लखनऊ: मुलायम सिंह यादव की मौत के बाद खाली हुई मैनपुरी सीट पर उपचुनाव में बड़े सियासी बदलाव देखने को मिले. इसमें सबसे खास यह रहा कि चाचा-भतीजा यानि शिवपाल और अखिलेश फिर एक साथ आ गए. बात यहीं खत्म नहीं हुई इस मेलजोल से बड़ा झटका बीजेपी को लगा है. चाचा-भतीजे के बीच रार की वजह से शिवपाल औऱ बीजेपी एक दूसरे के प्रति शॉफ्ट नजर आते थे. लेकिन एकबार फिर शिवपाल और अखिलेश की ये गलबहियां बीजेपी को रास नहीं आई और सरकार से लेकर संगठन तक के तेवर सख्त नजर आने लगे हैं. मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में पांच दिसंबर को मतदान और आठ दिसंबर को मतगणना होगी.
दरअसल एक तरफ शिवपाल यादव सपा अध्यक्ष अखिलेश की पत्नी डिंपल को जिताने के लिए प्रचार मे जुटे हैं. दूसरी तरफ उनकी मुसीबत बढ़ती नजर आ रही है. सबसे पहले तो प्रशासनिक स्तर पर झटका देते हुए शिवपाल की सुरक्षा में कटौती की गई. वहीं दूसरे ही दिन योगी सरकार ने गोमती रिवर फ्रंट मामले में शिवपाल और तत्कालीन दो अधिकारियों से पूछताछ की इजाजत सीबीआई को दे दी है. इतना ही नहीं मैनपुरी सीट पर चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निशाने पर सबसे ज्यादा शिवपाल यादव ही रहे. उन्होंने शिवपाल को पेंडुलम तक कह दिया. ऐसे में साफ है कि शिवपाल यादव को लेकर योगी सरकार के तेवर सख्त हो गए हैं.
सीएम ने शिवपाल को कहा फुटबॉल और पेंडुलम
दरअसलसोमवार को मैनपुरी के करहल इलाके में एक चुनावी जनसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिवपाल यादव की तुलना फुटबॉल और पेंडुलम से की थी. उन्होंने कहा था, मैं एक दिन बयान पढ़ रहा था चाचा शिवपाल का, उनकी स्थिति पेंडुलम जैसी हो गयी है. पिछली बार आपने देखा होगा कितना बेइज्जत करके भेजा, कुर्सी तक नहीं मिली, कुर्सी के हैंडल पर बैठना पड़ा था. उन्होंने सलाह दिया, जीवन में कभी पेंडुलम नहीं बनना चाहिए, पेंडुलम का कोई मतलब नहीं होता है.
सीएम योगी पर अखिलेश का पलटवार
वहीं इस पर पलटवार करते हुए शिवपाल यादव ने कहा कि अखिलेश यादव पहले ही पेंडुलम टिप्पणी पर जवाब दे चुके हैं. जहां तक फुटबॉल का सवाल है, एक अच्छा खिलाड़ी जानता है कि गोल कैसे करना है. अब डिंपल (उपचुनाव में) एक गोल करेंगी. वहीं सपा प्रमुख अखिलेश ने आदित्यनाथ को जवाब देते हुए ट्वीट किया था कि माननीय शिवपाल सिंह यादव जी की सुरक्षा श्रेणी को कम करना आपत्तिजनक है. साथ ही ये भी कहना है कि पेंडुलम समय के गतिमान होने का प्रतीक है और वो सबके समय को बदलने का संकेत भी देता है और ये भी कहता है कि ऐसा कुछ भी स्थिर नहीं है जिस पर अहंकार किया जाए.
शिवपाल-अखिलेश के बीच ठीक नहीं थे संबंध
चाचा-भतीजा (शिवपाल और अखिलेश) जिनके बीच 2016 में आपसी विवाद के बाद लंबे समय से अच्छे संबंध नहीं थे, एक बार फिर से एक साथ आए हैं और डिंपल की जीत को मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि बताते हुए सीट बरकरार रखने की कोशिश में लगे हैं.
परिवार में दरार का फायदा उठाने की उम्मीद
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि एक रणनीतिक कदम के तहत बीजेपी ने डिंपल यादव के खिलाफ शिवपाल यादव के करीबी माने जाने वाले रघुराज सिंह शाक्य को कथित तौर पर परिवार में दरार का फायदा उठाने की उम्मीद में मैदान में उतारा, लेकिन यादव परिवार की एकजुटता के चलते यह समीकरण कारगर होते नहीं दिखा. शिवपाल का समर्थन इसलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि उनका जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र मैनपुरी लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है और वे वहां के लोकप्रिय नेता हैं.
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