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    शोपियां एनकाउंटर : ‘मजदूरों को आतंकी बनाने के लिए शव के पास रखे थे हथियार’

  • December 28, 2020

    जम्मू कश्मीर। शोपियां फर्जी मुठभेड़ मामले में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने रविवार को अहम खुलासा किया। पुलिस के मुताबिक, आरोपी आर्मी कैप्टन और उसके दो सहयोगियों ने तीनों मजदूरों को मारने के बाद उनके पास हथियार रखे थे, ताकि उन्हें कट्टर आतंकवादी घोषित किया जा सकते। यह फर्जी मुठभेड़ जुलाई 2020 में हुई थी।

    जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि जांच के दौरान पूरी साजिश का खुलासा हुआ, 62 आरआर के आरोपी कैप्टन भूपेंद्र, मेजर बशीर खान, चौगाम के रहने वाले ताबिश नजीर और पुलवामा के रहने वाले बिलाल अहमद लोन ने तीनों मजदूरों का अपहरण किया और उन्हें फर्जी मुठभेड़ में मार डाला।

    जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि आर्मी कैप्टन ने जानबूझकर एसओपी का पालन नहीं किया और मजदूरों के शवों के पास अवैध रूप से प्राप्त हथियारों और सामान को रखा, ताकि उनकी पहचान छिपा ली जाए और उन पर कट्टर आतंकी का टैग लगाया जा सके। आरोपी आर्मी कैप्टन ने जानबूझकर सहयोगियों और अपने अधिकारियों को गलत जानकारी दी।

    शनिवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने शोपियां फर्जी मुठभेड़ मामले में कैप्टन रैंक के एक सैन्य अधिकारी और दो अन्य लोगों के खिलाफ एक चालान पेश किया है। सूत्रों ने कहा कि 300 पेज की चालान को प्रधान और सत्र न्यायाधीश शोपियां के समक्ष पेश किया गया है। इस पूरे मामले की जांच जम्मू-कश्मीर पुलिस की एसआईटी कर रही है।

    सेना ने गुरुवार को एक बयान में कहा था कि साक्ष्य के सारांश को रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया पूरी हो गई है। भारतीय सेना अपने नैतिक आचरण के लिए प्रतिबद्ध है। गौरतलब है कि इस साल 18 जुलाई को शोपियां के आमशिपोरा में एक फर्जी मुठभेड़ में तीन मजदूर मारे गए थे।

    मारे गए मजदूरों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, जिसके बाद जम्मू के राजौरी जिले के तीन परिवारों ने दावा किया कि मारे गए उनके परिजन हैं, जो शोपियां में मजदूरी करने गए थे। इसके बाद तीनों मजदूरों की डीएनए जांच हुई, जिसके बाद साबित हुआ कि मारे गए आतंकी नहीं, बल्कि मजदूर थे।

    फर्जी मुठभेड़ में मारे गए लोगों की पहचान 25 वर्षीय अबरार अहमद, 20 वर्षीय इम्तियाज अहमद और 16 वर्षीय मोहम्मद इबरार के रूप में हुई थी। डीएनए रिपोर्ट आने के बाद शवों को 70 दिनों के बाद कब्र से निकालकर परिवार को सौंपा गया था। इसके बाद तीनों मजदूरों के परिवार ने उनका अंतिम संस्कार किया था।

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