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    शिव भक्त कांवड़िया सचिन, सांस थमने से पहले तीन लोगों को दे गया नई जिंदगी, दो को दी रोशनी

  • August 04, 2024

    ऋषिकेश (Rishikesh)। कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) के दौरान कहीं से वाहनों में तोड़फोड़ की तस्वीरें आईं तो कहीं से मारपीट की। जहां कुछ कांवड़ियों के डरावने व्यवहार (scary behavior of kanwadis) ने लोगों को विचलित कर दिया, वहीं सचिन नाम का शिवभक्त कांवड़िया (Shiv devotee Kanwadiya) अपनी सांस थमने (short of breath) से पहले तीन लोगों को नई जिंदगी (New life for three people) दे गया। सचिन सड़क हादसे में घायल होने के बाद कोमा में चला गया था। 30 जुलाई को ब्रेन डेड घोषित किए जाने के बाद परिजनों ने उसके अंगों को एम्स ऋषिकेश को दान कर दिया था, जिसके बाद अलग-अलग जगहों पर तीन लोगों को उसके अंगों से नई जिंदगी मिली है।


    एम्स की कार्यकारी निदेशक प्रो. मीनू सिंह ने बताया कि 23 जुलाई को हरियाणा के महेंद्रगढ़ निवासी 25 वर्षीय सचिन रुड़की में सड़क दुर्घटना में गंभीर घायल हो गया था। उसके कोमा से बाहर आने की उम्मीद नहीं बची तो एम्स के डॉक्टरों ने परिजनों से अंगदान की अपील की। परिवार वाले राजी हुए और ब्रेन डेड युवक के अंगदान का फैसला लिया गया। जरूरी प्रक्रिया के बाद सचिन के अंगों से न केवल तीन लोगों को जिंदगी मिली, बल्कि दृष्टि खो चुके दो लोगों के जीवन में सचिन के नेत्रदान से उजियारा आ सकेगा।

    एमएस प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने कहा कि सचिन के अंगदान से दो अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती तीन लोगों को नया जीवन मिला है। इनमें पीजीआई चंडीगढ़ में भर्ती व्यक्ति को किडनी, पेनक्रियाज प्रत्यारोपित किया गया। दूसरी ओर, दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलरी साईंसेज (आईएलबीएस) में भर्ती दो अलग-अलग व्यक्तियों को किडनी एवं लिवर प्रत्यारोपित किए गए।

    कांवड़ भरने हरिद्वार के लिए निकला था सचिन
    श्रावण मास में सचिन महेंद्रगढ़ से हरिद्वार कांवड़ उठाने निकाला था और रास्ते में सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया। उसके पिता की टायर पंक्चर की दुकान चलाते हैं। परिवार में पिता के अलावा उनकी पत्नी, दो बच्चे और एक छोटा भाई है। एम्स के डॉक्टरों ने जब परिवार वालों से अंगदान कराने की अपील की तो सचिन के परिवार वालों ने फरिश्ते की भूमिका निभाई।

    ग्रीन कॉरिडोर बना कर पहुंचाए गए अंग
    सचिन के शरीर के अंगों को तय समय पर दिल्ली और पीजीआई चंडीगढ़ पहुंचाया गया। इसके लिए सड़क मार्ग और हवाई सेवाओं की मदद ली गई। पुलिस की मदद से ऋषिकेश से जौलीग्रांट एयरपोर्ट तक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। पुलिस ने 28 किलोमीटर की दूरी को 35 मिनट की बजाय महज 18 मिनट के रिकॉर्ड टाइम में पूरा कराया।

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