उज्जैन। शिप्रा नदी में इन दिनों जलकुंभी इतनी अधिक है कि पूरे मंगलनाथ क्षेत्र में पानी नहीं दिख रहा है और ऐसा लग रहा है कि शिप्रा नदी पर जलकुंभी की खेती हो रही है। पूर्व में शिप्रा की सफाई पर करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं। मंगलनाथ क्षेत्र में नदी के अंदर जलकुंभी फिर से उग रही है इसकी तरफ नगर निगम का ध्यान नहीं है। मंगलनाथ के पुराने पुल से लेकर बड़े पुल तक नदी का पानी पूरी तरह से जलकुंभी से ढंक गया है। ऐसा लगता है जैसे हरा मैदान हो गया। कहने को नगर निगम जलकुंभी हटाने की मशीन लाखों रुपए खर्च करके लाई थी लेकिन इस मशीन का का उपयोग कितना हो रहा है और यह मशीन किस हाल में पड़ी है यह बताने वाला कोई नहीं है. जो श्रद्धालु मंगलनाथ आते हैं और नदी देखते हैं तो कहते हैं कि यहां जलकुंभी क्यों नहीं हटी।
हर साल अक्टूबर माह से लेकर जून-जुलाई में जब तक बरसात का पानी इसे बहाकर नहीं ले जाता तब तक यही स्थिति रहती है। इधर शिप्रा को प्रवाहमान बनाने के नाम पर पिछले तीन दशक में करोड़ों रुपए अलग-अलग योजनाओं पर खर्च कर दिये गये। बावजूद इसके शिप्रा प्रवाहमान नहीं हो पाई है। दूसरी ओर एक बार फिर 625 करोड़ की नई योजना बनाई गई है। यह योजना भी सिर्फ अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के बैंक खातों का बेलेंस बढ़ाने के काम आएगी। पिछली बार भी ऐसी योजनाओं से शिप्रा का भला नहीं हुआ है। हैरत की बात है कि 432 करोड़ की नर्मदा शिप्रा लिंक योजना और 100 करोड़ की कान्ह डायवर्शन योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढऩे के बाद भी इससे जुड़े अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
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