जो दिखे ऊपर उठता उसे पूरा जमाना नोंचता है… बेचारा अल्लू अर्जुन अभी फ्लावर से फायर बना था कि जनरल डायर बनी सरकार ने उसके घर को जलियांवाला बाग बनाते हुए पुलिस थाने तक नचवा दिया… उसका घर तुड़वा दिया… पर्दे पर सैकड़ों लोगों को मिटाने वाला कलाकार एक मुख्यमंत्री का कहर नहीं झेल पा रहा है… हर कोई ऐरा-गैरा उस पर उंगली उठा रहा है… उसे जालिम बता रहा है… लपकती भीड़ में मारी गई महिला और घायल बच्चे का परिवार अपनी गलती मान रहा है…लेकिन उससे खुन्नस रखने वाले नेता और उनके टटपुंजिए समर्थक दरिंदगी दिखा रहे हैं… कानून तोडक़र हुड़दंग मचा रहे हैं…मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी तक अर्जुन से अपनी रंजिशें निकाल रहे हैं… कभी बोलते हैं बिना सूचना दिए थिएटर गए, लेकिन जब पोल खुली और पता चला कि सूचना भी दी थी और इंतजाम करने की दरख्वास्त भी की थी तो रेवंत रेड्डी ने पैंतरा बदलते हुए कहा कि पुलिस ने रजामंदी नहीं दी थी… अब सिरफिरे मुख्यमंत्री को कौन समझाए कि कोई निजी जिंदगी जीने के लिए सूचना देने क्यों जाए…और यदि वह यह फर्ज भी निभाए तो उसे इजाजत का इंतजार क्यों करवाए…दरअसल रेवंत रेड्डी को इस बात की खुन्नस है कि चुनाव में अल्लू अर्जुन ने उनकी पार्टी के प्रचार से इनकार कर दिया था… हालांकि अल्लू ने विरोधी का भी प्रचार नहीं किया था…लेकिन मुफ्तखोर मुख्यमंत्री कलाकार को मुफ्त में राजनीति में घसीटना चाहता था और उसके इनकार से उसके गुरूर को ठेस लग गई…फिर पुष्पा के चलते अल्लू फ्लावर से जब फायर बन गया तो उसकी लोकप्रियता की आग बुझाने का मौका ढूंढते रेवंत रेड्डी को मरी महिला का कफन हाथ लग गया…यह आग जब ठंडी पडऩे लगी तो उसमें अपनी हैसियत और हस्ती का घी डालते हुए रेवंत रेड्डी ने एक जिद्दी और जालिम नेता की तरह घर पर हमला करवाया, ताकि अल्लू के फैंस भडक़ें और मुकाबले पर उतरें… लेकिन रंजिश की आग भडक़ाने वाले रेवंत रेड्डी को पता नहीं कि दक्षिणी राज्यों में फिल्मी कलाकारों को उनके फैंस पसंद ही नहीं करते, पूजते भी हैं…वहां एनटीआर से लेकर जयललिता तक और चिरंजीवी से लेकर पवन कल्याण और थलपति विजय से लेकर कमल हासन तक राजनीति में अपना परचम लहरा चुके हैं…एनटीआर और जयललिता तक की प्रसिद्धि का तो यह आलम था कि लोग उनकी तस्वीरें भगवान के साथ लगाते थे…मंदिर बनाते थे…पूजा कर श्रद्धा जताते थे… वहां अल्लू से रंजिशें लेकर रेवंत रेड्डी खुद अपना राम नाम करवाने पर तुले हैं…यह कहानी केवल दक्षिणी राज्य में ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में राजनीतिक प्रतिशोध की ऐसी घटनाएं हो रही हैं… नेता, नेताओं के दुश्मन बनते जा रहे हैं और एक-दूसरे को ठिकाने लगा रहे हैं…जनता इसे स्वर्णिम काल मान रही है…जिन नेताओं पर वो आक्रोश तक दिखा नहीं पाती है उन्हें मरते-मिटते देखकर शांति पा रही है…फिर वो उद्धव ठाकरे हों या शरद पवार…देवगौड़ा हों या सिद्धारमैया…भूपेश बघेल हों या अशोक गहलोत सब कभी शिखर पर थे, आज संकट में हैं…दोष उनका नहीं उस कुर्सी का है, जिससे मिली अपार शक्ति लोगों को रावण बनाती है और सीता जैसी सभ्यता का अपहरण कर दुराचार दिखाती है…तब वक्त राम बन जाता है और दुष्टों को सडक़ पर दौड़ाता है…
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