भोपाल: कभी भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के प्रबल दावेदारों में गिने जाने वाले शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश में पार्टी चेहरा बनाने से परहेज करने का मन बना चुकी है. सवाल उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर भी है और बीजेपी के भीतर इस पर मंथन लंबे समय से चल रहा है. 18 सालों तक एमपी में सीएम बने रहने वाले शिवराज सिंह चौहान इस बार विधानसभा चुनाव में चेहरा नहीं बनने जा रहे हैं.
बीजेपी अपने तुरुप के इक्के पीएम मोदी के नाम पर ही मैदान में उतरने की तैयारी कर चुकी है. जाहिर है पीएम के नाम पर बने थीम सॉन्ग का मतलब साफ है कि एमपी में शिवराज सिंह चौहान पार्टी की नजरों में गेम चेंजर नहीं रह गए हैं. इसलिए बीजेपी अब अपने सबसे प्रभावी चेहरे के नाम पर ही बैतरनी पार करने की तैयारी में जुट गई है.
एंटी इन्कमबेंसी-घोटालों के आरोपों की काट ढ़ूंढ़ रही BJP?
18 सालों से प्रदेश का नेतृत्व शिवराज सिंह चौहान के ही हाथों रहा है. प्रदेश में उनके खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी होना लाजमी है. पार्टी लंबे समय से उनके समतुल्य नेता ढूंढने की तैयारी में जुटी है. लेकिन नरेंद्र सिंह तोमर समेत कैलाश विजयवर्गीय सरीखा नेता शिवराज सिंह चौहान का विकल्प नहीं बन पाया है. जाहिर है पार्टी में एक को दरकिनार कर दूसरे को तरजीह देने से गुटबाजी भी बढ़ सकती है. इसलिए अपने तुरुप के इक्के पीएम के नाम पर मैदान में उतरने की तैयारी बीजेपी कर चुकी है.
बीजेपी को उम्मीद है पीएम मोदी के नाम पर पूरी बीजेपी एकजुट होकर लड़ेगी और पार्टी एंटी इन्कमबेंसी जैसे मुद्दों से पार पाने में सफल रहेगी. जाहिर तौर पर पार्टी को उम्मीद है कि बीजेपी पर विपक्षियों के आरोप चस्पा नहीं हो सकेंगे. दरअसल कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ भ्रष्टाचार की लंबी फेहरिस्त तैयार कर शिवराज सिंह चौहान सरकार को घेरने की तैयारी में है. इसलिए बीजेपी पीएम के बेदाग चेहरे के सहारे एमपी चुनाव की बैतरनी को पार करने की योजना पर आगे बढ़ती दिख रही है.
भ्रष्टाचार के आरोपों से बचने का कवच ढूंढ रही BJP?
शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता को लेकर कांग्रेस ही नहीं बीजेपी के कई बड़े नेता भी समय-समय पर सवाल उठाते रहे हैं. जाहिर तौर पर लंबे समय से नेतृत्व परिवर्तन की मांग बीजेपी के अंदर उठती रही है. बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं के बेट और परिवार शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ आवाज बुलंद कर पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं. इनमें बीजेपी के दिवंगत नेता कैलाश जोशी का भी नाम आता है. कैलाश जोशी बीजेपी को स्थापित करने वाले नेताओं में गिने जाते हैं, लेकिन उनके बेटे कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं.
जाहिर है पार्टी के लिए पार्टी के भीतर उपजी नाराजगी के अलावा सरकार पर आदिवासियों पर अत्याचार, पटवारी भर्ती घोटाले के अलावा व्यापम घोटाले का आरोप लगता रहा है. कांग्रेस शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में दर्जनों घोटाले का आरोप एक फिल्म के जरिए लगाने की तैयारी में है जिसे कश्मीर फाइल्स की तर्ज पर फिलमाया गया है. बीजेपी इसकी काट तलाशने में जुट गई है, जिससे कांग्रेस के आरोपों की लंबी फेहरिस्त धरी की धरी रह जाए और बीजेपी 29 लोकसभा सीटों वाले राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हो सके. वैसे भी पिछला चुनाव बीजेपी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में हार चुकी है. इसलिए बीजेपी की योजना पीएम के चेहरे पर चुनाव लड़ने की है, जिससे गुटबाजी के अलावा भ्रष्टचार के आरोपों को चस्पा होने से रोका जा सके.
