भोपाल। प्रदेश की सियासत में अभी तक आदिवासी को कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता रहा है, लेकिन जनजातीय गौरव दिवस समारोह में जिस अंदाज में प्रदेश भर से आदिवासियों की भीड़ उमड़ी है, उससे लगता है कि अब आदिवासी वोट भाजपा की झोली में आ गिरा है। यही वजह है कि सोमवार को जबलपुर में आयोजित कांग्रेस के बिरसा मुंडा जयंती कार्यक्रम में आदिवासियों के लिए 5 हजार कुर्सियां लगाई गईं। जिनमें से बमुश्किल एक हजार कुर्सियां भर पाईं। जबलपुर में कांग्रेस का आयोजन पूरी तरह फ्लॉप रहा। जबकि भोपाल का कार्यक्रम सफल रहा।
प्रदेश में आदिवासी निर्णायक भूमिका में
प्रदेश में जिस तरह से राजनीतिक दल आदिवासी वोट बैंक को केंद्र में रखकर सियासत कर रहे हैं, उससे साफ है कि अगले चुनाव में आदिवासी वोट बैंक ही निर्णायक भूमिका में रहेगा। इन आयोजनों से इतना साफ है कि अब मप्र में जो आदिवासी हित की बात करेगा, वहीं प्रदेश में राज करेगा। वर्ष 2003, 2008, 2013 में आदिवासी वोटरों के दम पर ही बीजेपी सत्ता में आई। 2018 के चुनाव में आदिवासी वोट बैंक ने भाजपा से किनारा कर लिया था।
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