नई दिल्ली। बीते कई दिनों से बिजली संकट की सबसे ज्यादा चर्चा है। हर रोज इस संकट के अलग-अलग कारण सामने आ रहे हैं। कभी डिमांड सप्लाई की बात की जाती है, तो कभी बिजली कंपनियों के बकाये की, कभी गर्मी को कारण बताया जाता है, तो कभी कोयले की रैक की कमी को वजह बताया जाता है। आखिर इसकी असल वजह क्या है? आइये इस संकट के इस कहानी से समझते हैं।
बात 17 मार्च 2022 की है। लोकसभा में सरकार से सवाल पूछा गया कि देश में बिजली की कमी है। जवाब में ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने दिया। सिंह ने कहा बिजली की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त उपलब्धता है। ऊर्जा मंत्री ने आंकड़ा पेश करते हुए बताया कि 28 फरवरी तक की स्थिति के अनुसार देश के बिजली घरों की कुल उत्पादन क्षमता लगभग 395.6 गीगावाट है और अधिकतम मांग केवल 203 गीगावाट तक की रही है। इस बात को डेढ़ महीने भी नहीं हुए और देश में बिजली का संकट बढ़ने लगा। कहा गया कि गर्मी बढ़ने के साथ अचानक बढ़ी मांग के कारण ऐसा हो रहा है। ये भी कहा गया कि बिजली की मांग रिकॉर्ड स्तर पर है। आपको पता है ये मांग कितनी हुई है। अधिकतम 207.11 गीगा वाट। यानी, सरकार द्वारा बताई गई उत्पादन क्षमता 395.6 गीगावाट से काफी कम।
एक और बात कही जा रही है। कोयले की कमी के कारण ये संकट आया है। इस पर भी शनिवार को सरकार की ओर से एक बयान आया। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि UPA के समय 566 मिलियन टन कोयला की आपूर्ति होती थी और आज हम 818 मिलियन टन आपूर्ति कर रहे हैं। सरकार के इस दावे पर छ्त्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पलटवार किया। बघेल ने पूछा, ‘कोयले की कमी नहीं है तो देशभर में ट्रेनें क्यों रद्द की जा रही हैं?’ बघेल ने कहा, ‘विदेश से इतना महंगा कोयला मंगा रहे हो और राज्यों को रॉयल्टी भी नहीं दे रहे हो। राज्यों के नुकसान पहुंचा रहे हो, यहां के कोयले को रॉयल्टी भी नहीं दे रहे हो।’
अब आप कहेंगे कि आखिर दिक्कत कहां है? कोयले की डिमांड और सप्लाई की क्या स्थिति है? क्या आगे हालात और बिगड़ सकते हैं? आइये इन सभी सवालों का जवाब देते हैं…
परेशानी कहां है?
एक्सपर्ट कहते हैं कि बढ़ती गर्मी के साथ बिजली की मांग बढ़ी है। ये मांग रिकॉर्ड स्तर पर है। इस मांग को पूरा करने के लिए बिजली कंपनियों के पास कोयले की कमी है। कोयले की मांग और खपत में 20 फीसदी का इजाफा हुआ है। अचानक बढ़ी मांग को पूरा करने की कोशिश हो रही है। 2021 के मुकाबले कोयला कंपनियों ने इस साल अप्रैल में 15 फीसदी ज्यादा कोयला बिजली कंपनियों को सप्लाई किया है। जो कि मांग के मुकाबले पांच फीसदी कम है।
इस संकट की एक बड़ी वजह बिजली कंपनियों का बकाया भी है। एक ओर बिजली वितरण कंपनियों ने बिजली उत्पादन कंपनियों के करोड़ों रुपये का भुगतान नहीं किया है। वहीं, दूसरी ओर बिजली उत्पादन कंपनियों का भी कोयला कंपनियों का करोड़ों का बकाया है। रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि ये बकाया करीब 1.23 ट्रिलियन रुपये तक का है। जो कि पिछले साल के मुकाबले करीब 17 फीसदी ज्यादा है। तमिलनाडु, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश,आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों की इस बकाये में 70 फीसदी हिस्सेदारी है।
हालांकि, NTPC जैसी सरकारी कंपनियां बकाया भुगतान नहीं होने के बाद भी सप्लाई कर रही हैं। वहीं, कुछ कंपनियां नियम के बाद भी बकाया भुगतान नहीं होने की वजह से सप्लाई में आनाकानी कर रही हैं। केंद्रीय ऊर्जा सचिव आलोक कुमार ने एक अखबार से कहा कि जिन छह राज्यों में सबसे ज्यादा बकाया है वहां की राज्य सरकारें जो सब्सिडी देतीं हैं उनका भुगतान डिस्कॉम को नहीं कर सकी हैं। इसके साथ ही सरकारी विभागों के बिजली बिल भी काफी बकाया हैं।
कोयले की डिमांड और सप्लाई की क्या स्थिति है?
29 अप्रैल को अधिकतम मांग 207.11 गीगावाट तक पहुंच गई। जो रिकॉर्ड थी। इस दिन देश में कुल 214 मिलियन यूनिट ऊर्जा की कमी रही। सबसे ज्यादा उत्तरी क्षेत्र में 156.5 मिलियन यूनिट ऊर्जा की कमी रही। यानी, इस इलाके में सबसे ज्यादा संकट रहा। यही, वो अंतर है जिसकी वजह से बिजली का संकट गहराया। हालंकि, 30 अप्रैल और एक मई को बिजली की डिमांड में कमी आई। इसके साथ ही डिमांड सप्लाई के अंतर में भी कमी आई। एक मई को तो ये डिमांड 200 गीगावाट से भी कम हो गई।
ऊर्जा की डिमांड और सप्लाई के अंतर की वजह कोयले की सप्लाई नहीं हो पाने को बताया जा रहा है। इस अंतर को कम करने के लिए रेलवे ने 650 से ज्यादा यात्री ट्रेनों को रद्द करके मालगाड़ियों के फेरे बढ़ाए हैं, जिससे पॉवर प्लांट तक जल्द कोयला पहुंचाया जा सके। कोयले से बिजली पैदा करने वाले थर्मल पॉवर प्लांट में कम से कम 24 दिन के कोयले का स्टॉक होना चाहिए, लेकिन देश के कई सारे ऐसे प्लांट हैं जहां 10 दिन से भी कम का कोयला बचा है।
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