उज्जैन। शिप्रा का पानी बेहद खराब हैं। इसका पानी आचमन या स्नान तो छोडिए हाथ धोने के लायक भी नहीं पाया गया है। शिप्रा का जल डी केटेगरी का हैं। यह हकीकत मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में सामने आई है, जो विधानसभा में पेश की गई हैं। मप्र राज्य में 200 से ज्यादा छोटी-बड़ी नदियाँ बहती हैं। इसमें दो दर्जन से ज्यादा ऐसी नदियाँ हैं जो प्रदूषित हो चुकी हैं। इनमें से क्षिप्रा, बेतवा, नर्मदा नदियां तो ऐसी हैं कि इनका पानी पीना तो दूर आचमन करने लायक भी नहीं बचा है। खासकर इन नदियों के किनारे स्थिति धार्मिक स्थलों का पानी सबसे अधिक प्रदूषित इै। इसका खुलासा मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) की रिपोर्ट में हुआ है। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार मप्र की 89 नदियाँ ऐसी हैं, जिनमें सालभर पानी रहता है। एमपीपीसीबी ने इन नदियों के रूट पर 293 स्थानों पर पानी की जांच की। 96 स्थानों पर पानी की गुणवत्ता खराब पाई गई। इनमें से 60 से अधिक स्थान धार्मिक स्थलों के पास हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश की गई एमपीपीसीबी की 2023-24 के वार्षिक प्रतिवेदन में नदियों के पानी की गुणवत्ता की वार्षिक औसत स्थिति के बारे में बताया गया है। एमपीपीसीबी की रिपोर्ट में इंदौर की कान्ह नदी को सबसे प्रदूषित बताया गया है। उज्जैन की क्षिप्रा नदी की स्थिति भी खराब है। क्षिप्रा नदी में देवास के हवनखेड़ी, नागदमन से पानी डी-कैटेगरी का है। उज्जैन के गऊघाट, रामघाट, सिद्धवट घाट से महिदपुर तक पानी काला और डी-कैटेगरी का है। इतना ही नहीं चंबल का पानी भी काफी प्रदूषित हैं। चंबल नदी में उज्जैन के जूना नागदा, इटलावदा, गीदघर में पानी डी-कैटेगरी का है।
5 कैटेगरी में गुणवत्ता जाँची
एमपीपीसीबी ने 5 कैटेगरी में गुणवत्ता जाँची है। ए-कैटेगरी का पानी रोगाणु मुक्त होता है। इसे बिना किसी परंपरागत उपचार के सीधे पीने के है। बी-कैटेगरी में रोगाणु (जैसे बैक्टीरिया, वायरस और अन्य सूक्ष्मजीव) पाए जाते हैं। यह धुलाई या सफाई के लिए उपयुक्त है। सी-कैटेगरी के पानी में अतिरिक्त हैवी मेटल और अन्य प्रदूषक तत्व होते हैं। डी-कैटेगरी के पानी का रंग पूरी तरह काला हो जाता है। ई-कैटेगरी के पानी उद्योगों से निकले अपशिष्ट या अत्यधिक घातक प्रदूषण से प्रभावित होता है।
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