- फेक्ट्रियाँ अपना कचरा डाल रही हैं सीधे नदी में-प्रदूषण विभाग का भी ध्यान नहीं
उज्जैन। प्रदेश की जीवनदायिनी कही जाने वाली नदियाँ शिप्रा और चंबल के औद्योगिक अपशिष्टओं के कारण अपना अस्तित्व खो रही है, इनका पानी लगातार जहरीला होता जा रहा है। औद्योगिक इकाइयां इनमें पानी बिना ट्रीटमेंट के डाल रही है जिससे रासायनिक तत्व बड़ी संख्या में पानी में मिल
रहे हैं।
आज शिप्रा नदी की की जाए तो यहां का पानी कान्हा नदी के कारण लगातार खराब हो रहा है। सरकार ने कान्ह डायवर्शन के नाम पर अरबों रुपए खर्च कर दिए लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात है। अभी भी कान्ह नदी का पानी जो कि देवास और इंदौर के औद्योगिक अपशिष्ट से युक्त होता है वह आकर शिप्रा में मिल रहा है। जब भी विरोध होता है या साधु-संत धरना देने की बात करते हैं तो जनप्रतिनिधि फिर नई योजनाओं के सामने रख देते हैं अभी फिलहाल मिट्टी के बाद से काम चलाया जा रहा है, लेकिन बरसात में वह भी वह जाता है, अब नहर बनाने की बात और योजना बनाई जा रही है। सरकार कब योजना बनाएगी और कब यह धरातल पर सामने आएगी तब तक तो शिप्रा का आंचल मेला होता रहेगा और पानी दूषित होता रहेगा वहीं दूसरी बड़ी नदी चंबल की बात की जाए तो इसमें नागदा के उद्योगों कार रसायनयुक्त पानी लगातार नदी में मिल रहा है और चंबल नदी भी दूषित हो रही है। नागदा की औद्योगिक इकाइयां चंबल में उद्योगों का पानी तो डालती हैं लेकिन उसके पहले नियमानुसार ट्रीटमेंट करना चाहिए, वह नहीं करती हैं और देखने वाला भी कोई नहीं है। ऐसे में यह जीवनदायिनी कही जाने वाली नदियां जहरीली होती जा रही हैं और आने वाले दिनों में इनका पानी मवेशियों के पीने लायक भी नहीं रहेगा। उल्लेखनीय सरकार इन नदियों के संरक्षण की बात तो करती है और योजना भी बनाती है लेकिन यह योजना इन नदियों के संरक्षण में कारगर साबित नहीं हो पा रही है।