भोपाल। प्रदेश में पोषण आहार में कथित भ्रष्टाचार को लेकर मामला उठाया जा रहा है। विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाए हैं। जबकि यह पोषण आहार वितरण की पुरानी व्यवस्था को संगठित माफिया के हाथों से छीनकर महिला समूहों के हाथों में सौंपने का काम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया था। महिला समूहों के हाथों में जाने के बाद पोषण आहार में पारदर्शिता आई। साथ ही महिला समूहों को काम भी मिला।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एमपी एग्रो के माध्यम से चल रही ठेकेदारी व्यवस्था को बंद करके मध्यप्रदेश की महिलाओं को स्व सहायता समूहों को सौंपा। इसके पीछे सरकार की मंशा महिला सशक्तिकरण की दिशा में ठोस कदम उठाना था। एसआरएलएम के माध्यम से मुख्यमंत्री ने इसका पूरा खाका तैयार किया और तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को इसकी कार्ययोजना बनाने के लिए कहा। मुख्यमंत्री के इस निर्णय को मूर्त रूप देने के लिए तत्कालीन ग्रामीण एवं पंचायत विभाग विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने एक व्यवस्था तैयार की जिसमें एसआरएलएम के माध्यम से स्व सहायता समूह पोषण आहार तैयार करने का काम करने थे। एसआरएलएम के प्लांटों में काम शुरू भी हो गया लेकिन पोषण आहार का व्यापक उत्पादन करने के लिए समय चाहिए था, इसीलिए शिवराज कैबिनेट ने निर्णय लिया कि जब तक इन प्लांटों में काम शुरू नहीं हो जाता तब तक पोषण आहार की सप्लाई खुली निविदा के माध्यम से जारी रहेगी।
कमलनाथ सरकार ने फिर भ्रष्ट व्यवस्था को सौंपा पाषण आहार
नवम्बर 2018 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो गया और कमलनाथ के नेतृत्व में प्रदेश सरकार बनी। कमलनाथ सरकार के बनने के कुछ दिन बाद ही एसआरएलएम प्लांटों का प्रबंधन उसी एमपी एग्रो को सौंप दिया गया जिस पर वर्षों से पोषण आहार मामले में भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे थे और जो पूरी तरह से पोषण आहार माफियाओं की गिरफ्त में था। अब महिला बाल विकास विभाग की भूमिका केवल एसआरएलएम प्लांट द्वारा तैयार माल को लेकर उसकी सप्लाई और लिए गए माल का भुगतान करने तक सीमित थी। अब सारा प्रबंधन एमपी एग्रो के हाथ में था। ऐसे में कच्चे माल की सप्लाई पोषण आहार माफियाओं के हाथों में ही रही और वे लगातार यह सप्लाई करते रहे। अब अगर एसआरएलएम के प्लांटों में जितना उत्पादन हुआ उतने की बिजली सप्लाई नहीं हुई जैसी बातें सामने आ रही हैं तो यह भी साफ हो रहा है कि वास्तव में इन प्लांटों में जितने कच्चे माल की आपूर्ति ठेकेदारों द्वारा बताकर उसका भुगतान लिया गया, वास्तव में ऐसा हुआ ही नहीं यानी एक बार फिर मध्यप्रदेश का पोषण आहार माफियाओं की भेंट चढ़ गया।
विस्तृत जांच की जरूरत
अब जरूरत इस बात की है कि इस पूरे मामले में जितनी अवधि में एसआरएलएम के प्लांट एमपी एग्रो के पास रहे, उस पूरी अवधि में किए गए सारे कार्यकलापों की एक विस्तृत जांच हो ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। हालांकि शिवराज सरकार ने आने के कुछ समय बाद ही इस पूरे मामले में एमपी एग्रो का नियंत्रण फिर हटा दिया और अब एसआरएलएम प्लांट सीधे पंचायत व ग्रामीण विभाग के माध्यम से ही नियंत्रित हो रहे हैं।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved