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    Shradh Paksha 2022 : कब से शुरू हो रहा श्राद्ध पक्ष? यहां जानें तिथि, महत्व व विधि

  • September 03, 2022

    नई दिल्ली। पितृ पक्ष (Pitru Paksha) का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व होता है। पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण (Shradh and Tarpan) किया जाता है। इस पक्ष में विधि- विधान से पितर संबंधित कार्य करने से पितरों का आर्शावाद प्राप्त होता है। पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होती है। आश्विन मास (ashwin month) के कृष्ण पक्ष की अमावस्या (amaavasya) तिथि तक पितृ पक्ष रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान पितर संबंधित कार्य करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं श्राद्ध तिथि, महत्व, विधि और सामग्री की पूरी लिस्ट-

    पितृ पक्ष आरंभ और समापन डेट
    इस साल 10 सितंबर 2022 से पितृ पक्ष आरंभ हो जाएगा और 25 सितंबर 2022 को पितृ पक्ष का समापन हो जाएगा।
    पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है।



    पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां-
    पूर्णिमा श्राद्ध – 10 सितंबर 2022-
    प्रतिपदा श्राद्ध – 10 सितंबर 2022
    द्वितीया श्राद्ध – 11 सितंबर 2022
    तृतीया श्राद्ध – 12 सितंबर 2022
    चतुर्थी श्राद्ध – 13 सितंबर 2022
    पंचमी श्राद्ध – 14 सितंबर 2022
    षष्ठी श्राद्ध – 15 सितंबर 2022
    सप्तमी श्राद्ध – 16 सितंबर 2022
    अष्टमी श्राद्ध- 18 सितंबर 2022
    नवमी श्राद्ध – 19 सितंबर 2022
    दशमी श्राद्ध – 20 सितंबर 2022
    एकादशी श्राद्ध – 21 सितंबर 2022
    द्वादशी श्राद्ध- 22 सितंबर 2022
    त्रयोदशी श्राद्ध – 23 सितंबर 2022
    चतुर्दशी श्राद्ध- 24 सितंबर 2022
    अमावस्या श्राद्ध- 25 सितंबरर 2022

    इस साल 18 सितंबर को श्राद्ध तिथि नहीं है।

    पितृ पक्ष का महत्व
    पितृ पक्ष में पितर संबंधित कार्य करने से व्यक्ति का जीवन खुशियों से भर जाता है।
    इस पक्ष में श्राद्ध तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आर्शीवाद देते हैं।
    पितर दोष से मुक्ति के लिए इस पक्ष में श्राद्ध, तर्पण करना शुभ होता है।

    श्राद्ध विधि
    किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए।

    श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है।

    इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए।

    यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए। भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें।

    श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए. योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें। इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिए। इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए. मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए।

    श्राद्ध पूजा की सामग्री:
    रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी , रक्षा सूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, देसी घी, माचिस, शहद, काला तिल, तुलसी पत्ता , पान का पत्ता, जौ, हवन सामग्री, गुड़ , मिट्टी का दीया , रुई बत्ती, अगरबत्ती, दही, जौ का आटा, गंगाजल, खजूर, केला, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, मूंग, गन्ना।

    नोट- उपरोक्‍त दी गई जानकारी व सुझाव सिर्फ सामान्‍य सूचना के लिए हैं हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं.

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