नई दिल्ली। ‘हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती….’। कुछ ऐसी ही शायरियां और कविताएं ज्यादातर आपने किसी महफिल या फिर दोस्तों के बीच सुनी होंगी। अब आप सोच रहे होंगे कि आज हम खबरें छोड़कर आपको शायरियां क्यों सुना रहे हैं। दरअसल हम आपको शायरी नहीं सुना रहे, बल्कि यह बता रहे हैं कि पिछले कुछ सालों में बजट का अंदाज भी शायराना हो चला है। बजट का जिक्र आते ही घंटों तक चलने वाला उबाऊ भाषण और ढेर सारे आंकड़े ही नजर आते हैं। इस नीरसता को तोड़ने के लिए कई बार वित्त मंत्रियों ने शायरियों और कविताओं का सहारा लिया है। तो चलिए आपको बताते हैं कि बजट पेश करते-करते कब-कब मंत्रियों का अंदाज शायराना हो चला…
मनमोहन सिंह कर देते थे वाह-वाह करने पर मजबूर
बेहद कम बोलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जब देश के वित्त मंत्री हुआ करते थे, तब वह भी अपनी शानदार शेरो-शायरी से वाह-वाह करने पर मजबूर कर देते थे। साल 1991-92 में तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने बजट पेश करने के दौरान एक शेर के जरिए भारत की एतिहासिकता और किसी भी परिस्थति का डटकर मुकाबला करने की भावना को बताया था। उन्होंने कहा था-‘यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामोनिशान हमारा।’
इसके बाद अगले साल 1992-93 में उन्होंने सदन में पढ़ा ‘तारीखों में ऐसे भी मंजर हमने देखे हैं, कि लम्हों ने खता की थी,और सदियों ने सजा पाई।’
यशवंत सिन्हा शेर के जरिए कह देते थे गंभीर बात
‘तकाजा है वक्त का की तूफान से जूझो, कहां तक चलोगे किनारे-किनारे।’ 2001 में बजट पेश करने के दौरान अपनी बात को समझाने के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सदन में ये लाइन पढ़ी थी।
ममता बनर्जी ने अकबर इलाहाबादी को किया था याद
याद कीजिए साल 2011-12 का रेल बजट जब तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी थीं। तब उन्होंने अकबर इलाहाबादी का शेर ‘हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता….’ बजट सत्र के दौरान पढ़कर संसद भवन में सुनाया था।
अरुण जेटली हुए थे शायराना
दिवंगत वित्त मंत्री अरुण जेटली को भी शेरो-शायरी के जरिए अपनी कड़ी से कड़ी बात भी बेहद मिठास के साथ कहने में महारत हासिल थी। साल 2016 के बजट के दौरान अरूण जेटली ने अपने बजट भाषण में एक उर्दू नज्म पढ़ी थी। उन्होंने कहा था – ‘कश्ती चलाने वालों ने जब हार कर दी पतवार हमें, लहर लहर तूफान मिलें और मौज-मौज मझधार हमें, फिर भी दिखाया है हमने और फिर ये दिखा देंगे सबको, इन हालातों में आता है दरिया करना पार हमें।’ इस नज्म के जरिए उन्होंने ना केवल विपक्षियों पर करारा हमला किया था बल्कि मोदी सरकार के सामने खड़ी चुनौतियों से सदन को रूबरू भी कराया था।
जब निर्मला सीतारमण ने सुनाई शायरी और कविता
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2019 का जब बजट पेश किया था तो उन्होंने अगले कुछ सालों में भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के साहसिक और दुस्साहसी लक्ष्य को रेखांकित करते हुए उर्दू लेखिका मंजूर हाशमी की लाइनें पढ़ी थीं। ‘यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट भी ले कर चिराग जलता है।’
वहीं इसके अगले साल यानी साल 2020 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2020 के अपने शुरुआती भाषण के दौरान कश्मीरी कवि और साहित्य अकादमी विजेता पंडित दीनानाथ कौल की लिखी गई एक कविता का पाठ किया था।
‘हमारा वतन शालीमार बाग जैसा
हमारा वतन डल झील में खिलते कमल जैसा
हम वतन नौजवानों के गर्म खून जैसा
हमारा वतन दुनिया का सबसे प्यारा वतन…’
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