– डॉ. मयंक चतुर्वेदी
आज ये प्रश्न बार-बार मतिष्क में कौंध रहा है कि यदि भारत की सड़कों पर नमाज अदा करते मुसलमानों की तरह देश का बहुसंख्यक हिन्दू समाज और अन्य मत-पंथ को माननेवाले भी सड़कों पर प्रार्थना के लिए उतर आएं, तब देश में क्या स्थिति बनेगी? क्योंकि भारत में विविध मत, पंथ और दर्शन इतने अधिक हैं कि यदि प्रति दिवस एक निश्चित समय देकर सभी को सड़कों पर उनके हिसाब से प्रार्थना का अवसर दिया जाएगा तो भी 24 घण्टे उन्हें अपनी ईश्वर आराधना के लिए कम पड़ेंगे। आप सोचिए, यदि इस तरह से देश में सभी को छूट मिलेगी तब क्या होगा? क्या कोई देश की इन सड़कों पर चल पाएगा? क्या कोई बीमार, जरूरतमंद जिसे अपने एक निश्चित समय पर कार्य निष्पादित करने हैं, वे सभी अपने कार्यों को पूरा कर पाएंगे? यदि इन प्रश्नों का उत्तर नहीं है, तब फिर क्यों और किस कानून के अंतर्गत इस्लामिक नमाजियों को सड़क पर प्रार्थना की छूट दी जानी चाहिए?
अव्वल तो दिल्ली के इंद्रलोक इलाके में जुमे की नमाज के दौरान जो हुआ, वह नहीं होना चाहिए था। किसी भी पुलिस कर्मी को नमाज पढ़ते समय किसी को भी लात मारकर अपमानित नहीं करना चाहिए । जो हुआ वह बहुत दुखद है। किसी भी सभ्य समाज में इसका कोई समर्थन नहीं करेगा, किंतु यह हुआ क्यों? बार-बार इस तरह की परिस्थितियां बनती ही क्यों हैं, क्या इस पर विचार नहीं होना चाहिए? वस्तुत: यह पहली बार नहीं है कि दिल्ली में सड़क पर सामूहिक नमाज पढ़ी जा रही थी। देश भर में कई स्थानों पर अक्सर इस तरह से नमाज पढ़कर भारत के आम नागरिकों को परेशान करने का प्रयास होता है। अस्पताल जानेवाला समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाता। इस कारण से वक्त पर इलाज नहीं मिलने से कई लोगों की मौत भी हो जाती है। जिस सड़क पर नमाज अदा हो रही है, गलती से भी कोई यदि उस रास्ते पर आ जाए तो वह तय समय पर अपने ऑफिस नहीं पहुंच पाता है, जिसे मिलने के लिए समय दिया हुआ है, उससे तय समय पर नहीं मिल पाता और इस स्थिति में कई बार उसका बड़ा आर्थिक, सामाजिक नुकसान तो होता ही है। नौकरी तक गंवानी पड़ जाती है। बॉस, यही कहता है कि ऑफिस के लिए और पहले क्यों नहीं निकले? उसी रास्ते पर (जहां नमाज पढ़ी जा रही थी) क्यों गए? कोई दूसरा रास्ता चुनते!
