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    शिंदे गुट और ठाकरे को मिले चुनाव चिन्‍ह, ‘तलवार-ढाल’ का ‘जलती मशाल’ से होगा मुकाबला

  • October 12, 2022

    नई दिल्ली। महाराष्ट्र (Maharashtra) में शिवसेना (Shiv Sena) के चुनाव चिन्ह की जंग को थामते हुए चुनाव आयोग ने ठाकरे गुट और शिंदे गुट (Thackeray faction and Shinde faction) दोनों को नए चुनाव चिन्ह और नाम आवंटित कर दिए हैं. बता दें कि उद्धव ठाकरे गुट को ‘ज्वलंत मशाल’ (मशाल) और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को ‘दो तलवारें और एक ढाल’ का चुनाव चिन्ह दिया गया है. यह दोनों ही निशान एक समय पर मूल पार्टी शिवसेना से जुड़े हुए थे. फिर लंबे टाइम बाद जाकर पार्टी को ‘धनुष और तीर’ (‘bows and arrows’) का चुनाव चिन्ह मिला था.

    बाल ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना ने 1985 में ‘ज्वलंत मशाल’ (‘Flaming Torch’) प्रतीक का उपयोग करके सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा था, जिसे अब गुटीय झगड़े के बीच चुनाव आयोग(election Commission) द्वारा उद्धव ठाकरे गुट- ‘शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ को आवंटित किया गया है. शिंदे गुट को ‘दो तलवारें और एक ढाल’ का प्रतीक आवंटित किया गया है.



    भुजबल ने मशाल के चिन्ह पर जीता था चुनाव
    बता दें कि शिवसेना के पूर्व नेता छगन भुजबल ने पार्टी में रहते हुए मुंबई के मझगांव निर्वाचन क्षेत्र से ‘ज्वलंत मशाल’ चिन्ह पर चुनाव जीता था. उस वक्त संगठन के पास एक निश्चित चुनाव चिन्ह नहीं था. भुजबल ने बाद में विद्रोह किया और कांग्रेस में शामिल होने के लिए शिवसेना छोड़ दी. वह अब शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के एक प्रमुख नेता हैं.

    तलवार और ढाल पर भी चुनाव लड़े कुछ उम्मीदवार
    शिवसेना ने पहले भी नगर निकाय और विधानसभा चुनावों (assembly elections) के दौरान ‘ज्वलंत मशाल’ चिन्ह का इस्तेमाल किया था. शिवसेना सांसद गजानन कीर्तिकर, जो पार्टी की स्थापना के बाद से पार्टी के साथ रहे हैं, उन्होंने बताया कि पार्टी के अधिकांश उम्मीदवारों को 1968 में ‘तलवार और ढाल’ का चुनाव चिह्न मिला था, जब उन्होंने मुंबई सहित पहला निकाय चुनाव लड़ा था. वहीं 1985 में, कई उम्मीदवारों को प्रतीक के रूप में ‘ज्वलंत मशाल’ मिला.

    23 साल बाद पार्टी को मिला था एक निशान
    गौरतलब है कि शिवसेना की स्थापना 1966 में हुई थी और पार्टी को समर्पित ‘धनुष और बाण’ चिन्ह प्राप्त करने में 23 साल लग गए. सेना को 1989 में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता दी गई थी, जिसका अर्थ था कि वह राज्य में एक समान प्रतीक का उपयोग कर सकती थी. लेकिन इससे पहले, 1966 से 1989 तक, इसने लोकसभा, विधानसभा और निकाय चुनावों में विभिन्न प्रतीकों पर चुनाव लड़ा. लगभग 33 वर्षों के बाद, चुनाव आयोग ने पिछले सप्ताह अपने ‘धनुष और तीर’ चिह्न को अंतरिम अवधि के लिए सील कर दिया था, जब शिवसेना के दो गुटों के बीच विवाद हुआ था.

    दोनों गुटों को मिले नए नाम
    इस विवाद के बाद चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों से ‘शिवसेना’ नाम का इस्तेमाल नहीं करने को भी कहा. चुनाव आयोग ने सोमवार को ठाकरे गुट के लिए पार्टी के नाम के रूप में ‘शिवसेना – उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ और पार्टी के एकनाथ शिंदे समूह के लिए ‘बालासाहेबंची शिवसेना’ (बालासाहेब की शिवसेना) को नए नामकरण के रूप में आवंटित किया. शिंदे ने कहा, ‘बालासाहेबंची शिवसेना आम आदमी की शिवसेना है. हम चुनाव आयोग के इस फैसले को स्वीकार करते हैं. हमने ‘सूर्य’ चिन्ह को प्राथमिकता दी थी, लेकिन इसने तलवार और ढाल को मंजूरी दी. यह पुरानी शिवसेना का प्रतीक है. यह एक महाराष्ट्रियन प्रतीक है. यह छत्रपति शिवाजी और उनके मावलों (सैनिकों) का प्रतीक है.’

