जिसे कहते हैं जन्नत, उसे जहन्नुम बना दिया… चुनाव कराकर हत्यारों के हाथ कश्मीर थमा दिया
खून खौल रहा है पूरे देश का… दिल दहल रहा है हर देशवासी का… जिसने मंजर देखा उसके सीने को खंजर लहूलुहान कर गया… वादियों में गूंजती चीखें… बेबसीभरी मौतें… खून से सनी दुल्हनों की मेहंदी… जीवन से पहले ही मौत से रूबरू हुई बच्चों की जिंदगियां… चंद मिनटों पहले जो खुशी से सराबोर थे, वो एक पल में गम के सितम में डूब गए…कौन है जिम्मेदार इस खौफनाक मंजर का… जब तक कश्मीर केंद्र के हाथों में था, लोकतंत्र की ख्वाहिश परवान नहीं चढ़ी थी… जब तक उमर अब्दुल्ला को कश्मीर की शहंशाही नहीं मिली थी, तब तक वादियों में सुकून की पुरवाई बह रही थी… आतंक खौफजदा होकर पनाह मांग रहा था… पत्थरबाज दुबके पड़े थे…आतंकियों की लाशों के ढेर जगह-जगह पड़े थे, लेकिन उमर अब्दुल्ला के पाले हुए नासूरों ने फिर सफेद बर्फ को लाशों से लाल कर दिया…एक ही पल में बरसों की मेहनत पर लहू फेर दिया… कश्मीर केवल कागजों पर हमारा रह गया… खून केवल निरपराधों का ही नहीं हुआ… संहार केवल मानवता का नहीं हुआ… मौत विश्वास की हो गई है…बरसों लग गए थे यह समझने में और खुद को समझाने में कि कश्मीर में सुकून लौट आया है…कश्मीर में लोग महफूज रहते हैं…कश्मीर हमारा अपना है…कश्मीर पर्यटकों की जन्नत और दिल की मन्नत है…लेकिन अब न वहां कोई जाएगा न जाने की सोच पाएगा…कश्मीर उजाड़ हो जाएगा…कश्मीरी बेरोजगार हो जाएंगे…वो आतंक का रोजगार करने लग जाएंगे…सुरक्षा बल अपने हाथों से अपनों को मारने पर मजबूर हो जाएंगे…हम फिर 20-25 साल पहले के हालातों में लौट जाएंगे…चुनाव कराने और लोकतंत्र लाने की ख्वाहिश ने सत्यानाश कर दिया… अब भी वक्त है, आतंक से पहले आतंक के हौसलों को पस्त करना पड़ेगा… उसे पालने वाले नासूर उमर अब्दुल्ला की सरकार को बर्खास्त करना होगा…कश्मीर केंद्र को अपने हाथों में लेना होगा…अब किसी भी घात से पहले आतंक पर आघात करना होगा…हम पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक कर सकते हैं, लेकिन अपने देश में पसरे आतंक और उसके समर्थकों के लिए किसी स्ट्राइक की नहीं, बल्कि सर्जरी की जरूरत है…मन बनाना होगा…मन जुटाना होगा…कश्मीर को बचाना होगा…उमर और उसके जैसे नासूरों को ठिकाने लगाना होगा… कश्मीर हमारा है कहना नहीं, बताना होगा…
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