बार-बार देखा यही जा रहा है कि अचानक से खेल के मैदानों, सार्वजनिक स्थलों पर चारों दिशाओं से भीड़ आने लगती है, खेलते हुए बच्चों और अन्य लोग जो वहां कुछ देर के विश्राम के लिए आए हैं। दौड़-भाग भरी जिंदगी में शांति पाने आए हैं। कोई अपने प्रेमी से एकान्त में बातचीत करने आया है। ऐसे सभी लोगों को इस अचानक से आई इस्लामिक भीड़ के कारण से तत्काल अपना खेल और स्थान छोड़ देना पड़ता है। फिर भले ही उनका इस्लाम में कोई विश्वास न हो। वस्तुतः यहां जबरन उन्हें मजबूर किया जाता है एक सार्वजनिक स्थान से पलायन करने के लिए। जिनका कि संविधानिक हक उन्हें यह अनुमति देता है कि वे जब तक उस स्थान पर बैठने का समय सुनिश्चित किया गया है बिना किसी रोकटोक के बैठ सकेंगे। क्या इन लोगों के साथ हो रहे अन्याय पर इनके संवैधानिक अधिकारों के बारे में भी कोई सोचेगा? ऐसे में यदि कोई अपना स्थान छोड़ने का विरोध करे तो उसे बिना किसी देरी के इस्लाम विरोधी और मुसलमान द्रोही ठहरा दिया जाता है।
इस आंकड़े पर भी गौर किया जाना चाहिए कि इंडोनेशिया की आठ लाख मस्जिदों के बाद भारत में सबसे ज्यादा तीन लाख से अधिक मस्जिदें हैं। हालांकि भारत में बनी इन तीन लाख की मस्जिद संख्या पर कई लोगों को एतराज है। क्योंकि कुछ रिपोर्ट यह बताती हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा मस्जिदें भारत में ही हैं, न कि इंडोनेशिया में। लेकिन यहां जो सोचनेवाली बात ये है कि भारत में लाखों मस्जिदें होते हुए भी आखिर यहां के मुसलमान खुले में नमाज क्यों पढ़ते हैं? पूरी दुनिया में जिनका राष्ट्र धर्म इस्लाम है, जबकि वहां भी इतने बड़े पैमाने पर खुले में नमाज नहीं पढ़ी जाती ! क्या यह अप्रत्यक्ष प्रार्थना के नाम पर हर शुक्रवार देश भर में इस्लामिक शक्ति प्रदर्शन तो नहीं किया जा रहा है?
भारत तो लोकतांत्रिक देश है, सभी मत, पंथ, धर्म के लोग यहां रहते हैं, लेकिन दुनिया के 57 इस्लामिक देश जो कि पूरी तरह से मजहबी आधार पर प्रोफेट मोहम्मद के बताए रास्ते पर चलने का दावा करते हैं और कुरान पर अपना विश्वास व्यक्त करते हैं, यहां तक कि पूरी दुनिया में इस्लाम जहां से फैला, उन मुस्लिम देशों तक पर सड़कों पर अल्लाह की इबादत करना जुर्म घोषित किया गया है। यहां यदि कोई कानून का पालन करता हुआ नहीं पाया जाता तो उससे बहुत बड़ी राशि सजा के रूप में वसूली जाती है। संयुक्त अरब इमारात (यूएई) इसका एक बड़ा और सशक्त उदाहरण है। इस इस्लामिक देश में सड़क के किनारे बाइक या कार रोककर नमाज पढ़ना अपराध है। ट्रैफिक लॉ नंबर 178 के तहत यह जुर्म है। यहां की पुलिस का कहना है कि सड़क किनारे गाड़ी रोककर नमाज पढ़ने की वजह से सड़क पर चलने वाले बाकी लोगों के लिए खतरा पैदा होता है। इसलिए सड़क किनारे नमाज पढ़ने पर 500 दिरहम यानी 8800 रुपये का जुर्माना लगाया गया है। इबादत किसी को परेशान करते हुए नहीं की जानी चाहिए, कुरान भी इसका हक नहीं देता है।
अबू धाबी (यूएई) ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के उप निदेशक लेफ्टिनेंट कर्नल सलाह अब्दुल्ला अल हमैरी का कहना है कि मुसलमान सड़क के किनारे नमाज पढ़ने की जगह पेट्रोलिंग स्टेशन, आवासीय क्षेत्रों और श्रमिक शिविरों में बने विश्राम कक्षों और मस्जिदों का उपयोग करें, नहीं तो जुर्माना देने के लिए तैयार रहें। वे कहते हैं, भले ही उनका देश एक इस्लामिक कंट्री हो, लेकिन राज्य की व्यवस्था में सुशासन रहे और किसी को कोई परेशानी न हो, इसके लिए ही राज्य का कानून है। कहना होगा कि इसलिए ही इस इस्लामिक देश की पुलिस सार्वजनिक स्थलों पर नमाज पढ़ने वालों पर आज जुर्माना भी लगाती है और जरूरत पड़ने पर सख्ती से पेश आते हुए लाठी भी मारती है। किंतु इस (यूएई) देश की तुलना में भारत में आप ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते। यदि थोड़ी भी कोशिश की तो आपको कम्युनल करार कर दिया जाएगा। बार-बार समझाने के बाद भी यदि आप नहीं मानते, सड़क पर ही नमाज अदा करते हैं, तब ऐसे में यदि आपके खिलाफ सांकेतिक ही सही सख्ती बरत दी गई तो समझलीजिए आपका सस्पेंड होना या नौकरी से जाना तय है। आखिर हम ये कौन सा भारत बना रहे हैं ? इबादत के किसी के लिए नियम कुछ और किसी के लिए अन्य कुछ?