    जब सभा में जलाई गई थी मशाल
    योगेंद्र ठाकुर, जिन्होंने शिवसेना और बाल ठाकरे पर कई किताबें लिखी हैं, ने ‘मार्मिक’ पत्रिका के 23 जुलाई के अंक में एक लेख के माध्यम से कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता मधुकर सरपोतदार ने 1985 के विधानसभा चुनाव में उत्तर-पश्चिम मुंबई की खेरवाड़ी सीट से ज्वलंत मशाल’ के प्रतीक पर चुनाव लड़ा था. बाल ठाकरे ने उनके लिए प्रचार किया था. योगेंद्र ठाकुर ने कहा कि उस समय मतदाताओं को पार्टी के चुनाव चिह्न के बारे में संदेश देने के लिए मंच के बाईं ओर एक जलती हुई मशाल रखी गई थी.

    बाल ठाकरे ने कराया पार्टी का रजिस्ट्रेशन
    शिवसेना के प्रतीकों के पीछे के इतिहास के बारे में बताते हुए, योगेंद्र ठाकुर ने कहा कि 1988 में, भारत के चुनाव आयोग ने फैसला किया कि सभी राजनीतिक दलों को पंजीकृत करने की आवश्यकता है. बाल ठाकरे ने तब फैसला किया कि शिवसेना को भी पंजीकृत किया जाना चाहिए. मनोहर जोशी के मार्गदर्शन में पार्टी के लिए एक संविधान तैयार करने के लिए शिवसेना नेता सुभाष देसाई, अधिवक्ता बालकृष्ण जोशी और विजय नाडकर्णी का एक पैनल बनाया गया था.

    बाल ठाकरे ने मसौदे में कुछ बदलाव का सुझाव दिया और आवश्यक संशोधन के बाद टीम चुनाव निकाय के समक्ष अपना पक्ष रखने के लिए दिल्ली गई. उन्होंने सभी आवश्यक दस्तावेज जमा किए और पार्टी पंजीकृत की गई. ठाकुर ने कहा कि इससे शिवसेना को ‘धनुष और तीर’ का चुनाव चिह्न प्राप्त करने में भी मदद मिली, जिस पर उसने बाद का चुनाव लड़ा. उस समय तक, शिवसेना अलग-अलग प्रतीकों पर चुनाव लड़ती थी.’

    चुनाव में फंस सकता है ये पेंच
    ऐसे में शिवसेना के एक नेता ने मंगलवार को दावा किया कि बीएमसी ने अभी तक उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना धड़े की उम्मीदवार रुतुजा लटके का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है. वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगर बीएमसी के वार्ड में एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में उनका इस्तीफा अगले तीन दिनों में स्वीकार नहीं किया जाता है, तो वह 14 अक्टूबर तक अपना नामांकन पत्र दाखिल नहीं कर पाएंगी. उन्होंने आरोप लगाया कि बीएमसी कुछ वरिष्ठ राजनेताओं के इशारे पर प्रक्रिया में देरी कर रही है.

    विभाजन के बाद पहली बार होगा सामना
    शिवसेना के मौजूदा विधायक और रुतुजा के पति रमेश लटके की मृत्यु के कारण आवश्यक उपचुनाव, जून में पार्टी में विभाजन के बाद उद्धव ठाकरे गुट के लिए पहली चुनावी परीक्षा होगी. शिवसेना नेता ने दावा किया, ‘एक सरकारी अधिकारी चुनाव नहीं लड़ सकता है, इसलिए लतके ने लगभग एक महीने पहले बीएमसी प्रशासन को अपना इस्तीफा सौंप दिया था, लेकिन इसे अभी भी स्वीकार नहीं किया गया है.’

    अकेले चुनाव लड़ेगी MNS
    उल्लेखनीय है कि निकाय चुनावों से पहले राज ठाकरे का कहना है कि मनसे स्थानीय निकाय चुनाव अकेले ही लड़ेगी. नगर निकाय चुनाव से पहले मनसे और बीजेपी के बीच गठबंधन की बात चल रही थी. मनसे कार्यकर्ताओं की बैठक में राज ठाकरे ने विभिन्न मुद्दों पर टिप्पणी की. राज ठाकरे ने बैठक के दौरान गठबंधन पर बात की और आगामी चुनावों पर चर्चा की. एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे को प्रतीक चिन्ह फ्रीज करने के बाद सहानुभूति मिल रही है, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं होगा.

    मनसे नेता संदीप देशपांडे ने बताया कि राज ठाकरे ने कहा है कि महाराष्ट्र की राजनीति में अभी क्या चल रहा है. यह सही नहीं है. लोग भ्रमित हैं. राज ठाकरे ने मनसे कार्यकर्ताओं को यह भी निर्देश दिया है कि ‘आगामी चुनाव अपने दम पर लड़ने के लिए तैयार हो जाओ, काम करना शुरू करो’. राज ठाकरे ने कहा है कि मनसे कार्यकर्ता सत्ता में रहेंगे. वह उद्धव ठाकरे की तरह खुद सत्ता में नहीं जाएंगे.

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