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    बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार की बढ़ी मुश्किलें, जानें विपक्ष PM का क्यों मांग रहा है इस्तीफा

  • December 12, 2022

    नई दिल्ली: 12 साल तक सत्ता में एक निर्विवाद कार्यकाल के बाद, जिस दौरान बांग्लादेश ने शानदार आर्थिक वृद्धि देखी, प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ रही हैं. वजह, विपक्ष द्वारा सत्ताधारी अवामी लीग सरकार का इस्तीफा मांगना और संसद को भंग करने की मांग है. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के नेतृत्व में हजारों प्रदर्शनकारियों ने पिछले हफ्ते राजधानी ढाका में सरकार को हटाने की मांग को लेकर रैली की. इस दौरान बीएनपी मुख्यालय पर छापा मारने सहित असहमति की आवाजों पर नकेल कसने के लिए बल प्रयोग किया गया. इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हुए.

    एमनेस्टी इंटरनेशनल और दूसरे अधिकार समूहों ने सरकार पर “मानव जीवन के प्रति कम सम्मान” दिखाने का आरोप लगाते हुए इस मौत की निंदा की है. कई सालों से हसीना सरकार पर पिछले दो आम चुनावों में धांधली के आरोप लग रहे हैं. हालांकि, बांग्लादेश में आर्थिक उछाल, जहां प्रति व्यक्ति आय 2,500 अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई और भारत की तुलना में अधिक हो गई है, ने इन आरोपों को खारिज करने में हसीना सरकार की मदद की है.

    ज्यादा से ज्यादा संख्या में बांग्लादेशी गरीबी से बाहर आए हैं. इसका कारण कपड़ा कारखानों द्वारा अच्छा प्रदर्शन करना है. ध्यान रहे कि बांग्लादेश चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा निर्यातक है. साथ ही जीवन प्रत्याशा भी 50 प्रतिशत से अधिक हो गई, जबकि शिशु मृत्यु दर में लगभग 90 फीसदी की कमी आई है. लेकिन वैश्विक आर्थिक मंदी और महंगी एनर्जी की वजह से यहां महंगाई बढ़ रही है और यह नौ साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है. इससे देश की हालिया वृद्धि खतरे में पड़ गई है.

    आर्थिक मंदी यूक्रेन में युद्ध के कारण और गंभीर हुई
    कोविड-19 महामारी से शुरू हुई आर्थिक मंदी यूक्रेन में युद्ध के कारण और भी गंभीर हो गई है, जिसने विशेष रूप से बांग्लादेश जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया है. बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तीन इंजनों द्वारा आगे बढ़ती है. ये हैं, जून 2021-जून 2022 के बीच 42.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के गारमेंट और 2.6 बिलियन डॉलर मूल्य के टेक्सटाइल निर्माण क्षेत्र, (कुल निर्यात का 85 प्रतिशत), इसके 13 मिलियन प्रवासियों द्वारा रेमिटेंस (2021 में रिकॉर्ड $22.07 बिलियन) और फ्यूल निर्यात.


    ये तीनों सेक्टर वैश्विक आर्थिक संकट से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. महामारी ने रातों-रात दस लाख लोगों को बेरोजगार कर दिया और जब कपड़ा कारखाने इस साल सकारात्मक संकेत दिखाना शुरू कर रहे थे, तो जुलाई में विदेशी कंपनियों के ऑर्डर में 30 फीसदी की गिरावट आई क्योंकि अमेरिका, यूरोप और दूसरे देशों में उपभोक्ताओं ने आर्थिक मंदी की आहट के चलते अपना खर्च कम कर लिया.

    इस वर्ष रेमिटेंस में भी 15 प्रतिशत की गिरावट आई है. इसकी वजह वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण प्रवासियों पर दबाव पड़ना और डॉलर की मजबूती है. हसीना की सरकार द्वारा इस साल की शुरुआत में एक ही हफ्ते में फ्यूल की कीमत में 50 प्रतिशत की वृद्धि के साथ बांग्लादेश में भी ईंधन की कीमतें आसमान छू रही हैं. बीमार बांग्लादेश की आर्थिक समस्याएं अब एक बड़े राजनीतिक संकट में बदलने लगी हैं.

    शेख हसीना सरकार ने विपक्षी कार्यकर्ताओं को जेल भेजने और सत्ता में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए मीडिया पर दबाव डालने सहित कठोर उपायों का सहारा लिया है. इस बीच संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और कुछ यूरोपीय देशों ने चिंता जाहिर की है. 15 देशों के एक संयुक्त बयान में, बांग्लादेश से चुनाव की मांग करते हुए “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” और “शांतिपूर्ण सम्मेलन” की अनुमति देने के लिए कहा गया है.

    बांग्लादेश में संकट का मतलब भारत पर पड़ेगा असर
    श्रीलंका के बाद, बांग्लादेश में संकट का मतलब है कि भारत का एक और पड़ोसी देश राजनीतिक अराजकता के हालात में जाने की कगार पर है. इस साल की शुरुआत में इस देश ने आईएमएफ से 4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पैकेज हासिल किया, ताकि वह अपने विदेशी ऋण पर डिफॉल्ट को बचा सके. मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल इसकी कमजोर अर्थव्यवस्था पर और अधिक बोझ डाल सकती है.

    लंदन के SOAS यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले अविनाश पालीवाल ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है, “बांग्लादेशियों की आजीविका का खतरे में पड़ना इस उपमहाद्वीप में एक गंभीर व्यवधान है. इससे भारत का भू-राजनीतिक संकट बढ़ेगा. इसके पूर्वी पड़ोसी देश में जारी हिंसा और चीनी दखल नई दिल्ली की भू-आर्थिक आकांक्षाओं को बाधित करेगा.”

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