उज्जैन। इस माह के आरंभ में जिला प्रशासन ने गंभीर डेम तथा शिप्रा नदी के पानी को आगामी आदेश तक पेयजल के लिए संरक्षित घोषित कर दिया है, लेकिन बावजूद इसके तीन दिशाओं से शिप्रा में दूषित पानी छोटे-बड़े नालों के जरिए मिल रहा है। इधर पानी चोरी रोकने के लिए संबंधित विभागों के गश्ती दल सर्चिंग कर रहे हैं, लेकिन प्रदूषण नहीं रूक पा रहा। इस वर्ष अच्छी बारिश हुई है तथा पर्याप्त वर्षा होने से अभी तक गंभीर डेम फुल है और शिप्रा में पर्याप्त पानी है। माह की शुरूआत में कलेक्टर ने शिप्रा नदी तथा गंभीर डेम के पानी को आगामी 31 मार्च तक पेयजल हेतु संरक्षित घोषित कर दिया है। इतना ही नहीं दोनों जलोतों का पानी चोरी होने से रोकने के लिए पीएचई व अन्य विभागों को सर्चिंग दल गठित करने के आदेश भी दे दिए हैं। इससे यह पानी गर्मी के मौसम तक सुरक्षित रह सके और पेयजल संकट की स्थिति न बने। जिला प्रशासन के आदेश पर सर्चिंग दल शिप्रा और गंभीर क्षेत्र में अवैध रूप से पानी चोरी हेतु लगाए गए मोटर पंप आदि जब्त भी कर रहे हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि पूरे शहर की नालियों से होकर 13 बड़े नाले घरों और कॉलोनियों से निकलते हैं, जो करीब 70 लाख लीटर गंदे पानी को रोज शिप्रा में मिला रहे हंै। यह समस्या सालों पुरानी है। शिप्रा को शुद्ध करने की अनेक योजनाओं सहित क्षिप्रा शुद्धिकरण न्यास भी इस समस्या का हल नहीं कर पाया है।
पश्चिम दिशा को छोड़ तीन दिशाओं से बढ़ रहा प्रदूषण
शिप्रा में रोजाना पश्चिम दिशा को छोड़ शेष तीन दिशाओं से लगातार बड़े नाले मिल रहे हैं। इनमें जहां एक ओर ऋण मुक्तेश्वर ब्रिज के समीप एक बड़ा नाला सालों से मिल रहा है, वहीं गऊघाट, चक्रतीर्थ मार्ग पर छोटे पुल के नजदीक और भूतेश्वर महादेव के समीप दो बड़े नाले मिलते है। इसी तरह नरसिंह घाट के समीप और त्रिवेणी से लेकर गऊघाट के बीच करीब 4 बड़े नाले इसी प्रकार मिलते है। ऋणमुक्तेश्वर के नजदीक क्षिप्रा में मिलने वाले नाले में पुराने शहर के नयापुरा व अन्य क्षेत्रों से होता हुआ पानी वाल्मिकी धाम होते हुए पहुंचता है। शास्त्री नगर तथा आसपास की दर्जनों कॉलोनियों का पानी गऊघाट पर मिलता है। चक्रतीर्थ पर गोपाल मंदिर, ढाबा रोड और पुराने शहर के कई क्षेत्रों से पानी पहुंचता है।
शिप्रा के नाम पर हुई है जमकर लूटमार
शहर के 13 बड़े नाले भी रोजाना लाखों लीटर गंदा पानी शिप्रा में उड़ेल रहे है। सिंहस्थ 2016 में इन नालों को रोकने के लिए अस्थायी रूप से प्रयास किए गए थे। सभी नालों को शिप्रा किनारे से करीब डेढ़ या दो किमी दूर मिट्टी के बांध बनाकर रोका गया था। इस पर भी लाखों रूपए खर्च किए गए थे। बावजूद इसके सिंहस्थ के दूसरे और तीसरे स्नान के वक्त कई नाले असमय हुई बारिश के कारण शिप्रा में जा मिले थे और लोगों ने इसी में स्नान किया था। आज भी यही स्थिति बनी हुई है। 13 बड़े गंदे नालों के जरिये शहर का लगभग 70 लाख लीटर गंदा पानी रोज सीधे शिप्रा में मिलता है।
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