नई दिल्ली (New Delhi)। शरद पूर्णिमा का त्योहार (Sharad Purnima festival) 28 अक्टूबर दिन शनिवार को मनाया जाएगा। यह पूर्णिमा सभी पूर्णिमाओं में श्रेष्ठ मानी गई है। इसे शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस पूर्णिमा को शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागर पूर्णिमा एवं कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। सुख, सौभाग्य, आयु, आरोग्य और धन-संपदा की प्राप्ति के लिए इस पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान, आत्म पूजा कर श्री गणेश, लक्ष्मीनारायण और इष्टदेव का विशेष पूजन करें और रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही स्वयं भोजन करें। मान्यता है कि इस पूर्णिमा की रात को 25 से 30 मिनट तक चांद को निहारने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को 16 कलाओं का स्वामी कहा गया है तो राम को 12 कलाओं का। इसकी अलग-अलग व्याख्या मिलती है। कुछ की राय में भगवान राम सूर्यवंशी थे तो उनमें बारह कलाएं थीं। श्रीकृष्ण चंद्रवंशी थे तो उनमें सोलह कलाएं थीं। चांद को लेकर जितनी भी उपमाएं दी जाती हैं, वह सभी शरद पूर्णिमा पर केंद्रित हैं।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों संग महारास रचाया था। इसलिए इसे श्रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। चंद्र देव अपनी 27 पत्नियों, रोहिणी, कृतिका आदि नक्षत्र के साथ अपनी पूरी कलाओं से पूर्ण होकर इस रात सभी लोकों पर शीतलता की वर्षा करते हैं।
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इस रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। मान्यता है की शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा 16 कलाओं से पूर्ण होकर अमृत वर्षा करता है। जो स्वास्थ्य के लिए गुणकारी होती है। इस रात लोग मान्यता के अनुसार प्रसाद के लिए मेवे डालकर खीर बनाया जाता है और उसे खुले में रखा जाता है ताकि चन्द्रमा की रोशनी खीर पर पड़े। अगले दिन स्नान कर भगवान को खीर का भोग लगाया जाता है। फिर अगले दिन सुबह तीन ब्राह्मणों या कन्याओं को प्रसाद रूप में इस खीर को बांटा जाता है। अपने परिवार में खीर का प्रसाद बांटा जाता है।
इस खीर को खाने से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है। हो सके तो चांदी के बर्तन में खीर रखें। शरद पूर्णिमा की रात को जागने का विशेष महत्व है। शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी यह देखने के लिए घूमती कि कौन जाग रहा है। जो जगता है, उसका माता लक्ष्मी कल्याण करती हैं। शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जो विवाहित स्त्रियां इसका व्रत करती हैं, उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। जो माताएं इस व्रत को रखती हैं, उनके बच्चे दीर्घायु होते हैं। वहीं, अगर कुंवारी कन्याएं यह व्रत रखें तो उन्हें मनवांछित पति मिलता है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved