नई दिल्ली (New Delhi)। इंडियन नेशनल डेवलेपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस (इंडिया) (Indian National Developmental Inclusive Alliance – India) के वरिष्ठ नेता शरद पवार (Senior leader Sharad Pawar) के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के साथ मंच साझा करने को लेकर गठबंधन असहज है। गठबंधन में शामिल कई घटक दलों का मानना है कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार को इस वक्त प्रधानमंत्री संग मंच साझा करने से परहेज करना चाहिए।
आपको बता दें कि अजीत पवार की अगुवाई में एनसीपी में हाल ही में टूट हुई और उनका धरा महाराष्ट्र की सरकार में शामिल हो गया। कई नेताओं ने एनसीपी में बगावत का ठीकरा भारतीय जनता पार्टी पर फोड़ा था। इसके बाद यह पहला मौका होगा जब वह प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करेंगे।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (मंगलवार को) पुणे के दौरे पर जाएंगे। इस दौरान वह एक कार्यक्रम में भी शिरकरत करेंगे, जहां उन्हें लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इस पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के सांसद अरविंद सावंत ने सोमवार को कहा कि शरद पवार को अपने इस फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि लोकमान्य तिलक ने ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा दिया था, पर क्या आज वास्तव में स्वराज है।
सुशील शिंदे भी रहेंगे मौजूद
वहीं, कांग्रेस नेताओं की चिंता कुछ अलग है। प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम में शरद पवार के साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे भी मौजूद रह सकते हैं। शिंदे लोकमान्य तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि इस कार्यक्रम में सुशील शिंदे की उपस्थिति से गलत संदेश जाएगा। क्योंकि, इंडिया गठबंधन के नेता ही प्रधानमंत्री को सम्मानित करेंगे। वहीं, प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह कार्यक्रम भले ही गैर राजनीतिक हो, पर इस पर राजनीति होगी। भाजपा ने कुछ दिन पहले ही एनसीपी को तोड़कर अजीत पवार को अपने साथ मिलाया है। ऐसे में बेहतर होता कि शरद पवार इस कार्यक्रम से दूर रहते।
असमंजस में आम आदमी पार्टी
वहीं, आज केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा में बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक 2023 पेश करेंगे। इसे दिल्ली सर्विस बिल भी कहा जा रहा है। इस विधेयक का उद्देश्य 19 मई को जारी एक अध्यादेश को बदलना है ताकि केंद्र को दिल्ली में नौकरशाही पर नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति मिल सके। साथ ही 11 मई के संविधान पीठ के फैसले को प्रभावी ढंग से वापस ले लिया जाए, जिसमें पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित विभागों को छोड़कर राजधानी की ब्यूरोक्रेसी निर्वाचित सरकार के पास थी। अब ऐसे में विपक्ष खासकर आम आदमी पार्टी की चिंता यह है कि उसे इस मुद्दे पर एनसीपी का समर्थन मिलेगा कि नहीं?
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