ने बताया, “क्योंकि मंदिर मेरे घर से काफी दूर था तो मैं हफ्ते में एक बार चर्च जाया करती थी इस बारे में 5-6 महीने तक घर पर किसी को पता नहीं चला। बच्चों के साथ होता यह है कि जो चीज आप नहीं करने को कहेंगे, वो उसी काम को और ज्यादा करते हैं। मेरे मामले में ऐसा धर्म को लेकर हुआ।”
यूं हुईं पहली बार मंदिर में दाखिल
श्रुति ने पहली बार मंदिर जाने के लेकर भी अपना तजुर्बा बताया और कहा कि कैसे वह उनके लिए बहुत यादगार हो चुका है। एक्ट्रेस ने बताया, “मेरा पहली बार मंदिर जाना मेरे दादा जी के साथ हुआ था, जो कि मुझे चेन्नई में एक मंदिर लेकर गए थे। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं अपने पिता को यह बात ना बताऊं कि वह मुझे मंदिर लेकर गए हैं। इसके कुछ ही वक्त बात, मेरे दादा जी गुजर गए। मेरा दादाजी और मंदिर के साथ अलग ही कनेक्शन था जो बाद में आध्यात्मिक होता चला गया।”
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