– योगेश सोनी
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में भगवान राम के नाम से यूनिवर्सिटी बनाने की घोषणा की है। प्रस्तावित यूनिवर्सिटी में भगवान राम से संबंधित शास्त्रों, संस्कृति, शैली और धार्मिक तथ्यों पर अध्ययन और शोध किया जाएगा। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने बताया कि ‘यूनिवर्सिटी द्वारा दुनिया के समक्ष भगवान राम के जीवन और सिद्धांतों को प्रस्तुत किया जाएगा व हिंदू धर्म और संस्कृति पर अध्ययन भी शामिल होगा।‘ अयोध्या में संतों और साधुओं ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया है व दुनियाभर के धार्मिक गुरु भी सरकार के इस कदम की प्रशंसा कर रहे हैं। राममंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि धार्मिक शिक्षा के माध्यम से युवा पीढ़ी को प्रभु राम और हिंदू संस्कृति को समझाया जाएगा जिससे धार्मिक आस्था बढ़ेगी व लोगों को अपने धर्म का महत्व समझ आएगा। इस मामले को लेकर परमहंस ने राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आभार व्यक्त करते हुए पत्र लिखा है।
उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा कि राज्य में सहारनपुर, आजमगढ़ और अलीगढ़ में तीन और यूनिवर्सिटी बनाने की योजना बनाई जा रही है, जिसपर उत्तर प्रदेश सरकार ने काम शुरू कर दिया है। इसके अलावा, राज्य में एक स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी, एक आयुष यूनिवर्सिटी और एक लॉ यूनिवर्सिटी का गठन किया जाएगा। प्रदेश को उच्च शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए सरकार द्वारा ठोस कार्ययोजना शुरू हो चुकी है जिसके लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है।
सरकार के इस कदम से आनेवाली पीढ़ी की धर्म की ओर रुचि बढ़ेगी। युवाओं व आनेवाली पीढ़ियों को पता होना चाहिए कि किस तरह तपस्या व त्याग के साथ अपना जीवन यापन कर श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। अक्सर देखा जाता है कि आज के दौर में लोगों के पास समय का इतना अभाव रहता है कि वह अपने धर्म के विषय में नहीं जान पाते, इसका मुख्य कारण यह माना जाने लगा कि अब लोग परिवार के साथ कम रह पाते हैं। इन चीजों का ज्ञान अधिकतर घर के बुजुर्ग लोग ही देते हैं। लेकिन तरक्की की दौड़ में परिवार या तो अलग-अलग रहने लगा या फिर सीमित होकर रह गया। दौड़ती-भागती दुनिया में इंसान सबकुछ कमा रहा है लेकिन संस्कार, संस्कृति व रिश्ते छोड़ता जा रहा है।
आजकल की पीढ़ी को कसूरवार कहना भी गलत होगा चूंकि गलती हम स्वयं कर रहे हैं। एक समय ऐसा था कि जब लोग शिक्षा से ज्यादा धार्मिक ज्ञान की ओर ध्यान देते थे। गुरुकुल व स्कूल में धार्मिक शिक्षा को सबसे ज्यादा अधिक महत्व दिया जाता था लेकिन हम कब धीरे-धीरे पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ गए, हमें पता ही नहीं चला। अब लोगों को महसूस होने लगा कि यह जीवन अधूरा है। हर युग व कालखंड में मर्यादा व संस्कार से ही दुनिया चली है और वर्तमान व भविष्य में भी उसकी जरूरत है।
आज वो समय आ चुका है कि प्रभु श्रीराम के आचरण व तपस्या को समझाया जाए। श्रीलंका व म्यांमार जैसे देशों में राम एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है लेकिन हमारे देश में कुछ लोग भगवान के नाम पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आते। हमारे देश में इस बात का सबसे बड़ा व सजीव उदाहरण पश्चिम बंगाल की राजनीति में देखा जा रहा है। ममता बनर्जी जय श्रीराम के नारे से इतना नाराज हो जाती हैं कि इसे अपनी चिढ़ मान बैठी। अगले कुछ दिनों में पश्चिम बंगाल में चुनाव होने वाले हैं जिसकी वजह से यह मुद्दा गर्माया हुआ है। बहरहाल, राममंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि हमारी युवा पीढ़ी को अपने धर्म व संस्कृति को समझाने के लिए यह विश्वविद्यालय बहुत कारगर सिद्ध होगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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