शिवराज से किनारा करने का मन बना चुकी है BJP?
शिवराज सिंह चौहान लाडली लक्ष्मी योजना, लाडली बहना जैसी योजना की वजहों से राज्य में काफी लोकप्रियता बटोर चुके हैं. लेकिन उनकी लोकप्रियता पिछले चुनाव में तब फीकी पड़ती दिखी जब बीजेपी राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव में सत्ता में आने से वंचित रह गई थी. बीजेपी पर पिछले दरवाजे से सरकार बनाने का आरोप है, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस से मोहभंग होना बड़ी वजह बताया जाता है. लंबे समय से सीएम रहने की वजह से शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस ही नहीं बल्कि बीजेपी के नेताओं के निशाने पर भी रहे हैं.
बीजेपी औपचारिक तौर पर भले ही उनकी लोकप्रियता की कमी को नहीं स्वीकार करती है, लेकिन विधानसभा से उलट लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के पक्ष में शत प्रतिशत परिणाम शिवराज सिंह चौहान की कमजोर राजनीतिक पकड़ का संदेश दे रहा है. इसलिए बीजेपी विधानसभा चुनाव में जोखिम नहीं उठाकर पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है. बीजेपी के चुनावी गाने ‘एमपी के मन में बसे हैं मोदी’ के लॉन्चिंग के बाद सब कुछ शीशे की तरह साफ हो गया है.
वैसे राज्य के कृषि मंत्री कमल पटेल के मुताबिक हर चुनाव में पीएम मोदी का चेहरा सबसे आगे रहता है. इसलिए इसे ‘मामा’ को दरकिनार करने के तौर पर देखा जाना उचित नहीं है. लेकिन चुनावी गानों में केंद्र सरकार की योजनाओं को भी प्रमुखता से जनता के बीच रखा जाना सारी कहानियों की गाथा खुद-ब खुद गढ़ रहा है. इन गानों में उज्जवला योजना, पीएम आवास योजना, रोजगार और उद्योगों के विकास को प्रमुखता दी गई है. वैसे राज्य सरकार की लाड़ली बहना योजना को शामिल किया गया है. लेकिन प्रमुखता केंद्र की योजना को ही दी गई है.
लोकसभा करीब इसलिए विधानसभा पर विशेष नजर?
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव के 6 महीने के अंतराल पर ही लोकसभा चुनाव की तैयारी की गई है. बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव में पुराना परफॉरमेंस दोहरा पाना एक गंभीर चुनौती है. एमपी में विफलता लोकसभा की 29 सीटों की जीत पर खलल डाल सकती है. इसलिए बीजेपी कोई कसर छोड़ना नहीं चाह रही है.
इस बाबत पीएम मोदी के महाकाल भक्त की तस्वीरों को फिल्माया गया है. इसके जरिए करोड़ों भक्तों को साधने की तैयारी जोरों पर है. सावन के महीने में शिवभक्त के रूप में पीएम के चेहरे को पेश कर बीजेपी धार्मिक संवेदनाओं को भी छूने के प्रयास कर रही है. चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव इसे फलीभूत करने एमपी की सरजमीं पर उतर चुके हैं.
कभी गुजरात से बड़े राज्य एमपी के लगातार सीएम रहने की वजह से पीएम बनने की चाहत रखने वाले शिवराज सिंह चौहान के लिए एमपी में ही चेहरा बनाने से पार्टी परहेज कर रही है. शिवराज सूबे पर 18 सालों तक दबदबा कायम रखे हैं, लेकिन उनकी राजनीति का सूर्यास्त अस्ताचल की ओर है या नहीं इसका फैसला इस विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद शीशे की तरह साफ हो जाएगा.
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