देश की राजधानी दिल्ली के पास गुरुग्राम से एक वर्ष पूर्व इस तरह की कई खबरें आई थीं, जिसमें कि स्थानीय लोग खुले में नमाज पढ़ने वालों का विरोध कर रहे थे । स्थानीय लोगों का कहना था, अकेले इसी शहर में कुल 22 बड़ी मस्जिदें हैं, फिर भी बड़ी संख्या में मुस्लिम सड़कों और पार्कों को घेर कर नमाज पढ़ते हैं, जिससे उन्हें काफी परेशानी होती है। गुरुग्राम में इस मुद्दे पर कई दिनों तक जबरदस्त हंगामा देखा गया। नमाज के विरोध में अन्य मत, पंथ ने भी सड़कों पर उतर कर अपने धार्मिक आयोजन शुरू कर दिए थे। जिसके बाद हरियाणा सरकार को सख्त निर्णय लेना पड़ा। पश्चिम बंगाल से भी इसी प्रकार की तस्वीरें सामने आती रहती हैं। केरल, तमिलनाड़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों से सड़कों पर सामूहिक नमाज पढ़ते मुसलमानों की तस्वीरें आए दिन सामने आ रही हैं।
फिलहाल योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश में सड़कों पर होने वाली जुमे की ‘नमाज’ पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया हुआ है। 2019 में जारी एक आदेश को लेकर तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओ.पी सिंह ने कहा भी था कि “विशेष अवसरों पर जब ज्यादा भीड़ एकत्र होती है, तो जिला प्रशासन द्वारा इसकी अनुमति दी जा सकती है, लेकिन हर जुमे की नमाज के दौरान इस प्रथा को नियमित रूप से करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।” सभी जिला पुलिस प्रमुखों और अन्य अधिकारियों को दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सड़कों को अवरुद्ध करके नमाज अदा नहीं की जाए।
उत्तर प्रदेश में तो कई मौलवीयों तक ने अपील जारी कर कहा है कि मुसलमान यातायात को बाधित न करें, सड़कों पर नमाज न पढ़ें। इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के चेयरमैन एवं लखनऊ ईदगाह के इमाम, सुन्नी मौलवी मौलाना खालिस राशिद फिरंगी महली का कहना है कि “अतीत में भी हमने मुस्लिमों से अपील की है कि वे सड़क को बाधित कर नमाज अदा न करें।” फिर भी कई जगहों से सड़कों पर नमाज पढ़नेवालों के फोटो सामने आ रहे हैं । यानी कि इससे यह भी सामने आता है कि भारत में रह रहे मुसलमानों की एक बहुत बड़ी संख्या ऐसी है, जिसका कि भारतीय कानून एवं संविधान में कोई विश्वास नहीं है।
ऐसे में यहां यही कहना होगा कि जिस तरह से समय-समय पर देश के इस्लामिक नेता भारतीय संविधान के पालन की दुहाई देते हैं। वह पालन सिर्फ गैर मुसलमान पर लागू नहीं होता है। देश के नागरिक होने के नाते यह संविधान की मर्यादा और कानून व्यवस्था का पालन करना उन (मुसलमानों) का भी उतना ही कर्तव्य है, जितना कि भारत में रह रहे किसी अन्य मत, पंथ या धर्म को माननेवाले लोगों का कर्तव्य है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का सामान अधिकार है। यह अधिकार नागरिकों एवं गैर-नागरिकों के लिये भी उपलब्ध है। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि एक मजहबी या पांथिक समुदाय दूसरे मत, पंथ या धर्म का अपमान करे और उसके रास्ते में बाधाएं उत्पन्न करे। अच्छा हो, वे (सड़क पर नमाज पढ़ने वाले) इस बात को समझ लें कि भारत में रहना है तो संविधान का पालन करना होगा और यदि उन्हें या किसी अन्य को भी भारतीय संविधान का पालन नहीं करना है तो उनके सामने देश छोड़ने का विकल्प तो मौजूद है ही।
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