उज्जैन। रामघाट की अपेक्षा शिप्रा नदी में नृसिंह घाट क्षेत्र में पानी की गहराई अधिक है। पिछले एक माह में नृसिंह घाट से लेकर रामघाट तक कई श्रद्धालु नहाते वक्त नदी में डूब गए थे और मौत हो गई थी। कल भी इंदौर से आए श्रद्धालु की गऊ घाट क्षेत्र में जान चली गई थी। इसके बाद भी यहां तैराक दल तैनात नहीं किया गया।
उल्लेखनीय है कि बरसात शुरू होते ही शिप्रा नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। इसी दौरान श्रावन माह में बढ़ी संख्या में महाकाल दर्शन करने के लिए श्रद्धालु और कावड़ यात्री आने लगते हैं। हालांकि बारिश शुरू होने से पहले ही नृसिंह घाट से लेकर राम घाट तक पिछले दो महीनों में नदी नहाने गए आधा दर्जन से ज्यादा श्रद्धालुओं की मौत डुबने के कारण हो गई थी। इसके बाद जिला प्रशासन और नगर निगम ने नृसिंह घाट से लेकर राम घाट तक गहरे पानी के संकेतक लगवाए थे। घाटों पर चेतावनी के बोर्ड लगवाए गए थे और रस्सियां भी बांधी गई थी। इसके अलावा पूरे क्षेत्र में तैराक दलों को भी तैनात किया गया था।
लेकिन गऊ घाट क्षेत्र में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई। जबकि महाकाल दर्शन व्यवस्था में बदलाव करने के बाद ज्यादातर श्रद्धालु और कावड़ यात्री इंदौर रोड होते हुए हरि फाटक ब्रिज चौराहे से जंतर-मंतर से होकर गऊ घाट होते हुए चारधाम मंदिर की ओर बने महाकाल दर्शन प्रवेश मार्ग तक जा रहे हैं। इस मार्ग पर श्रद्धालु और कावड़ यात्रियों की भीड़ का दबाव पूरे श्रावण महीने अधिक रहेगा। दर्शन मार्ग यही होने से बाहर से आए कावड़ यात्री गऊ घाट पर ही शिप्रा स्नान करने पहुंच रहे हैं। इसी के चलते कल सुबह परिवार के साथ कावड़ लेकर आया इंदौर के विजय नगर में रहने वाला राहुल पिता राजकुमार गहरे पानी में चला गया था और डूबने पर उसकी मौत हो गई थी। मौके पर कोई तैराक दल मौजूद नहीं था और राहुल के डूबने के लगभग एक घंटे बाद पुलिस ने गोताखोरों के दल को बुलाया गया था। मृतक का शव ढूढऩे में गोताखोरों का ढाई घंटे का समय लगा था। अगर नृसिंह घाट और रामघाट की तरह गऊ घाट पर भी तैराक दल मौजूद रहता तो उसकी जान बच सकती थी।
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